गीता 3:27: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replace - "<td> {{महाभारत}} </td> </tr> <tr> <td> {{गीता2}} </td>" to "<td> {{गीता2}} </td> </tr> <tr> <td> {{महाभारत}} </td>")
m (Text replace - "{{गीता2}}" to "{{प्रचार}} {{गीता2}}")
Line 52: Line 52:
<tr>
<tr>
<td>
<td>
{{प्रचार}}
{{गीता2}}
{{गीता2}}
</td>
</td>

Revision as of 05:54, 14 June 2011

गीता अध्याय-3 श्लोक-27 / Gita Chapter-3 Verse-27

प्रकृते: क्रियमाणानि गुणै: कर्माणि सर्वश:।
अहंकारविमूढात्मा कर्ताहमिति मन्यते ।।27।।



वास्तव में सम्पूर्ण कर्म सब प्रकार से प्रकृति के गुणों द्वारा किये जाते हैं तो भी जिसका अन्त:करण अहंकार से मोहित हो रहा है, ऐसा अज्ञानी 'मैं कर्ता हूँ' ऐसा मानता है ।।27।।

All actions are being performed by the modes of prakrti (Primordial matter). The fool, whose mind is deluded by egoism, thinks: “I am the doer.”


सर्वश: = संपूर्ण ; कर्माणि = कर्म ; प्रकृते: = प्रकृति के ; गुणै: = गुणोंद्वार ; कि्यमाणानि = किये हुए हैं (तो भी) ; अहंकारविमूढात्मा = अहंकारसे मोहित हुए अन्त:करणवाला पुरुष ; अहम् = मैं ; कर्ता = कर्ता हूं ; इति = ऐसे ; मन्यते = मान लेता है ;



अध्याय तीन श्लोक संख्या
Verses- Chapter-3

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14, 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)