हेमू: Difference between revisions

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'''हेमू / हेम चन्द्र विक्रमादित्य'''<br />
'''हेमचन्द्र विक्रमादित्य''' (संक्षिप्त नाम- 'हेमू') [[भारत]] का अंतिम [[हिन्दू]] राजा था। '[[भारतीय इतिहास]] के वीर पुरुषों में वह गिना जाता है। "मध्यकालीन भारत का नैपोलियन" कहा जाने वाला हेमू अपनी असाधारण प्रतिभा के बल पर एक साधारण व्यापारी से प्रधानमंत्री एवं सेनाध्यक्ष की पदवी तक पहुँचा था। यह ऐतिहासिक सफर उसने एक अजेय महानायक के रूप में पूरा किया था। हेमू ने 22 युद्ध लड़े और इनमें से किसी में भी पराजय का सामना नहीं किया। उसके अपार पराक्रम तथा वीरता के कारण ही उसे 'विक्रमादित्य' की उपाधि मिली थी। हेमू [[शेरशाह सूरी]] का योग्य [[दीवान]], कोषाध्यक्ष और सेनानायक था। शेरशाह की सफलता में उसकी प्रबंध कुशलता और वीरता का सबसे बड़ा हाथ रहा था। आर्थिक सूझ−बूझ में उसके समान कोई दूसरा व्यक्ति नहीं था। हेमू ने अपना अंतिम युद्ध प्रसिद्ध [[पानीपत]] के मैदान में लड़ा। यह युद्ध वह [[मुग़ल]] सेनापति [[बैरम ख़ाँ]] की कूटनीतिक चाल से हार गया। [[आँख]] में एक तीर लग जाने से हेमू की सेना बिखर गई और उसे हार का सामना करना पड़ा।
==जन्म तथा परिचय==
हेमू का जन्म एक [[ब्राह्मण]] परिवार में 1501 ई. में [[अलवर]], [[राजस्थान]] में हुआ था। उसके पिता का नाम राय पूरनमल था, जो उस वक़्त [[पुरोहित]] थे। बाद के समय में [[मुग़ल|मुग़लों]] द्वारा पुरोहितों को परेशान करने की वजह से राय पूरनमल [[रेवाड़ी ज़िला|रेवाड़ी]], [[हरियाणा]] में आकर [[नमक]] का व्यवसाय करने लगे। अपनी छोटी आयु से ही हेमू [[शेरशाह सूरी]] के लश्कर को अनाज एवं पोटेशियम नाइट्रेट<ref>गन पावडर हेतु</ref> उपलब्ध करने के व्यवसाय में पिता का हाथ बंटाने लगे थे। सन 1540 ई. में शेरशाह सूरी ने [[हुमायूँ|बादशाह हुमायूँ]] को हरा कर [[क़ाबुल]] लौट जाने को विवश कर दिया था। हेमू ने उसी वक़्त रेवाड़ी में [[धातु]] से विभिन्न तरह के हथियार बनाने के काम की नीव रख दी थी, जो आज भी रेवाड़ी में [[पीतल]], [[ताँबा]], [[इस्पात]] के बर्तन के आदि बनाने के काम के रूप में जारी है।<ref>{{cite web |url=http://anuraggeete.blogspot.in/2010/06/blog-post.html|title=हेमू को जानते हैं आप|accessmonthday=10 जून|accessyear=2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
==उच्च पद व लोकप्रियता==
[[शेरशाह सूरी]] की वर्ष 1545 में मृत्यु हो जाने के बाद [[इस्लामशाह सूर]] ने उसकी गद्दी संभाली। इस्लामशाह ने हेमू की प्रशासनिक क्षमता को पहचान लिया और उसे व्यापार एवं वित्त संबधी कार्यों के लिए अपना निजी सलाहकार नियुक्त कर लिया। हेमू ने भी अपनी योग्यता को सिद्ध किया और इस्लामशाह सूर का विश्वासपात्र बन गया। इस्लामशाह हेमू से हर मसले पर राय लेता था। हेमू के काम से प्रसन्न होकर उसने हेमू को "दरोगा-ए-चौकी" बना दिया और उच्च पद प्रदान किया। बाद में इस्लामशाह की मृत्यु के बाद उसके बारह वर्ष के अल्प वयस्क पुत्र फ़िरोजशाह को उसी के चाचा के पुत्र आदिलशाह सूरी ने मार दिया और राजगद्दी पर क़ब्ज़ा कर लिया। आदिलशाह ने हेमू को अपना वजीर नियुक्त किया। आदिलशाह अय्याश और शराबी व्यक्ति था। उसे शासन की बिल्कुल भी परवाह नहीं थी। इस समय सम्पूर्ण [[अफ़ग़ान]] शासन प्रबन्ध हेमू के ही हाथ में आ गया था। सेना के भीतर से भी हेमू का विरोध हुआ, किंतु उसने अपने सारे विरोधियों को पराजित कर शांत कर दिया। उस समय तक हेमू की सेना के अफ़ग़ान सैनिक, जिनमे से अधिकतर का जन्म [[भारत]] में ही हुआ था, अपने आप को भारत का रहवासी मानने लग गए थे और वे [[मुग़ल]] शासकों को विदेशी मानते थे। इसी वजह से हेमू [[हिन्दू]] एवं अफ़ग़ान दोनों में काफ़ी लोकप्रिय हो गया था।


*हेमू के पिता राय पूरनमल [[राजस्थान]] के अलवर ज़िले से आकर रेवाड़ी के कुतुबपुर में बस गए थे। हेमू तब छोटे ही थे। बड़े होने पर वे भी पिता के व्यवसाय में जुट गए। वे [[शेरशाह|शेरशाह सूरी]] की सेना को शोरा सप्लाई करते थे।
तब राज्य के पठान सरदारों में आपसी संघर्ष होने लगा था। हेमचंद्र आदिलशाह का वजीर और प्रधान सेनापति था। वह बिहार में अव्यवस्था दूर करने में लगा हुआ था, तभी [[हुमायूँ]] ने दिल्ली पर अधिकार कर लिया; किंतु 7 महीने बाद ही उसकी मृत्यु हो गई थी। [[बैरम ख़ाँ]] की सहायता से [[अकबर]] ने शेरशाह के वंशजों को नियंत्रित करने का बीड़ा उठाया। उसके हाथ से दिल्ली और [[आगरा]] भी निकल गए। बैरम ख़ाँ पंजाब में उलझा हुआ था कि अफग़ानों की एक शाखा का मन्त्री हेमू (हेमचंद्र) ने हमला कर दिया। हेमू राजवंशी न था लेकिन वह इतना प्रबल हो गया था कि उसने 'विक्रमादित्य' की उपाधि धारण की थी। हेमू ने शीघ्र ही [[ग्वालियर]] - [[आगरा]] पर अधिकार कर लिया।  मुग़ल सेनापति उसे रोकने में असमर्थ रहे। शीघ्र ही उसका दिल्ली पर अधिकार हो गया। पश्चिम से बैरम ख़ाँ के नेतृत्व में अकबर ने उसे रोका। पानीपत के प्रसिद्ध मैदान में हेमू की विशाल सेना के सामने मुग़ल सेना तुच्छ थी। स्वयं हेमू 'हवाई' नामक एक विशाल हाथी पर सवार हो सैन्य संचालन कर रहा था। मुग़ल सेना में दहशत थी। बैरम ख़ाँ ने अकबर को सुरक्षित स्थान पर छोड़ा और वह स्वयं सेना लेकर आगे बढ़ा। हेमू ने अपने 1500 हाथियों को मध्य भाग में बढ़ाया। इससे मुग़ल सेना में गड़बड़ी फैल गई और ऐसा जान पड़ा कि हेमू की सेना मुग़लों को रौंद देगी, पर हेमू की एक आँख में तीर लगा जो उसके सिर को छेदकर दूसरी ओर निकल गया। हेमू के दल में भगदड़ मच गई। हेमू का महावत 'हवाई '(हाथी) को भगाकर ले जा रहा था, पर हेमू पकड़ा गया। वह अकबर के सामने लाया गया तो बैरम ख़ाँ ने अकबर से कहा कि हजरत इसे मारकर 'गाजी' की उपाधि धारण करें, पर अकबर राज़ी नहीं हुआ, हेमू को और लोगों ने मार डाला।
*शेरशाह उनके व्यक्तित्व से काफ़ी प्रभावित था।
*उसने हेमू को अपनी सेना में उच्च पद दे दिया।
*इसके बाद हेमू ने 22 युद्ध जीते और [[दिल्ली]] सल्तनत का सम्राट बना।
*युद्ध में हेमू को बैरम ख़ाँ की रणनीति पर छल से मारा गया।
*हेमचंद्र शेरशाह का योग्य [[दीवान]], कोषाध्यक्ष और सेनानायक था। शेरशाह की सफलता में उसकी प्रबंध कुशलता और वीरता का हाथ रहा था। आर्थिक सूझ−बूझ में उसके समान कोई दूसरा व्यक्ति नहीं था।
*शेरशाह के बाद उसका पुत्र इस्लामशाह अपने शासन का भार हेमचंद्र पर डाल निश्चिंत हो गया था।
*इस्लामशाह के बाद आदिलशाह बादशाह हुआ तब राज्य के पठान सरदारों में आपसी संघर्ष होने लगा था।  
*हेमचंद्र आदिलशाह का वजीर और प्रधान सेनापति था। वह बिहार में अव्यवस्था दूर करने में लगा हुआ था, तभी [[हुमायूँ]] ने दिल्ली पर अधिकार कर लिया; किंतु 7 महीने बाद ही उसकी मृत्यु हो गई थी।  
*[[बैरम ख़ाँ]] की सहायता से [[अकबर]] ने शेरशाह के वंशजों को नियंत्रित करने का बीड़ा उठाया। उसके हाथ से दिल्ली और [[आगरा]] भी निकल गए। बैरम ख़ाँ पंजाब में उलझा हुआ था कि अफग़ानों की एक शाखा का मन्त्री हेमू (हेमचंद्र) ने हमला कर दिया।  
*हेमू राजवंशी न था लेकिन वह इतना प्रबल हो गया था कि उसने 'विक्रमादित्य' की उपाधि धारण की थी। हेमू ने शीघ्र ही [[ग्वालियर]] - [[आगरा]] पर अधिकार कर लिया।  मुग़ल सेनापति उसे रोकने में असमर्थ रहे। शीघ्र ही उसका दिल्ली पर अधिकार हो गया। पश्चिम से बैरम ख़ाँ के नेतृत्व में अकबर ने उसे रोका।  
*पानीपत के प्रसिद्ध मैदान में हेमू की विशाल सेना के सामने मुग़ल सेना तुच्छ थी। स्वयं हेमू 'हवाई' नामक एक विशाल हाथी पर सवार हो सैन्य संचालन कर रहा था।
*मुग़ल सेना में दहशत थी। बैरम ख़ाँ ने अकबर को सुरक्षित स्थान पर छोड़ा और वह स्वयं सेना लेकर आगे बढ़ा। हेमू ने अपने 1500 हाथियों को मध्य भाग में बढ़ाया। इससे मुग़ल सेना में गड़बड़ी फैल गई और ऐसा जान पड़ा कि हेमू की सेना मुग़लों को रौंद देगी, पर हेमू की एक आँख में तीर लगा जो उसके सिर को छेदकर दूसरी ओर निकल गया। हेमू के दल में भगदड़ मच गई। हेमू का महावत 'हवाई '(हाथी) को भगाकर ले जा रहा था, पर हेमू पकड़ा गया। वह अकबर के सामने लाया गया तो बैरम ख़ाँ ने अकबर से कहा कि हजरत इसे मारकर 'गाजी' की उपाधि धारण करें, पर अकबर राज़ी नहीं हुआ, हेमू को और लोगों ने मार डाला।


==हिन्दू राज्य का विफल प्रयास==
==हिन्दू राज्य का विफल प्रयास==
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*इस समय अकबर 13-14 वर्ष का बालक था, उस समय तक उसमें इतनी समझ नहीं थी कि हेमचंद्र को अपने पक्ष में करने की कोशिश करता।  
*इस समय अकबर 13-14 वर्ष का बालक था, उस समय तक उसमें इतनी समझ नहीं थी कि हेमचंद्र को अपने पक्ष में करने की कोशिश करता।  
*हेमचंद्र की पराजय 6 नवंबर सन् 1556 में पानीपत के मैदान में हुई थी। उसी दिन स्वतंत्र हिन्दू राज्य का सपना टूट बालक अकबर के नेतृत्व में मुग़लों का शासन जम गया।
*हेमचंद्र की पराजय 6 नवंबर सन् 1556 में पानीपत के मैदान में हुई थी। उसी दिन स्वतंत्र हिन्दू राज्य का सपना टूट बालक अकबर के नेतृत्व में मुग़लों का शासन जम गया।
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Revision as of 09:08, 10 June 2013

हेमचन्द्र विक्रमादित्य (संक्षिप्त नाम- 'हेमू') भारत का अंतिम हिन्दू राजा था। 'भारतीय इतिहास के वीर पुरुषों में वह गिना जाता है। "मध्यकालीन भारत का नैपोलियन" कहा जाने वाला हेमू अपनी असाधारण प्रतिभा के बल पर एक साधारण व्यापारी से प्रधानमंत्री एवं सेनाध्यक्ष की पदवी तक पहुँचा था। यह ऐतिहासिक सफर उसने एक अजेय महानायक के रूप में पूरा किया था। हेमू ने 22 युद्ध लड़े और इनमें से किसी में भी पराजय का सामना नहीं किया। उसके अपार पराक्रम तथा वीरता के कारण ही उसे 'विक्रमादित्य' की उपाधि मिली थी। हेमू शेरशाह सूरी का योग्य दीवान, कोषाध्यक्ष और सेनानायक था। शेरशाह की सफलता में उसकी प्रबंध कुशलता और वीरता का सबसे बड़ा हाथ रहा था। आर्थिक सूझ−बूझ में उसके समान कोई दूसरा व्यक्ति नहीं था। हेमू ने अपना अंतिम युद्ध प्रसिद्ध पानीपत के मैदान में लड़ा। यह युद्ध वह मुग़ल सेनापति बैरम ख़ाँ की कूटनीतिक चाल से हार गया। आँख में एक तीर लग जाने से हेमू की सेना बिखर गई और उसे हार का सामना करना पड़ा।

जन्म तथा परिचय

हेमू का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में 1501 ई. में अलवर, राजस्थान में हुआ था। उसके पिता का नाम राय पूरनमल था, जो उस वक़्त पुरोहित थे। बाद के समय में मुग़लों द्वारा पुरोहितों को परेशान करने की वजह से राय पूरनमल रेवाड़ी, हरियाणा में आकर नमक का व्यवसाय करने लगे। अपनी छोटी आयु से ही हेमू शेरशाह सूरी के लश्कर को अनाज एवं पोटेशियम नाइट्रेट[1] उपलब्ध करने के व्यवसाय में पिता का हाथ बंटाने लगे थे। सन 1540 ई. में शेरशाह सूरी ने बादशाह हुमायूँ को हरा कर क़ाबुल लौट जाने को विवश कर दिया था। हेमू ने उसी वक़्त रेवाड़ी में धातु से विभिन्न तरह के हथियार बनाने के काम की नीव रख दी थी, जो आज भी रेवाड़ी में पीतल, ताँबा, इस्पात के बर्तन के आदि बनाने के काम के रूप में जारी है।[2]

