यदग्रे चानुबन्धे च सुखं मोहनमात्मन: । निद्रालस्यप्रमादोत्थं तत्तामसमुदाहृतम् ।।39।।
जो सुख भोग काल में तथा परिणाम में भी आत्मा को मोहित करने वाला है- वह निद्रा, आलस्य और प्रमाद से उत्पन्न सुख तामस कहा गया है ।।39।।
And that happiness which is blind to self-realization, which is delusion from beginning to end and which arises from sleep, laziness and illusion is said to be of the nature of ignorance (39)
यत् = जो ; सुखम् = सुख ; अग्रे = भोगकाल में ; च = और ; अनुबन्धे = परिणाम में ; च = भी ; आत्मन: = आत्मा को मोहनम् = मोहने वाला है ; तत् = वह ; निद्रालस्य प्रमादोत्थम् = निद्रा आलस्य और प्रमाद से उत्पन्न हुआ (सुख) ; तामसम् = तामस ; उदाहृतम् = कहा गया है ;