गीता 16:17

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 12:17, 6 January 2013 by रविन्द्र प्रसाद (talk | contribs)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

गीता अध्याय-16 श्लोक-17 / Gita Chapter-16 Verse-17

प्रसंग-


पंद्रहवें श्लोक में भगवान् ने कहा था कि वे लोग 'यज्ञ करूँगा' ऐसा कहते हैं; अत: अगले श्लोक में उनके यज्ञ का स्वरूप बतलाया जाता है-


आत्मसंभाविता: स्तब्धा धनमानमदान्विता:

यजन्ते नामयज्ञैस्ते दम्भेनाविधिपूर्वकम् ।।17।।


वे अपने-आपको ही श्रेष्ठ मानने वाले घमण्डी पुरुष धन और मान के मद से युक्त होकर केवल नाम मात्र के यज्ञों द्वारा पाखण्ड से शास्त्र विधि रहित यजन करते हैं ।।17।।

Intoxicated by wealth and honour, those self-conceited and haughty men worship God through nominal sacrifices for ostentation without following the sacred rituals. (17)


ते = वे ; आत्मसंभाविता: = अपने आपको ही श्रेष्ठ मानने वाले ; स्तब्धा: = घमण्डी पुरुष ; धनमानमदान्विता: = धन और मानके मदसे युक्त हुए ; अविधिपूर्वकम् = शास्त्रविधि से रहित ; नामयज्ञै: = केवल नाममा़त्र के यज्ञों द्वारा ; दम्भेन = पाखण्ड से ; यजन्ते = यजन करते हैं ;



अध्याय सोलह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-16

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15, 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः