गीता 11:54

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 08:36, 6 January 2013 by रविन्द्र प्रसाद (talk | contribs)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

गीता अध्याय-11 श्लोक-54 / Gita Chapter-11 Verse-54

प्रसंग-


यदि उपर्युक्त उपायों से आपके दर्शन नहीं हो सकते तो किस उपाय से हो सकते हैं, ऐसी जिज्ञासा होने पर भगवान् कहते हैं-


भक्त्या त्वनन्यया शक्य अहमेवं विधोऽर्जुन ।
ज्ञातु द्रष्टुं च तत्त्वेन प्रवेष्टुं च परंतप ।।54।।



परन्तु हे परंतप अर्जुन[1] ! अनन्य भक्ति के द्वारा इस प्रकार चतुर्भुज रूप वाला मैं प्रत्यक्ष देखने के लिये, तत्त्व से जानने के लिये तथा प्रवेश करने के लिये अर्थात् एकीभाव से प्राप्त होने के लिये भी शक्य हूँ ।।54।।

Through single-minded devotion, however, I can be seen in this form (with four arms); nay, known in essence and even enetered into, O valiant Arjuna. (54)


परंतप = हे श्रेष्ठ तपवाले; भक्त्या = भक्ति करके; एवंविध: इस प्रकार चतुर्भुज रूपवाला; तत्त्वेन = तत्त्व से; ज्ञातुम् = जानने के लिये; प्रवेष्टुम = प्रवेश करने के लिये अर्थात् एकीभावसे प्राप्त होने के लिये; शंक्य: = शक्य हूं



अध्याय ग्यारह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-11

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10, 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26, 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41, 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51 | 52 | 53 | 54 | 55

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः