गीता 3:25

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 05:54, 14 June 2011 by व्यवस्थापन (talk | contribs) (Text replace - "{{गीता2}}" to "{{प्रचार}} {{गीता2}}")
Jump to navigation Jump to search

गीता अध्याय-3 श्लोक-25 / Gita Chapter-3 Verse-25

सक्ता: कर्मण्यविद्वांसो यथा कुर्वन्ति भारत ।
कुर्याद्विद्वांस्तथासक्तश्चिकीर्षुर्लोकसंग्रहम् ।।25।।



हे <balloon title="पार्थ, भारत, धनज्जय, पृथापुत्र, परन्तप, गुडाकेश, निष्पाप, महाबाहो सभी अर्जुन के सम्बोधन है ।" style="color:green">भारत</balloon> ! कर्म में आसक्त हुए अज्ञानीजन जिस प्रकार कर्म करते हैं, आसक्ति रहित विद्वान् भी लोक संग्रह करना चाहता हुआ उसी प्रकार कर्म करे ।।25।।

Arjuna, as the unwise act with attachment, so should the wise man, seeking maintenance of the world order, act without attachment. (25)


भारत = है भारत ; कर्मणि = कर्ममें ; सक्ता: = आसक्त हुए ; अविद्वांस: = अज्ञानीजन ; यथा = जैसे ; कुर्वन्ति = कर्म करते हैं ; तथा = वैसे ही ; असक्त: = अनासक्त हुआ ; विद्वान् = विद्वान् (भी) ; लोकसंग्रहम् = लोकशिक्षाको ; चिकीर्षु: = चाहता हुआ ; कुर्यात् = कर्म करे ;



अध्याय तीन श्लोक संख्या
Verses- Chapter-3

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14, 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)


वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः