गीता 7:22

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 08:19, 19 March 2010 by Ashwani Bhatia (talk | contribs) (Text replace - '<td> {{गीता अध्याय}} </td>' to '<td> {{गीता अध्याय}} </td> </tr> <tr> <td> {{महाभारत}} </td> </tr> <tr> <td> {{गीता2}} </td>')
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

गीता अध्याय-7 श्लोक-22 / Gita Chapter-7 Verse-22

प्रसंग-


अब उपर्युक्त अन्य देवताओं की उपासना के फल को विनाशी बतलाकर भगवदुपासना के फल की महत्ता का प्रतिपादन करते हैं-


स तया श्रद्धया युक्तस्तस्याराधनमीहते ।
लभते च तत: कामान्मयैव विहितान्हि तान् ।।22।।



वह पुरुष उस श्रद्धा से मुक्त होकर उस देवता का पूजन करता है और उस देवता से मेरे द्वारा ही विधान किये हुए उन इच्छित भोगों को नि:सन्देह प्राप्त करता है ।।22।।

Endowed with such faith he worship that particular deity and obtains through him without doubt his desired enjoyments as ordained by myself.


स: = वह पुरुष ; तया = उस ; तस्य = उस देवता के ; आराधनम् = पूजन की ; ईहते = चेष्टा करता है ; च = और ; तत: = उस देवता से ; मया = मेरे द्वारा ; श्रद्धया = श्रद्धा से ; युक्त: = युक्त हुआ ; एव = ही ; विहितान् = विधान किये हुए ; तान् = उन ; कामान् = इच्छित भोगों को ; हि = नि:सन्देह ; लभते = प्राप्त होता है ;



अध्याय सात श्लोक संख्या
Verses- Chapter-7

1 | 2 | 3 | 4, 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29, 30

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः