विश्व वानिकी दिवस: Difference between revisions
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'''विश्व वानिकी दिवस''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''World Forest Day'') प्रतिवर्ष [[21 मार्च]] को मनाया जाता है। विश्व वानिकी दिवस पहली बार वर्ष [[1971]] ई. में इस उद्देश्य से मनाया गया था कि दुनिया के तमाम देश अपनी मातृभूमि की [[मिट्टी]] और वन - सम्पदा का महत्व समझे तथा अपने - अपने देश के वनों और जंगलों का संरक्षण करें। अगर हम [[भारत]] की बात करें तो 22.7% भूमि पर ही वनों और जंगलों का अस्तित्व रह गया। भारत में वन महोत्सव [[जुलाई]] [[1950]] से ही मनाया जा रहा है। इसकी शुरुआत तत्कालीन गृहमंत्री कुलपति [[कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी]] ने की थी। | '''विश्व वानिकी दिवस''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''World Forest Day'') प्रतिवर्ष [[21 मार्च]] को मनाया जाता है। विश्व वानिकी दिवस पहली बार वर्ष [[1971]] ई. में इस उद्देश्य से मनाया गया था कि दुनिया के तमाम देश अपनी मातृभूमि की [[मिट्टी]] और वन-सम्पदा का महत्व समझे तथा अपने - अपने देश के वनों और जंगलों का संरक्षण करें। अगर हम [[भारत]] की बात करें तो 22.7% भूमि पर ही वनों और जंगलों का अस्तित्व रह गया। भारत में वन महोत्सव [[जुलाई]] [[1950]] से ही मनाया जा रहा है। इसकी शुरुआत तत्कालीन गृहमंत्री कुलपति [[कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी]] ने की थी। | ||
==उद्देश्य== | ==उद्देश्य== | ||
विश्व वानिकी दिवस का उद्देश्य है कि विश्व के सभी देश अपनी वन-सम्पदा की तरफ ध्यान दें और वनों को संरक्षण प्रदान करें। भारत में भी वन-सम्पदा पर्याप्त रूप से है। भारत में 657.6 लाख हेक्टेयर भूमि (22.7 %) पर वन पाए जाते हैं। वर्तमान समय में भारत 19.39 % भूमि पर वनों का विस्तार है और [[छत्तीसगढ़]] राज्य में सबसे ज्यादा वन-सम्पदा है उसके बाद क्रमश: [[मध्य प्रदेश]] और [[उत्तर प्रदेश]] राज्य में। [[भारत सरकार]] द्वारा सन [[1952]] ई. में निर्धारित "राष्ट्रीय वन नीति" के तहत देश के 33.3 % क्षेत्र पर वन होने चाहिए। लेकिन वर्तमान समय में ऐसा नहीं है। वन-भूमि पर उद्योग-धंधों तथा मकानों का निर्माण, वनों को खेती के काम में लाना और लकड़ियों की बढती माँग के कारण वनों की अवैध कटाई आदि वनों के नष्ट होने के प्रमुख कारण है। इसलिए अब समय आ गया है कि देश की "राष्ट्रीय निधि" को बचाए और इनका संरक्षण करें। हमें वृक्षारोपण (पेड़-पौधे लगाना) को बढ़ावा देना चाहिए। इसके सम्बन्ध में प्रसिद्ध पर्यावरणविद [[कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी]] ने कहा था कि -"वृक्षों का अर्थ है जल, जल का अर्थ है रोटी और रोटी ही जीवन है।" | विश्व वानिकी दिवस का उद्देश्य है कि विश्व के सभी देश अपनी वन-सम्पदा की तरफ ध्यान दें और वनों को संरक्षण प्रदान करें। भारत में भी वन-सम्पदा पर्याप्त रूप से है। भारत में 657.6 लाख हेक्टेयर भूमि (22.7 %) पर वन पाए जाते हैं। वर्तमान समय में भारत 19.39 % भूमि पर वनों का विस्तार है और [[छत्तीसगढ़]] राज्य में सबसे ज्यादा वन-सम्पदा है उसके बाद क्रमश: [[मध्य प्रदेश]] और [[उत्तर प्रदेश]] राज्य में। [[भारत सरकार]] द्वारा सन [[1952]] ई. में निर्धारित "राष्ट्रीय वन