मैं ही सब प्रणियों के शरीर में स्थित रहने वाला प्राण और अपान से संयुक्त वैश्वानर <balloon link="अग्निदेव" title="अग्निदेवता यज्ञ के प्रधान अंग हैं। ये सर्वत्र प्रकाश करने वाले एवं सभी पुरुषार्थों को प्रदान करने वाले हैं।
¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अग्नि</balloon> रूप होकर चार प्रकार के अन्न को पचाता हूँ ।।14।।
I am the fire of digestion in every living body, and I am the air of life, outgoing and incoming, by which I digest the four kinds of foodstuff. (14)
अहम् = मैं (ही) ; प्राणिनाम् = सब प्राणियों के ; देहम् = शरीर में ; आश्रित: = स्थित हुआ ; वैश्र्वानर: = वैश्र्वानर अग्निरूप ; भूत्वा = होकर ; प्राणापानसमायुक्त: = प्राण और अपान से युक्त हुआ ; चतुर्विधत् = चार प्रकार के ; अन्नम् = अन्नको ; पचामि = पचाता हूं ;