गीता 5:11: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "{{गीता2}}" to "{{प्रचार}} {{गीता2}}") |
No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<table class="gita" width="100%" align="left"> | <table class="gita" width="100%" align="left"> | ||
<tr> | <tr> | ||
Line 9: | Line 8: | ||
'''प्रसंग-''' | '''प्रसंग-''' | ||
---- | ---- | ||
इस प्रकार के कर्म करने वाला भक्ति प्रधान कर्मयोगी पापों से लिप्त नहीं होता और कर्म प्रधान कर्मयोगी का अन्त:करण शुद्ध हो जाता है, यह सुनने पर इस बात की जिज्ञासा होती है कि कर्मयोग का यह अन्त:करण शुद्धि रूप इतना ही फल है, या इसके अतिरिक्त कुछ विशेष फल भी हैं ? एवं इस प्रकार कर्म न करके सकामभाव से शुभ कर्म करने में क्या हानि है ? अतएव अब इसी बात को स्पष्ट रूप से समझाने के लिये भगवान् कहते हैं – | इस प्रकार के कर्म करने वाला [[भक्ति]] प्रधान कर्मयोगी पापों से लिप्त नहीं होता और कर्म प्रधान कर्मयोगी का अन्त:करण शुद्ध हो जाता है, यह सुनने पर इस बात की जिज्ञासा होती है कि कर्मयोग का यह अन्त:करण शुद्धि रूप इतना ही फल है, या इसके अतिरिक्त कुछ विशेष फल भी हैं ? एवं इस प्रकार कर्म न करके सकामभाव से शुभ कर्म करने में क्या हानि है ? अतएव अब इसी बात को स्पष्ट रूप से समझाने के लिये भगवान् कहते हैं – | ||
---- | ---- | ||
<div align="center"> | <div align="center"> | ||
Line 58: | Line 57: | ||
<tr> | <tr> | ||
<td> | <td> | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | |||
<references/> | |||
==संबंधित लेख== | |||
{{गीता2}} | {{गीता2}} | ||
</td> | </td> |
Revision as of 13:32, 4 January 2013
गीता अध्याय-5 श्लोक-11 / Gita Chapter-5 Verse-11
|
||||
|
||||
|
||||
|
||||
टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
||||