गीता 4:18: Difference between revisions
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इस प्रकार कर्म में अकर्म और अकर्म में कर्म दर्शन का | इस प्रकार कर्म में अकर्म और अकर्म में कर्म दर्शन का महत्त्व बतलाकर अब पाँच श्लोक में भिन्न-भिन्न शैली से उपर्युक्त कर्म में अकर्म और अकर्म में कर्म दर्शनपूर्वक कर्म करने वाले सिद्ध और साधक पुरुषों की असंगता का वर्णन करके उस विषय को स्पष्ट करते हैं- | ||
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Revision as of 10:26, 13 March 2011
गीता अध्याय-4 श्लोक-18 / Gita Chapter-4 Verse-18
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