फ़र्रुख़सियर

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thumb|फ़र्रुख़सियर
Farrukhsiyar

  • सैयद बन्धु अब्दुल्ला ख़ाँ और हुसैन अली ख़ाँ की मदद से फ़र्रुख़सियर 11 जनवरी, 1713 को मुग़ल राजसिंहासन पर बैठा।
  • उसने अब्दुल्ला ख़ाँ को वज़ीर का पद एवं 'कुतुबुलमुल्क' की उपाधि तथा हुसैन अली ख़ाँ को 'अमीर-उल-उमरा' तथा 'मीर बख़्शी' का पद दिया।
  • सिंहासन पर बैठने के बाद फ़र्रुख़सियर ने जुल्फिकार ख़ाँ की हत्या करवा दी और साथ ही उसके पिता असद ख़ाँ को क़ैद कर लिया।
  • इसके काल में मुग़ल सेना ने 17 दिसम्बर, 1715 को सिक्ख नेता बन्दा सिंह को उसके 740 समर्थकों के साथ बन्दी बना लिया।
  • बाद में इस्लाम धर्म स्वीकार न करने के कारण इन सबकी निर्दयतापूर्वक हत्या कर दी गई।
  • फ़र्रुख़सियर के समय में ही 1716 ई. बन्दा बहादुर को दिल्ली में फाँसी दे दी गयी।
  • इस प्रकार फ़र्रुख़सियर के समय की महत्वपूर्ण घटना 'सिक्ख विद्रोह' की समाप्ति थी।
  • 1717 ई. में फर्रूखसियर के दरबार में एक दूतमण्डल भेजा गया, यह दूतमण्डल कलकत्ते से 'जॉन सरमन' द्वारा ले जाया गया, जिसकी सहायता 'एडवर्ड स्टिफेन्सन' कर रहा था।
  • इस दूतमण्डल में 'विलियम हैमिल्ट' नामक सर्जन तथा 'ख़्वाजा सेहूर्द' नामक एक आर्मीनियाई दुभाषिया भी थे।
  • हैमिल्टन ने बादशाह फ़र्रुख़सियर की एक ख़तरनाक बीमारी से छुटकारा दिलाने में सफलता प्राप्त कर ली, जिससे सम्राट ने अंग्रेज़ों से प्रसन्न होकर 1717 में एक शाही फ़रमान जारी किया।
  • इस फ़रमान के अन्तर्गत अंग्रेज़ों को तीन हज़ार रुपये वार्षिक कर के बदले बंगाल में व्यापार करने का जो विशेषाधिकार मिला था, वह पुष्ट हो गया।
  • फ़र्रुख़सियर दिमाग़ का कमज़ोर था, इसीलिए वह सैयद बन्दुओं के नियंत्रण से मुक्त होना चाहता था।
  • दैवयोग से सैयद बन्दुओं को सम्राट के षड़यंत्र का पता चल गया और उन्होंने पहले ही उसको अपदस्थ कर दिया और बाद को आँखें निकलवा कर मरवा डाला।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

(पुस्तक 'भारतीय इतिहास कोश') पृष्ठ संख्या-253

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