उपर्युक्त श्लोक में सात्त्विक त्यागी को यानी निष्काम भाव से कर्तव्य कर्म का अनुष्ठान करने वाले कर्मयोगी को सच्चा त्यागी बतलाया । इस पर यह शंका होती है । कि निषिद्ध और काम्य कर्मों की भाँति अन्य कर्मों का स्वरूप से त्याग कर देने वाला मनुष्य भी तो सच्चा त्यागी हो सकता है , फिर केवल निष्काम भाव से कर्म करने वाले को ही सच्चा त्यागी क्यों कहा गया । इसलिये कहते हैं-
न हि देहभृता शक्यं त्यक्तुं कर्माण्यशेषत: । यस्तु कर्मफलत्यागी स त्यागीत्यभिधीयते ।।11।।
क्योंकि शरीरधारी किसी भी मनुष्य के द्वारा सम्पूर्णता से सब कर्मों का त्याग किया जाना शक्य नहीं है; इसलिये जो कर्म फल का त्यागी है, वही त्यागी है, यही कहा जाता है ।।11।।
Since all actions cannot be given up in their entirety by anyone possessing a body, he alone who renounces the result of actions is called a man of renunciation.(11)
हि = क्योंकि ; देहभृता = हेह धारी पुरुष के द्वारा ; अशेषत: = संपूर्णता से ; कर्माणि = सब कर्म ; त्यक्तुम् = त्यागे जाने को ; न शक्यम् = शक्य नहीं हैं ; (तस्मात्) = इससे ; य: = जो पुरुष ; कर्मफलत्यागी = कर्मो के फल का त्यागी है ; स: = वह ; तु = ही ; त्यागी = त्यागी है ; इति = ऐसे ; अभिधीयते = कहा जाता है ;