गीता 1:42: Difference between revisions

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Latest revision as of 13:26, 3 January 2013

गीता अध्याय-1 श्लोक-42 / Gita Chapter-1 Verse-42

प्रसंग-


वर्णसंकरकारक दोषों से क्या हानि होती है, अब उसे बतलाते हैं-


संकरो नरकायैव कुलघ्नानां कुलस्य च ।
पतन्ति पितरो ह्रोषां लुप्तपिण्डोदकक्रिया: ।।42।।



वर्णसंकर कुलघातियों को और कुल को नरक में ले जाने के लिये ही होता है। लुप्त हुई पिण्ड और जल की क्रिया वाले अर्थात् श्राद्ध और तर्पण से वंचित इनके पितर लोग भी अधोगति को प्राप्त होते हैं ।।42।।

This army Admixture of blood damns the destroyers of the race as well as the race itself. Deprived of the offerings of rice and water (sraddha, tarpana, etc.,) the manes of their race also fall.


संकर: = वर्णसंकर; कुलघ्रानाम् = कुल घातियों को; च =और; कुलस्य = कुल को; नरकाय = नरक में ले जाने के लिये; एव = ही(होता है); लुप्तपिण्डोदकक्रिया: = लोप हुई पिण्ड और जल की क्रिया वाले; एषाम् = इनके; पितर: = पितरलोग; हि = भी; पतन्ति =गिर जाते हैं;



अध्याय एक श्लोक संख्या
Verses- Chapter-1

1 | 2 | 3 | 4, 5, 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17, 18 | 19 | 20, 21 | 22 | 23 | 24, 25 | 26 | 27 | 28, 29 | 30 | 31 | 32 | 33, 34 | 35 | 36 | 37 | 38, 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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