गीता 4:40: Difference between revisions
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इस प्रकार अविवेक और अश्रद्धा के सहित संशय को ज्ञान प्राप्ति में बाधक बतलाकर, अब विवेक द्वारा संशय का नाश करके कर्मयोग का अनुष्ठान करने में <balloon link="अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे। अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर | इस प्रकार अविवेक और अश्रद्धा के सहित संशय को ज्ञान प्राप्ति में बाधक बतलाकर, अब विवेक द्वारा संशय का नाश करके कर्मयोग का अनुष्ठान करने में <balloon link="अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे। अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर में जीतने वाला वो ही था। | ||
¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> का उत्साह उत्पन्न करने के लिये संशयरहित तथा वश में किये हुए अन्त:करण वाले कर्मयोगी की प्रशंसा करते हैं- | ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> का उत्साह उत्पन्न करने के लिये संशयरहित तथा वश में किये हुए अन्त:करण वाले कर्मयोगी की प्रशंसा करते हैं- | ||
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Revision as of 07:52, 20 February 2011
गीता अध्याय-4 श्लोक-40 / Gita Chapter-4 Verse-40
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