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Revision as of 07:10, 29 June 2010
राजा विराट
राजा विराट के ही नाम से विराट नगर राजस्थान प्रान्त के अलवर ज़िले का एक शहर है। विराट नगर राजस्थान में उत्तर मे स्थित है। यह नगरी प्राचीन मत्स्य राज्य की राजधानी रही है। राजस्थान की राजधानी जयपुर से क़रीब 120 कि.मी. की दूरी पर है। विराट नगर अरावली की पहाड़ियों के मध्य में बसा है। विराट नगर से 90 कि मी की दूरी पर जयपुर और 60 कि मी पर अलवर, और 40 कि मी पर शाहपुरा स्थित है।
मत्स्य 16 महाजनपदों में से एक है। इसमें राजस्थान के अलवर, भरतपुर तथा जयपुर ज़िले के क्षेत्र शामिल थे। महाभारत काल का एक प्रसिद्ध जनपद जिसकी स्थिति अलवर-जयपुर के परिवर्ती प्रदेश में मानी गई है। इस देश में विराट का राज था तथा वहाँ की राजधानी उपप्लव नामक नगर में थी। विराट नगर मत्स्य देश का दूसरा प्रमुख नगर था।
- उत्तरा राजा विराट की पुत्री थीं।
- जब पाण्डव अज्ञातवास कर रहे थे, उस समय अर्जुन वृहन्नला नाम ग्रहण करके रह रहे थे।
- वृहन्नला ने उत्तरा को नृत्य, संगीत आदि की शिक्षा दी थी।
- जिस समय कौरवों ने राजा विराट की गायें हस्तगत कर ली थीं, उस समय अर्जुन ने कौरवों से युद्ध करके अर्पूव पराक्रम दिखाया था।
- अर्जुन की उस वीरता से प्रभावित होकर राजा विराट ने अपनी कन्या उत्तरा का विवाह अर्जुन से करने का प्रस्ताव रखा था किन्तु अर्जुन ने यह कहकर कि उत्तरा उनकी शिष्या होने के कारण उनकी पुत्री के समान थी, उस सम्बन्ध को अस्वीकार कर दिया था।
- कालान्तर में उत्तरा का विवाह अभिमन्यु के साथ सम्पन्न हुआ था।
- अभिमन्यु का बाल्यकाल अपनी ननिहाल द्वारका में ही बीता। उनका विवाह महाराज विराट की पुत्री उत्तरा से हुआ।
विराट का साला कीचक क्षत्रिय पिता तथा ब्राह्मणी माता का सूत पुत्र कहलाता है। कीचक भी सूत जाति का था। वह केकय राजा (सूतों के अधिपति) के मालवी नामक पत्नी के पूत्रों में सबसे बड़ा था। केकय की दूसरी रानी की कन्या का नाम सुदेष्णा था- वही अपने अनेक भाइयों की एकमात्र बहन थी जिसका विवाह राजा विराट से हुआ। उसके भाइयों की संख्या बहुत अधिक थी तथा सभी शक्तिशाली होकर विराट के साथियों में थे।
महाभारत महाकाव्य में 18 पर्व हैं जिनमें से विराट पर्व में अज्ञातवास की अवधि में विराट नगर में रहने के लिए गुप्तमन्त्रणा, धौम्य द्वारा उचित आचरण का निर्देश, युधिष्ठिर द्वारा भावी कार्यक्रम का निर्देश, विभिन्न नाम और रूप से विराट के यहाँ निवास, भीमसेन द्वारा जीमूत नामक मल्ल तथा कीचक और उपकीचकों का वध, दुर्योधन के गुप्तचरों द्वारा पाण्डवों की खोज तथा लौटकर कीचकवध की जानकारी देना, त्रिगर्तों और कौरवों द्वारा मत्स्य देश पर आक्रमण, कौरवों द्वारा विराट की गायों का हरण, पाण्डवों का कौरव-सेना से युद्ध, अर्जुन द्वारा विशेष रूप से युद्ध और कौरवों की पराजय, अर्जुन और कुमार उत्तर का लौटकर विराट की सभा में आना, विराट का युधिष्ठिरादि पाण्डवों से परिचय तथा अर्जुन द्वारा उत्तरा को पुत्रवधू के रूप में स्वीकार करना वर्णित है।