गीता 18:19

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गीता अध्याय-18 श्लोक-19 / Gita Chapter-18 Verse-19

प्रसंग-


इस प्रकार सांख्ययोग के सिद्धान्त से कर्म-चोदना (कर्म-प्रेरणा) और कर्म-संग्रह का निरूपण करके अब तत्त्व ज्ञान में सहायक सात्त्विक भाव को ग्रहण कराने के लिये और उसके विरोधी राजस, तामस भावों का त्याग कराने के लिये उपर्युक्त कर्म प्रेरणा और कर्म-संग्रह के नाम से बतलाये हुए ज्ञान आदि में से ज्ञान, कर्म और कर्ता के सात्त्विक, राजस और तामस- इस प्रकार त्रिविध भेद क्रम से बतलाने की प्रस्तावना करते हैं-


ज्ञानं कर्म च कर्ता च त्रिधैव गुणभेदत: ।
प्रोच्यते गुणसंख्याने यथावच्छृणु तान्यपि ।।19।।



गुणों की संख्या करने वाले शास्त्र में ज्ञान और कर्म तथा कर्त्ता गुणों के भेद से तीन-तीन प्रकार के ही कहे गये हैं, उनको भी तू मुझसे भली-भाँति सुन ।।19।।

In accordance with the three modes of material nature, there are three kinds of knowledge, action, and performers of action. Listen as I describe them.(19)


ज्ञानम् =ज्ञान ; च = और ; कर्म = कर्म ; च = तथा ; कर्ता = कर्ता ; एव = भी ; तानि = उनको ; अपि = भी (तूं मेरे से ) ; गुणभेदत: = गुणों के भेद से ; गुणसंख्या ने = सांख्यशास्त्र में ; त्रिघा = तीन तीन प्रकार से ; प्रोच्यते = कहे गये है ; यथावत् = भली प्रकार ; श्रृणु = सुन ;



अध्याय अठारह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-18

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36, 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51, 52, 53 | 54 | 55 | 56 | 57 | 58 | 59 | 60 | 61 | 62 | 63 | 64 | 65 | 66 | 67 | 68 | 69 | 70 | 71 | 72 | 73 | 74 | 75 | 76 | 77 | 78

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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