गीता 9:29: Difference between revisions
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'''प्रसंग-''' | '''प्रसंग-''' | ||
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उपर्युक्त प्रकार से भगवान् की भक्ति करने वाले को भगवान् की प्राप्ति होती है, दूसरों को नहीं होती – इस कथन से भगवान् में विषमता के दोष की आशंका हो सकती | उपर्युक्त प्रकार से भगवान् की [[भक्ति]] करने वाले को भगवान् की प्राप्ति होती है, दूसरों को नहीं होती – इस कथन से भगवान् में विषमता के दोष की आशंका हो सकती है। अतएव उसका निवारण करते हुए भगवान् कहते हैं- | ||
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मैं सब भूतों में समभाव से व्यापक हूँ, न कोई मेरा अप्रिय है और न प्रिय है; परन्तु जो भक्त मुझको प्रेम से भजते हैं, वे मुझमें हैं और मैं भी उनमें प्रत्यक्ष प्रकट हूँ ।।29।। | मैं सब भूतों में समभाव से व्यापक हूँ, न कोई मेरा अप्रिय है और न प्रिय है; परन्तु जो [[भक्त]] मुझको प्रेम से भजते हैं, वे मुझमें हैं और मैं भी उनमें प्रत्यक्ष प्रकट हूँ ।।29।। | ||
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | |||
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==संबंधित लेख== | |||
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Latest revision as of 11:21, 5 January 2013
गीता अध्याय-9 श्लोक-29 / Gita Chapter-9 Verse-29
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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