गीता 3:38: Difference between revisions

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Revision as of 14:50, 21 March 2010

गीता अध्याय-3 श्लोक-38 / Gita Chapter-3 Verse-38

प्रसंग-


पूर्व श्लोक में 'तेन' पद 'काम' का और 'इदम्' पद 'ज्ञान' का वाचक है- इस बात को स्पष्ट करते हुए उस काम को अग्नि की भाँति कभी पूर्ण न होने वाला बतलाते हैं-


धूमेनाव्रियते वह्रिर्यथादर्शो मलेन च ।
यथोल्बेनावृतो गर्भस्तथा तेनेदमावृम् ।।38।।



जिस प्रकार धुएँ से अग्नि और मैल से दर्पण ढका जाता है तथा जिस प्रकार जेर से गर्भ ढका रहता है, वैसे ही उस काम के द्वारा यह ज्ञान ढका रहता है ।।38।।

As a flame is covered by smoke, mirror by dirt, and embryo by the amnion, so is knowledge coverd by it (desire) (38)


यथा = जैसे; धूमेन = धूएं से; वहि: = अग्नि; च = और; मलेन = मल से; आदर्श: = दर्पण; आव्रियते = ढका जाता है (तथा); यथा =जैसे; उल्बेन =जेर से; आवृत: = ढका हुआ है; तथा = वैसे ही; तेन = उस काम के द्वारा; इदम् = यह ज्ञान; आवृतम् = ढका हुआ है।



अध्याय तीन श्लोक संख्या
Verses- Chapter-3

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14, 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)