अश्वत्थामा हाथी

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अश्वत्थामा हाथी महाभारत में मालव नरेश इन्द्रवर्मा का था। गुरु द्रोणाचार्य पाण्डवों की विजय में सबसे बड़ी बाधा के रूप में उपस्थित थे। उनके जीवित रहते हुए पाण्डवों की विजय असम्भव थी। श्रीकृष्ण के कहने पर भीम ने अश्वत्थामा नाम के हाथी का वध कर दिया और द्रोणाचार्य को यह सूचना दी कि उनका पुत्र अश्वत्थामा मारा गया। युधिष्ठिर के मुख से भी पुत्र की मृत्यु का समाचार सुनकर द्रोणाचार्य ने अपने अस्त्र-शस्त्र त्याग दिये और इसी समय धृष्टद्युम्न ने उनका वध कर दिया।

कृष्ण की योजना

महाभारत युद्ध में अश्वत्थामा नामक हाथी को भीम ने मार दिया और यह शोर करना प्रारम्भ कर दिया कि द्रोणाचार्य का पुत्र अश्वत्थामा मारा गया। चूँकि द्रोणाचार्य के पुत्र का नाम भी अश्वत्थामा था और यह भी निश्चित था कि अपने पुत्र से प्रेम करने के कारण द्रोणाचार्य अश्वत्थामा की मृत्यु का सामाचार सुनकर स्वयं भी प्राण त्याग देगें, इसलिए कृष्ण की योजनानुसार यह पूर्व नियोजित ही था। भीम द्वारा दिया गया यह सामाचार सत्य है या नहीं, इसकी जानकारी करने के लिए द्रोणाचार्य ने कभी झूठ न बोलने वाले सत्यवादी पाण्डव, युधिष्ठिर से पूछा- "युधिष्ठिर! क्या यह सत्य है कि मेरा पुत्र अश्वत्थामा मारा गया?"

द्रोणाचार्य का वध

युधिष्ठिर ने कहा- "अश्वत्थामा हतोहतः, नरो वा कुञ्जरोवा", अर्थात् 'अश्वत्थामा मारा गया, परंतु मनुष्य नहीं पशु।" युधिष्ठिर ने 'नरो वा कुञ्जरोवा' अत्यंत धीमे स्वर में कहा था और इसी समय श्रीकृष्ण ने भी शंख बजा दिया, जिस कारण द्रोणाचार्य युधिष्ठिर द्वारा कहे गये अंतिम शब्द नहीं सुन पाये। उन्होंने अस्त्र-शस्त्र त्याग दिये और समाधिष्ट होकर बैठ गये। इस अवसर का लाभ उठाकर द्रौपदी के भाई धृष्टद्युम्न ने उनका सर धड़ से अलग कर दिया।


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