गीता 3:6

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 09:47, 4 January 2013 by रविन्द्र प्रसाद (talk | contribs)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

गीता अध्याय-3 श्लोक-6 / Gita Chapter-3 Verse-6

प्रसंग-


इस प्रकार केवल ऊपर से इन्द्रियों को विषयों से हटा लेने को मिथ्याचार बतलाकर, अब आसक्ति का त्याग करके इन्द्रियों द्वारा निष्काम भाव कर्तव्य कर्म करने वाले योगी की प्रशंसा करते हैं-


कर्मेन्द्रियाणि संयम्य य आस्ते मनसा स्मरन् ।
इन्द्रियार्थान्विमूढात्मा मिथ्याचार: स उच्यते ।।6।।



जो मूढबुद्धि मनुष्य समस्त इन्द्रियों को हठपूर्वक ऊपर से रोककर मन से उन इन्द्रियों के विषयों का चिन्तन करता रहता है, वह मिथ्याचारी अर्थात् दम्भी कहा जाता है ।।6।।

He who outwardly restraining the organs of sense and action, sits mentally dwelling on the objects of senses, that man of deluded intellect is called a hypocrite.(6)


य: = जो ; विमूढात्मा = मूढबुद्धि पुरुष ; कर्मेन्द्रियाणि = कर्मेन्द्रियोंको (हठसे) ; संयम्य = रोककर ; इन्द्रियार्थान् = इन्द्रियों के भोगोंको ; मनसा = मनसे ; स्मरन् = चिन्तन करता ; आस्ते = रहता है ; स: = वह ; मिथ्याचार: = मिथ्याचारी अर्थात् दम्भी ; उच्यते = कहा जाता है ;



अध्याय तीन श्लोक संख्या
Verses- Chapter-3

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14, 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः