कर्ण पर्व महाभारत: Difference between revisions
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कर्ण पर्व के अन्तर्गत कोई उपपर्व नहीं है और अध्यायों की संख्या 96 है। इस पर्व में [[द्रोण|द्रोणाचार्य]] की मृत्यु के पश्चात [[कौरव]] सेनापति के पद पर [[कर्ण]] का [[अभिषेक]], कर्ण के सेनापतित्व में कौरव सेना द्वारा भीषण युद्ध, [[पाण्डव|पाण्डवों]] के पराक्रम, [[शल्य]] द्वारा कर्ण का सारथि बनना, [[अर्जुन]] द्वारा कौरव सेना का भीषण संहार, कर्ण और अर्जुन का युद्ध, कर्ण के रथ के पहिये का [[पृथ्वी देवी|पृथ्वी]] में धँसना, अर्जुन द्वारा कर्णवध, कौरवों का शोक, शल्य द्वारा [[दुर्योधन]] को सान्त्वना देना आदि वर्णित है। | कर्ण पर्व के अन्तर्गत कोई उपपर्व नहीं है और अध्यायों की संख्या 96 है। इस पर्व में [[द्रोण|द्रोणाचार्य]] की मृत्यु के पश्चात [[कौरव]] सेनापति के पद पर [[कर्ण]] का [[अभिषेक]], कर्ण के सेनापतित्व में कौरव सेना द्वारा भीषण युद्ध, [[पाण्डव|पाण्डवों]] के पराक्रम, [[शल्य]] द्वारा कर्ण का सारथि बनना, [[अर्जुन]] द्वारा कौरव सेना का भीषण संहार, कर्ण और अर्जुन का युद्ध, कर्ण के रथ के पहिये का [[पृथ्वी देवी|पृथ्वी]] में धँसना, अर्जुन द्वारा कर्णवध, कौरवों का शोक, शल्य द्वारा [[दुर्योधन]] को सान्त्वना देना आदि वर्णित है। | ||
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Revision as of 13:33, 14 September 2010
कर्ण पर्व के अन्तर्गत कोई उपपर्व नहीं है और अध्यायों की संख्या 96 है। इस पर्व में द्रोणाचार्य की मृत्यु के पश्चात कौरव सेनापति के पद पर कर्ण का अभिषेक, कर्ण के सेनापतित्व में कौरव सेना द्वारा भीषण युद्ध, पाण्डवों के पराक्रम, शल्य द्वारा कर्ण का सारथि बनना, अर्जुन द्वारा कौरव सेना का भीषण संहार, कर्ण और अर्जुन का युद्ध, कर्ण के रथ के पहिये का पृथ्वी में धँसना, अर्जुन द्वारा कर्णवध, कौरवों का शोक, शल्य द्वारा दुर्योधन को सान्त्वना देना आदि वर्णित है।