गीता 4:26: Difference between revisions

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Revision as of 05:55, 14 June 2011

गीता अध्याय-4 श्लोक-26 / Gita Chapter-4 Verse-26

प्रसंग-


अब आत्म-संयम योग रूप यज्ञ का वर्णन करते हैं-


श्रोत्रादीनीन्द्रियाण्यन्ये संयमाग्निषु जुहृति ।
शब्दादीन्विषयानन्य इन्द्रियाग्निषु जुहृति ।।26।।




अन्य योगीजन श्रोत्र आदि समस्त इन्द्रियों को संयम रूप अग्नियों में हवन किया करते हैं और दूसरे योगी लोग शब्दादि समस्त विषयों को इन्द्रिय रूप अग्नियों में हवन किया करते हैं ।।26।।


Others offer as sacrifice their senses of hearing etc., into the fires of self-discipline. Other yogis, again, offer sound and other objects of perception into the fires of the senses.(26)


अन्ये = अन्य योगीजन; श्रोत्रादीनि = श्रोत्रादिक; इन्दियाणि = सब इन्द्रियों को; संयमान्गिषु = संयम अर्थात् स्वाधीनतारूप अग्नि में; जुहृति = हवन करते हैं अर्थात् इन्द्रियों को विषयों से रोककर अपने वश में कर लेते हैं; अन्ये = और दूसरे योगीलोग; शब्दादीन् = शब्दादिक;विषयान् = विषयों को; इन्द्रियान्गिषु = इन्द्रियरूप अन्नि में;



अध्याय चार श्लोक संख्या
Verses- Chapter-4

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29, 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)