नीति" के तहत देश के 33.3 % क्षेत्र पर वन होने चाहिए। लेकिन वर्तमान समय में ऐसा नहीं है। वन-भूमि पर उद्योग-धंधों तथा मकानों का निर्माण, वनों को खेती के काम में लाना और लकड़ियों की बढती माँग के कारण वनों की अवैध कटाई आदि वनों के नष्ट होने के प्रमुख कारण है। इसलिए अब समय आ गया है कि देश की "राष्ट्रीय निधि" को बचाए और इनका संरक्षण करें। हमें वृक्षारोपण (पेड़-पौधे लगाना) को बढ़ावा देना चाहिए। इसके सम्बन्ध में प्रसिद्ध पर्यावरणविद [[कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी]] ने कहा था कि -"वृक्षों का अर्थ है जल, जल का अर्थ है रोटी और रोटी ही जीवन है।" | ||
==इतिहास== | ==इतिहास== | ||
विश्व वानिकी दिवस मनाने का विचार [[1971]] में यूरोपीय कृषि परिसंघ की 23वीं महासभा में आया। वानिकी के तीन महत्वपूर्ण तत्वों- सुरक्षा, उत्पादन और वनविहार के बारे में लोगों को जानकारियां देने के लिए उसी साल बाद में 21 मार्च के [[दिन]] को यानि दक्षिणी गोलार्ध में शरद विषव और दक्षिण गोलार्ध में वसंत विषव के दिन को चुना गया। वन प्रागैतिहासिक काल से ही मानवजाति के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण रहा है। वन का मतलब केवल पेड़ नहीं है बल्कि यह एक संपूर्ण जटिल जीवंत समुदाय है। वन की छतरी के नीचे कई सारे पेड़ और जीव-जंतु रहते हैं। वनभूमि [[जीवाणु]], [[कवक]] जैसे कई प्रकार के अकशेरूकी जीवों के घर हैं। ये जीव भूमि और वन में पोषक तत्वों के पुनर्चक्रण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। | विश्व वानिकी दिवस मनाने का विचार [[1971]] में यूरोपीय कृषि परिसंघ की 23वीं महासभा में आया। वानिकी के तीन महत्वपूर्ण तत्वों- सुरक्षा, उत्पादन और वनविहार के बारे में लोगों को जानकारियां देने के लिए उसी साल बाद में [[21 मार्च]] के [[दिन]] को यानि दक्षिणी गोलार्ध में शरद विषव और दक्षिण गोलार्ध में वसंत विषव के दिन को चुना गया। वन प्रागैतिहासिक काल से ही मानवजाति के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण रहा है। वन का मतलब केवल पेड़ नहीं है बल्कि यह एक संपूर्ण जटिल जीवंत समुदाय है। वन की छतरी के नीचे कई सारे पेड़ और जीव-जंतु रहते हैं। वनभूमि [[जीवाणु]], [[कवक]] जैसे कई प्रकार के अकशेरूकी जीवों के घर हैं। ये जीव भूमि और वन में पोषक तत्वों के पुनर्चक्रण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। | ||
==वनों से लाभ== | ==वनों से लाभ== | ||
वन पर्यावरण, लोगों और जंतुओं को कई प्रकार के लाभ पहुंचाते हैं। वन कई प्रकार के उत्पाद प्रदान करते हैं जैसे फर्नीचर, घरों, रेलवे स्लीपर, प्लाईवुड, ईंधन या फिर चारकोल एव [[काग़ज़]] के लिए लकड़ी, सेलोफेन, प्लास्टिक, रेयान और नायलॉन आदि के लिए प्रस्संकृत उत्पाद, रबर के पेड़ से [[रबर]] आदि। [[फल]], सुपारी और [[मसाला|मसाले]] भी वनों से एकत्र किए जाते हैं। कर्पूर, सिनचोना जैसे कई औषधीय पौधे भी वनों में ही पाये जाते हैं। पेड़ों की जड़ें [[मिट्टी]] को जकड़े रखती है और इस प्रकार वह भारी बारिश के दिनों में मृदा का अपरदन और बाढ भी रोकती हैं। पेड़, कार्बन डाइ आक्साइड अवशोषित करते हैं और [[ऑक्सीजन]] छोड़ते हैं जिसकी मानवजाति को सांस लेने के लिए | वन पर्यावरण, लोगों और जंतुओं को कई प्रकार के लाभ पहुंचाते हैं। वन कई प्रकार के उत्पाद