गीता 4:14

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 05:55, 14 June 2011 by व्यवस्थापन (talk | contribs) (Text replace - "{{गीता2}}" to "{{प्रचार}} {{गीता2}}")
Jump to navigation Jump to search

गीता अध्याय-4 श्लोक-14 / Gita Chapter-4 Verse-14

प्रसंग-


इस प्रकार भगवान् अपने कर्मों की दिव्यता और उनका तत्त्व जानने का महत्त्व बतलाकर, अब मुमुक्षु पुरुषों के उदाहरणपूर्वक उसी प्रकार निष्काम भाव से कर्म करने के लिये <balloon link="अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था। ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> को आज्ञा देते हैं-


न मां कर्माणि लिम्पन्ति न मे कर्मफले स्पृहा ।
इति मां योऽभिजानाति कर्मभिर्न स बध्यते ।।14।।




कर्मों के फल में मेरी स्पृहा नहीं है, इसलिये मुझे कर्म लिप्त नहीं करते– इस प्रकार जो मुझे तत्त्व से जान लेता है, वह भी कर्मों से नहीं बँधता ।।14।।


Since I have no craving for the fruit of acions; actions do not contaminate Me, Even he who thus knows Me in reality is not bound by actions(14)


कर्मफले = कर्मों के फल में; मे = मेरी; स्पृहा = स्पृहा; न = नहीं है (इसलिये) माम् = मेरे को; कर्माणि = कर्म; न लिम्पन्ति = लिपायमान नहीं करते; इति = इस प्रकार; य: = जो; माम् = मेरे को; अभिजानाति = तत्त्व से जानता है; स: = वह (भी); कर्मभि: = कर्मों से: = कर्मोंसे; न =नहीं; बध्यते = बंधता है।



अध्याय चार श्लोक संख्या
Verses- Chapter-4

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29, 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)


वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः