शूर्पारक: Difference between revisions

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*शूर्पारक (सुप्पारक) जातक में [[भरुकच्छ]] के व्यापारियों की दूर-दूर के विचित्र [[समुद्र|समुद्रों]] की यात्रा करने का रोमांचकारी वर्णन है।<ref>अग्निमाली, नलमाली</ref> इस जातक से सूचित होता है कि शूर्पारक 'भृगुकच्छ प्रदेश' का बंदरगाह था। इस जातक में भरुकच्छ के राजपूत्र का नाम 'सुप्पारक कुमार' कहा गया है।
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Latest revision as of 11:53, 8 June 2018

शूर्पारक अथवा 'सोपारा' का उल्लेख महाभारत, शांतिपर्व[1] में हुआ है। इसके अनुसार शूर्पारक देश को महर्षि परशुराम के लिए सागर ने रिक्त कर दिया था-

'ततः शूर्पारकं देशं सागरस्तस्य निर्ममे, सहसा जामदग्नस्य सोऽपरान्तमहीतलम्।'

'ततः स रत्नमादाय पुनः प्रायाद युधाम्पतिः ततः शूर्पारकं चैव तालाकटमथापि च।'

  • महाभारत, वनपर्व[4] में पांडवों की शूर्पारक यात्रा का उल्लेख है।
  • मौर्य सम्राट अशोक के 14 शिलालेखों में से केवल 8वां यहां एक शिला पर अंकित है, जिससे मौर्य काल में इस स्थान की महत्ता सूचित होती है। उस समय यह अपरान्त का समुद्रपत्तन[5] रहा होगा।[2]
  • शूर्पारक (सुप्पारक) जातक में भरुकच्छ के व्यापारियों की दूर-दूर के विचित्र समुद्रों की यात्रा करने का रोमांचकारी वर्णन है।[6] इस जातक से सूचित होता है कि शूर्पारक 'भृगुकच्छ प्रदेश' का बंदरगाह था। इस जातक में भरुकच्छ के राजपूत्र का नाम 'सुप्पारक कुमार' कहा गया है।
  • 'बुद्धचरित'[7] में भी बुद्ध का शूर्पारक जाना वर्णित है।
  • एक अन्य विवरण के अनुसार शूर्पारक बीजापुर ज़िले के जमखंडी के समीप का स्थान है। जमदग्नि ऋषि के पुत्र परशुराम जी यहीं रहते थे। इस स्थान का नाम शूरपल्य है।[8]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. शांतिपर्व 49,66.67
  2. 2.0 2.1 ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 906 |
  3. सभापर्व 31,65
  4. वनपर्व 188,8
  5. बंदरगाह
  6. अग्निमाली, नलमाली
  7. बुद्धचरित 21, 22
  8. पौराणिक कोश |लेखक: राणा प्रसाद शर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 558, परिशिष्ट 'क' |

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