प्रदान करते हैं जैसे फर्नीचर, घरों, रेलवे स्लीपर, प्लाईवुड, ईंधन या फिर चारकोल एव [[काग़ज़]] के लिए लकड़ी, सेलोफेन, प्लास्टिक, रेयान और नायलॉन आदि के लिए प्रस्संकृत उत्पाद, रबर के पेड़ से [[रबर]] आदि। [[फल]], सुपारी और [[मसाला|मसाले]] भी वनों से एकत्र किए जाते हैं। कर्पूर, सिनचोना जैसे कई औषधीय पौधे भी वनों में ही पाये जाते हैं। पेड़ों की जड़ें [[मिट्टी]] को जकड़े रखती है और इस प्रकार वह भारी बारिश के दिनों में मृदा का अपरदन और बाढ भी रोकती हैं। पेड़, कार्बन डाइ आक्साइड अवशोषित करते हैं और [[ऑक्सीजन]] छोड़ते हैं जिसकी मानवजाति को सांस लेने के लिए ज़रूरत पड़ती है। वनस्पति स्थानीय और वैश्विक जलवायु को प्रभावित करती है। पेड़ [[पृथ्वी]] के लिए सुरक्षा कवच का काम करते हैं और जंगली जंतुओं को आश्रय प्रदान करते हैं। वे सभी जीवों को [[सूर्य]] की [[गर्मी]] से बचाते हैं और पृथ्वी के तापमान को नियंत्रित करते हैं। वन [[प्रकाश]] का परावर्तन घटाते हैं, [[ध्वनि]] को नियंत्रित करते हैं और [[वायु|हवा]] की दिशा को बदलने एवं गति को कम करने में मदद करते हैं। इसी प्रकार वन्यजीव भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि ये हमारी जीवनशैली के महत्वपूर्ण अंग हैं। | ||
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जंगल हमारे जीवन की बुनियाद हैं जो हमारे पर्यावरण के साथ-साथ आर्थिक और सामाजिक स्थिति को बनाये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वनों का आशय सामान्य रूप से वृक्षों के समूह से होता है लेकिन वास्तव में ये विभिन्न जीवों का एक जटिल समुदाय है। एक-दूसरे पर परस्पर आश्रित अनेक पौधे और जानवर वनों में निवास करते हैं तथा वन के भू-तल पर अनेक प्रकार के छोटे-छोटे जीव-जंतु, [[जीवाणु]] और फंगस पाये जाते हैं जो [[मिट्टी]] और पौधों के मध्य पोषक तत्वों का आदान-प्रदान करने में मदद करते हैं। वनों से मानव समुदाय को अनेक बहुमूल्य वस्तुएं प्राप्त होती हैं। जिनमें स्वच्छ जल, वन्य प्राणियों के रहने के लिए वास-स्थान, लकड़ी, भोजन, फर्नीचर, कागज, सुन्दर परिदृश्य सहित अनेक पुरातात्विक और ऐतिहासिक स्थल शामिल हैं। वनों की सघनता के मामले में [[छत्तीसगढ़]] एक समृद्ध राज्य है। यह संपन्नता विरासत में मिली है। लेकिन इससे अधिक यहां के लोगों ने इसकी महत्ता को समझा और संरक्षण किया है। राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल एक लाख 35 हजार 224 वर्ग किलोमीटर में से 59 हजार 772 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र वनों से घिरा हुआ है जो कि कुल भौगोलिक क्षेत्र का 44.2 प्रतिशत होता है। वन आवरण की दृष्टि से छत्तीसगढ़ [[भारत]] में तीसरे स्थान पर है। इससे अधिक वनक्षेत्र [[मध्य प्रदेश]] (76013 वर्ग किलोमीटर) तथा [[अरुणाचल प्रदेश]] (67 हजार 777 वर्ग किलोमीटर) है। छत्तीसगढ़ में चार प्रमुख नदी प्रणालियां- [[महानदी]], [[गोदावरी नदी|गोदावरी]], [[नर्मदा नदी|नर्मदा]] और [[वेनगंगा नदी|वेनगंगा]] का जलग्रहण क्षेत्र शामिल है। महानदी, [[इंद्रावती नदी|इंद्रावती]], हसदेव, [[शिवनाथ नदी|शिवनाथ]], [[अरपा नदी|अरपा]], [[ईब नदी|ईब]] राज्य की प्रमुख नदियां हैं। वनाें की अधिकता के कारण ही राज्य की औसत वार्षिक [[वर्षा]] 1200 से 1500 मिली मीटर होती है। | |||
