गीता 12:8

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गीता अध्याय-12 श्लोक-8 / Gita Chapter-12 Verse-8

प्रसंग-


इस प्रकार पूर्व श्लोकों में निर्गुण उपासना की अपेक्षा सगुण-उपासना की सुगमता का प्रतिपादन किया गया । इसलिये अब भगवान् <balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था। ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> को उसी प्रकार मन, बुद्धि लगाकर सगुण-उपासना करने की आज्ञा देते हैं-


मय्येव मन आधत्स्व मयि बुद्धिं निवेशय ।
निवसिष्यसि मय्येव अत ऊध्र्वं न संशय: ।।8।।



मुझमें मन को लगा और मुझ में ही बुद्धि को लगा, इसके उपरान्त तू मुझ में ही निवास करेगा, इसमें कुछ भी संशय नहीं है ।।8।।

Therefore, fix you mind on me, and establish your intellect in me alone; thereafter you will abide solely in me.There is no doubt about it. (8)


मयि = मेरेमें; मन: = मनको; आधत्स्व = लगा(और); एव = ही; बुद्धिम् = बुद्धको; निवेशय = लगा; अत: = इसके; ऊर्ध्वम् = उपरान्त(तूं); मयि = मेरेमें; निवसिष्यसि = निवास करेगा अर्थात् मेरे को ही प्राप्त होगा; (अत्र) = इसमें; संशय: = संशय; न = नहीं है



अध्याय बारह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-12

1 | 2 | 3,4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13, 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

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