उच्च पद व लोकप्रियता

शेरशाह सूरी की वर्ष 1545 में मृत्यु हो जाने के बाद इस्लामशाह सूर ने उसकी गद्दी संभाली। इस्लामशाह ने हेमू की प्रशासनिक क्षमता को पहचान लिया और उसे व्यापार एवं वित्त संबधी कार्यों के लिए अपना निजी सलाहकार नियुक्त कर लिया। हेमू ने भी अपनी योग्यता को सिद्ध किया और इस्लामशाह सूर का विश्वासपात्र बन गया। इस्लामशाह हेमू से हर मसले पर राय लेता था। हेमू के काम से प्रसन्न होकर उसने हेमू को "दरोगा-ए-चौकी" बना दिया और उच्च पद प्रदान किया। बाद में इस्लामशाह की मृत्यु के बाद उसके बारह वर्ष के अल्प वयस्क पुत्र फ़िरोजशाह को उसी के चाचा के पुत्र आदिलशाह सूरी ने मार दिया और राजगद्दी पर क़ब्ज़ा कर लिया। आदिलशाह ने हेमू को अपना वजीर नियुक्त किया। आदिलशाह अय्याश और शराबी व्यक्ति था। उसे शासन की बिल्कुल भी परवाह नहीं थी। इस समय सम्पूर्ण अफ़ग़ान शासन प्रबन्ध हेमू के ही हाथ में आ गया था। सेना के भीतर से भी हेमू का विरोध हुआ, किंतु उसने अपने सारे विरोधियों को पराजित कर शांत कर दिया। उस समय तक हेमू की सेना के अफ़ग़ान सैनिक, जिनमे से अधिकतर का जन्म भारत में ही हुआ था, अपने आप को भारत का रहवासी मानने लग गए थे और वे मुग़ल शासकों को विदेशी मानते थे। इसी वजह से हेमू हिन्दू एवं अफ़ग़ान दोनों में काफ़ी लोकप्रिय हो गया था।

तब राज्य के पठान सरदारों में आपसी संघर्ष होने लगा था। हेमचंद्र आदिलशाह का वजीर और प्रधान सेनापति था। वह बिहार में अव्यवस्था दूर करने में लगा हुआ था, तभी हुमायूँ ने दिल्ली पर अधिकार कर लिया; किंतु 7 महीने बाद ही उसकी मृत्यु हो गई थी। बैरम ख़ाँ की सहायता से अकबर ने शेरशाह के वंशजों को नियंत्रित करने का बीड़ा उठाया। उसके हाथ से दिल्ली और आगरा भी निकल गए। बैरम ख़ाँ पंजाब में उलझा हुआ था कि अफग़ानों की एक शाखा का मन्त्री हेमू (हेमचंद्र) ने हमला कर दिया। हेमू राजवंशी न था लेकिन वह इतना प्रबल हो गया था कि उसने 'विक्रमादित्य' की उपाधि धारण की थी। हेमू ने शीघ्र ही ग्वालियर - आगरा पर अधिकार कर लिया। मुग़ल सेनापति उसे रोकने में असमर्थ रहे। शीघ्र ही उसका दिल्ली पर अधिकार हो गया। पश्चिम से बैरम ख़ाँ के नेतृत्व में अकबर ने उसे रोका। पानीपत के प्रसिद्ध मैदान में हेमू की विशाल सेना के सामने मुग़ल सेना तुच्छ थी। स्वयं हेमू 'हवाई' नामक एक विशाल हाथी पर सवार हो सैन्य संचालन कर रहा था। मुग़ल सेना में दहशत थी। बैरम ख़ाँ ने अकबर को सुरक्षित स्थान पर छोड़ा और वह स्वयं सेना लेकर आगे बढ़ा। हेमू ने अपने 1500 हाथियों को मध्य भाग में बढ़ाया। इससे मुग़ल सेना में गड़बड़ी फैल गई और ऐसा जान पड़ा कि हेमू की सेना मुग़लों को रौंद देगी, पर हेमू की एक आँख में तीर लगा जो उसके सिर को छेदकर दूसरी ओर निकल गया। हेमू के दल में भगदड़ मच गई। हेमू का महावत 'हवाई '(हाथी) को भगाकर ले जा रहा था, पर हेमू पकड़ा गया। वह अकबर के सामने लाया गया तो बैरम ख़ाँ ने अकबर से कहा कि हजरत इसे मारकर 'गाजी' की उपाधि धारण करें, पर अकबर राज़ी नहीं हुआ, हेमू को और लोगों ने मार डाला।

हिन्दू राज्य का विफल प्रयास

  • हेमचंद्र पठानों के राज्य को व्यवस्थित कर रहा था; किंतु वह शेरशाह के वंशजों और पठान सरदारों की फूट से परेशान हो गया। उसने मुग़लों को हराकर दिल्ली पर स्वतंत्र हिन्दू राज्य की स्थापना करने का निश्चय किया।
  • वह सन् 1555 में 'विक्रमादित्य' की पदवी धारण कर दिल्ली के राजसिंहासन पर बैठ गया।
  • राय पिथौरा (पृथ्वीराज) और जयचंद्र जैसे हिन्दू राजाओं की परंपरा को वह आगे बढ़ाना चाहता था। उसका उद्देश्य मुग़ल शक्ति को समाप्त किये बिना संभव नहीं था। उसने मुग़ल सरदारों से युद्ध किये और उन्हें दिल्ली से खदेड़ पर पंजाब की ओर भगा दिया। मुग़ल सरदार जाने को तैयार नहीं थे। वे एक बार फिर बड़ा युद्ध कर अंतिम निर्णय करना चाहते थे। मुग़ल सेना ने खानजमाँ अलीकुलीख़ाँ और बैरमख़ाँ के नेतृत्व में पानीपत में युद्ध करने का निश्चय किया। हेमचंद्र भी सेना सहित लड़ने पहुँच गया। दोनों सेनाओं में भीषण युद्ध हुआ। हेमचंद्र हाथी पर बैठा सेना का संचालन कर रहा था। उसी समय एक तीर उसकी आँख में लगा। वह उस अवस्था में भी युद्ध करता रहा; बहुत ख़ून बह जाने से वह बेहोश होकर हाथी के हौदे में गिर गया। हेमचंद्र के गिरते ही सेना तितर-बितर होने लगी। मुग़लों ने ज़ोर का हमला कर शत्रु सेना को पराजित कर दिया। बेहोश हेमचंद्र को मुग़लों ने बंदी बना लिया।
  • उसे मुग़लों के मनोनीत बालक बादशाह अकबर के समक्ष उपस्थित किया गया। मुग़ल सरदार बैरमख़ाँ ने अकबर से कहा कि वह उसे अपने हाथ से मार दे। अकबर ने उस पर वार नहीं किया। बैरमख़ाँ ने उसका अंत कर दिया।
  • इस समय अकबर 13-14 वर्ष का बालक था, उस समय तक उसमें इतनी समझ नहीं थी कि हेमचंद्र को अपने पक्ष में करने की कोशिश करता।
  • हेमचंद्र की पराजय 6 नवंबर सन् 1556 में पानीपत के मैदान में हुई थी। उसी दिन स्वतंत्र हिन्दू राज्य का सपना टूट बालक अकबर के नेतृत्व में मुग़लों का शासन जम गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. गन पावडर हेतु
  2. हेमू को जानते हैं आप (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 10 जून, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

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