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विश्व वानिकी दिवस
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विवरण | विश्व वानिकी दिवस पहली बार वर्ष 1971 ई. में इस उद्देश्य से मनाया गया था कि दुनिया के तमाम देश अपनी मातृभूमि की मिट्टी और वन-सम्पदा का महत्व समझे तथा अपने-अपने देश के वनों और जंगलों का संरक्षण करें। |
तिथि | 21 मार्च |
पहली बार | 1971 ई. |
उद्देश्य | विश्व के सभी देश अपनी वन-सम्पदा की तरफ ध्यान दें और वनों को संरक्षण प्रदान करें। |
अन्य जानकारी | भारत सरकार द्वारा सन 1952 ई. में निर्धारित "राष्ट्रीय वन नीति" के तहत देश के 33.3 % क्षेत्र पर वन होने चाहिए। लेकिन वर्तमान समय में ऐसा नहीं है। |
अद्यतन | 18:08, 28 जनवरी 2015 (IST)
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विश्व वानिकी दिवस (अंग्रेज़ी: World Forest Day) प्रतिवर्ष 21 मार्च को मनाया जाता है। विश्व वानिकी दिवस पहली बार वर्ष 1971 ई. में इस उद्देश्य से मनाया गया था कि दुनिया के तमाम देश अपनी मातृभूमि की मिट्टी और वन-सम्पदा का महत्व समझे तथा अपने - अपने देश के वनों और जंगलों का संरक्षण करें। अगर हम भारत की बात करें तो 22.7% भूमि पर ही वनों और जंगलों का अस्तित्व रह गया। भारत में वन महोत्सव जुलाई 1950 से ही मनाया जा रहा है। इसकी शुरुआत तत्कालीन गृहमंत्री कुलपति कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी ने की थी।
उद्देश्य
विश्व वानिकी दिवस का उद्देश्य है कि विश्व के सभी देश अपनी वन-सम्पदा की तरफ ध्यान दें और वनों को संरक्षण प्रदान करें। भारत में भी वन-सम्पदा पर्याप्त रूप से है। भारत में 657.6 लाख हेक्टेयर भूमि (22.7 %) पर वन पाए जाते हैं। वर्तमान समय में भारत 19.39 % भूमि पर वनों का विस्तार है और छत्तीसगढ़ राज्य में सबसे ज्यादा वन-सम्पदा है उसके बाद क्रमश: मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश राज्य में। भारत सरकार द्वारा सन 1952 ई. में निर्धारित "राष्ट्रीय वन नीति" के तहत देश के 33.3 % क्षेत्र पर वन होने चाहिए। लेकिन वर्तमान समय में ऐसा नहीं है। वन-भूमि पर उद्योग-धंधों तथा मकानों का निर्माण, वनों को खेती के काम में लाना और लकड़ियों की बढती माँग के कारण वनों की अवैध कटाई आदि वनों के नष्ट होने के प्रमुख कारण है। इसलिए अब समय आ गया है कि देश की "राष्ट्रीय निधि" को बचाए और इनका संरक्षण करें। हमें वृक्षारोपण (पेड़-पौधे लगाना) को बढ़ावा देना चाहिए। इसके सम्बन्ध में प्रसिद्ध पर्यावरणविद कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी ने कहा था कि -"वृक्षों का अर्थ है जल, जल का अर्थ है रोटी और रोटी ही जीवन है।"
इतिहास
विश्व वानिकी दिवस मनाने का विचार 1971 में यूरोपीय कृषि परिसंघ की 23वीं महासभा में आया। वानिकी के तीन महत्वपूर्ण तत्वों- सुरक्षा, उत्पादन और वनविहार के बारे में लोगों को जानकारियां देने के लिए उसी साल बाद में 21 मार्च के दिन को यानि दक्षिणी गोलार्ध में शरद विषव और दक्षिण गोलार्ध में वसंत विषव के दिन को चुना गया। वन प्रागैतिहासिक काल से ही मानवजाति के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण रहा है। वन का मतलब केवल पेड़ नहीं है बल्कि यह एक संपूर्ण जटिल जीवंत समुदाय है। वन की छतरी के नीचे कई सारे पेड़ और जीव-जंतु रहते हैं। वनभूमि जीवाणु, कवक जैसे कई प्रकार के अकशेरूकी जीवों के घर हैं। ये जीव भूमि और वन में पोषक तत्वों के पुनर्चक्रण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
वनों से लाभ
वन पर्यावरण, लोगों और जंतुओं को कई प्रकार के लाभ पहुंचाते हैं। वन कई प्रकार के उत्पाद प्रदान करते हैं जैसे फर्नीचर, घरों, रेलवे स्लीपर, प्लाईवुड, ईंधन या फिर चारकोल एव काग़ज़ के लिए लकड़ी, सेलोफेन, प्लास्टिक, रेयान और नायलॉन आदि के लिए प्रस्संकृत उत्पाद, रबर के पेड़ से रबर आदि। फल, सुपारी और मसाले भी वनों से एकत्र किए जाते हैं। कर्पूर, सिनचोना जैसे कई औषधीय पौधे भी वनों में ही पाये जाते हैं। पेड़ों की जड़ें मिट्टी को जकड़े रखती है और इस प्रकार वह भारी बारिश के दिनों में मृदा का अपरदन और बाढ भी रोकती हैं। पेड़, कार्बन डाइ आक्साइड अवशोषित करते हैं और ऑक्सीजन छोड़ते हैं जिसकी मानवजाति को सांस लेने के लिए ज़रूरत पड़ती है। वनस्पति स्थानीय और वैश्विक जलवायु को प्रभावित करती है। पेड़ पृथ्वी के लिए सुरक्षा कवच का काम करते हैं और जंगली जंतुओं को आश्रय प्रदान करते हैं। वे सभी जीवों को सूर्य की गर्मी से बचाते हैं और पृथ्वी के तापमान को नियंत्रित करते हैं। वन प्रकाश का परावर्तन घटाते हैं, ध्वनि को नियंत्रित करते हैं और हवा की दिशा को बदलने एवं गति को कम करने में मदद करते हैं। इसी प्रकार वन्यजीव भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि ये हमारी जीवनशैली के महत्वपूर्ण अंग हैं।
वन-सम्पदा
जंगल हमारे जीवन की बुनियाद हैं जो हमारे पर्यावरण के साथ-साथ आर्थिक और सामाजिक स्थिति को बनाये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वनों का आशय सामान्य रूप से वृक्षों के समूह से होता है लेकिन वास्तव में ये विभिन्न जीवों का एक जटिल समुदाय है। एक-दूसरे पर परस्पर आश्रित अनेक पौधे और जानवर वनों में निवास करते हैं तथा वन के भू-तल पर अनेक प्रकार के छोटे-छोटे जीव-जंतु, जीवाणु और फंगस पाये जाते हैं जो मिट्टी और पौधों के मध्य पोषक तत्वों का आदान-प्रदान करने में मदद करते हैं। वनों से मानव समुदाय को अनेक बहुमूल्य वस्तुएं प्राप्त होती हैं। जिनमें स्वच्छ जल, वन्य प्राणियों के रहने के लिए वास-स्थान, लकड़ी, भोजन, फर्नीचर, कागज, सुन्दर परिदृश्य सहित अनेक पुरातात्विक और ऐतिहासिक स्थल शामिल हैं। वनों की सघनता के मामले में छत्तीसगढ़ एक समृद्ध राज्य है। यह संपन्नता विरासत में मिली है। लेकिन इससे अधिक यहां के लोगों ने इसकी महत्ता को समझा और संरक्षण किया है। राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल एक लाख 35 हजार 224 वर्ग किलोमीटर में से 59 हजार 772 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र वनों से घिरा हुआ है जो कि कुल भौगोलिक क्षेत्र का 44.2 प्रतिशत होता है। वन आवरण की दृष्टि से छत्तीसगढ़ भारत में तीसरे स्थान पर है। इससे अधिक वनक्षेत्र मध्य प्रदेश (76013 वर्ग किलोमीटर) तथा अरुणाचल प्रदेश (67 हजार 777 वर्ग किलोमीटर) है। छत्तीसगढ़ में चार प्रमुख नदी प्रणालियां- महानदी, गोदावरी, नर्मदा और वेनगंगा का जलग्रहण क्षेत्र शामिल है। महानदी, इंद्रावती, हसदेव, शिवनाथ, अरपा, ईब राज्य की प्रमुख नदियां हैं। वनाें की अधिकता के कारण ही राज्य की औसत वार्षिक वर्षा 1200 से 1500 मिली मीटर होती है।
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