आसकरन: Difference between revisions
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*आसकरन के विषय में यह प्रसिद्ध है कि ये ईश्वर की आराधना करते समय पूर्णतया तन्मय हो जाते थे। | |||
*एक बार इनके एक शत्रु ने इन पर आक्रमण कर दिया। इनकी तन्मयता भंग करने के लिए उसने तलवार से इनके पैर की एड़ी काट दी, लेकिन इतने पर भी आसकरन की ध्यानावस्था पर कोई प्रभव नहीं पड़ा। इनकी ईश्वर [[भक्ति]] देखकर वह इतना अधिक प्रभावित हुआ कि इनके राज्य की विजय करने की भावना का त्याग कर वह वापस चला गया।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी साहित्य कोश, भाग 2|लेखक= |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी|संकलन= भारतकोश पुस्तकालय|संपादन= डॉ. धीरेंद्र वर्मा|पृष्ठ संख्या=37|url=}}</ref> | *एक बार इनके एक शत्रु ने इन पर आक्रमण कर दिया। इनकी तन्मयता भंग करने के लिए उसने तलवार से इनके पैर की एड़ी काट दी, लेकिन इतने पर भी आसकरन की ध्यानावस्था पर कोई प्रभव नहीं पड़ा। इनकी ईश्वर [[भक्ति]] देखकर वह इतना अधिक प्रभावित हुआ कि इनके राज्य की विजय करने की भावना का त्याग कर वह वापस चला गया।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी साहित्य कोश, भाग 2|लेखक= |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी|संकलन= भारतकोश पुस्तकालय|संपादन= डॉ. धीरेंद्र वर्मा|पृष्ठ संख्या=37|url=}}</ref> | ||
Revision as of 06:07, 26 May 2015
आसकरन कछवाहा राजा पृथ्वीराज की वंश परम्परा में राजा भीमसिंह के पुत्र एवं एक उच्च कोटि के वैष्णव तथा कील्हदेव स्वामी के शिष्य थे।
- ये नरवरगढ़ के अधिपति थे। इनके उपास्य देव युगलमोहन (जानकी मोहनराम तथा राधामोहन कृष्ण) थे।
- आसकरन के विषय में यह प्रसिद्ध है कि ये ईश्वर की आराधना करते समय पूर्णतया तन्मय हो जाते थे।
- एक बार इनके एक शत्रु ने इन पर आक्रमण कर दिया। इनकी तन्मयता भंग करने के लिए उसने तलवार से इनके पैर की एड़ी काट दी, लेकिन इतने पर भी आसकरन की ध्यानावस्था पर कोई प्रभव नहीं पड़ा। इनकी ईश्वर भक्ति देखकर वह इतना अधिक प्रभावित हुआ कि इनके राज्य की विजय करने की भावना का त्याग कर वह वापस चला गया।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हिन्दी साहित्य कोश, भाग 2 |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |संपादन: डॉ. धीरेंद्र वर्मा |पृष्ठ संख्या: 37 |