गीता 3:14-15: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replace - "{{गीता2}}" to "{{प्रचार}} {{गीता2}}")
m (Text replacement - "होनेवाला" to "होने वाला")
 
(One intermediate revision by one other user not shown)
Line 1: Line 1:
<table class="gita" width="100%" align="left">
<table class="gita" width="100%" align="left">
<tr>
<tr>
Line 9: Line 8:
'''प्रसंग-'''
'''प्रसंग-'''
----
----
इस प्रकार सृष्टि चक्र की स्थिति यज्ञ पर निर्भर बतलाकर और परमात्मा को यज्ञ में प्रतिष्ठित कहकर अब उस यज्ञ रूप स्वधर्म के पालन की अवश्य कर्तव्यता सिद्ध करने के लिये उस सृष्टि चक्र के अनुकूल न चलने वाले की यानी अपना कर्तव्य पालन न करने वाले की निन्दा करते हैं-  
इस प्रकार सृष्टि चक्र की स्थिति यज्ञ पर निर्भर बतलाकर और परमात्मा को [[यज्ञ]] में प्रतिष्ठित कहकर अब उस यज्ञ रूप स्वधर्म के पालन की अवश्य कर्तव्यता सिद्ध करने के लिये उस सृष्टि चक्र के अनुकूल न चलने वाले की यानी अपना कर्तव्य पालन न करने वाले की निन्दा करते हैं-  
----
----
<div align="center">
<div align="center">
Line 24: Line 23:
|-
|-
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
सम्पूर्ण प्राणी अन्न से उत्पन्न होते हैं, अन्न की उत्पत्ति वृष्टि से होती है, वृष्टि यज्ञ से होती है और यज्ञ विहित कर्मों से उत्पन्न होने वाला है । कर्म समुदाय को तू <balloon link="वेद" title="वेद हिन्दू धर्म के प्राचीन पवित्र ग्रंथों का नाम है, इससे वैदिक संस्कृति प्रचलित हुई।¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">वेद</balloon> से उत्पन्न और वेद को अविनाशी परमात्मा से उत्पन्न हुआ जान । इससे सिद्ध होता है कि सर्वव्यापी परम अक्षर परमात्मा सदा ही यज्ञ में प्रतिष्ठित है ।।14-15।।
सम्पूर्ण प्राणी अन्न से उत्पन्न होते हैं, अन्न की उत्पत्ति वृष्टि से होती है, वृष्टि यज्ञ से होती है और [[यज्ञ]] विहित कर्मों से उत्पन्न होने वाला है। कर्म समुदाय को तू [[वेद]]<ref>वेद [[हिन्दू धर्म]] के प्राचीन पवित्र ग्रंथों का नाम है, इससे वैदिक संस्कृति प्रचलित हुई।</ref> से उत्पन्न और वेद को अविनाशी परमात्मा से उत्पन्न हुआ जान । इससे सिद्ध होता है कि सर्वव्यापी परम अक्षर परमात्मा सदा ही यज्ञ में प्रतिष्ठित है ।।14-15।।
 
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
All beings are evolved from food; production of food is dependent on rain; rain ensues  from sacrifice, and sacrifice is rooted in prescribed action. Know that prescribed action has its origin in the Vedas, and the Vedas proceed from the indestructible (Good); hence the all-pervading Infinite is always present in sacrifice.(14,15)
All beings are evolved from food; production of food is dependent on rain; rain ensues  from sacrifice, and sacrifice is rooted in prescribed action. Know that prescribed action has its origin in the Vedas, and the Vedas proceed from the indestructible (Good); hence the all-pervading Infinite is always present in sacrifice.(14,15)
Line 34: Line 32:
|-
|-
| style="width:100%;text-align:center; font-size:110%;padding:5px;" valign="top" |
| style="width:100%;text-align:center; font-size:110%;padding:5px;" valign="top" |
भूतानि = संपूर्ण प्राणी ; अन्नात् = अन्नसे ; भवन्ति = उत्पन्न होते हैं (और) ; अन्नसम्भव: = अन्नकी उत्पत्ति ; पर्जन्यात् = वृष्टिसे होती है (और) ; पर्जन्य: = वृष्टि ; यज्ञात् = यज्ञसे ; भवति = होती है (और वह) ; यज्ञ: = यज्ञ ; कर्मसमुद्रव: = कर्मोंसे उत्पन्न होनेवाला है ;
भूतानि = संपूर्ण प्राणी ; अन्नात् = अन्नसे ; भवन्ति = उत्पन्न होते हैं (और) ; अन्नसम्भव: = अन्नकी उत्पत्ति ; पर्जन्यात् = वृष्टिसे होती है (और) ; पर्जन्य: = वृष्टि ; यज्ञात् = यज्ञसे ; भवति = होती है (और वह) ; यज्ञ: = यज्ञ ; कर्मसमुद्रव: = कर्मोंसे उत्पन्न होने वाला है ;
कर्म = कर्मको (तूं) ; ब्रह्मोद्रवम् = वेदसे उत्पन्न हुआ ; विद्धि = जान (और) ; ब्रह्म = वेद ; अक्षरसमुद्रवम् = अविनाशी (परमात्मा) से उत्पन्न हुआ है ; तस्मात् = इससे ; सर्वगतम् = सर्वव्यापी ; ब्रह्म = परम अक्षर (परमात्मा) ; नित्यम् = सदा ही ; यज्ञे = यज्ञमें ; प्रतिष्ठितम् = प्रतिष्ठित है ;
कर्म = कर्मको (तूं) ; ब्रह्मोद्रवम् = वेदसे उत्पन्न हुआ ; विद्धि = जान (और) ; ब्रह्म = वेद ; अक्षरसमुद्रवम् = अविनाशी (परमात्मा) से उत्पन्न हुआ है ; तस्मात् = इससे ; सर्वगतम् = सर्वव्यापी ; ब्रह्म = परम अक्षर (परमात्मा) ; नित्यम् = सदा ही ; यज्ञे = यज्ञमें ; प्रतिष्ठितम् = प्रतिष्ठित है ;
|-
|-
Line 59: Line 57:
<tr>
<tr>
<td>
<td>
{{प्रचार}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
==संबंधित लेख==
{{गीता2}}
{{गीता2}}
</td>
</td>

Latest revision as of 13:53, 6 September 2017

गीता अध्याय-3 श्लोक-14,15 / Gita Chapter-3 Verse-14,15

प्रसंग-


इस प्रकार सृष्टि चक्र की स्थिति यज्ञ पर निर्भर बतलाकर और परमात्मा को यज्ञ में प्रतिष्ठित कहकर अब उस यज्ञ रूप स्वधर्म के पालन की अवश्य कर्तव्यता सिद्ध करने के लिये उस सृष्टि चक्र के अनुकूल न चलने वाले की यानी अपना कर्तव्य पालन न करने वाले की निन्दा करते हैं-


अन्नाद्भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसंभव: ।
यज्ञाद्भवति पर्जन्यो यज्ञ: कर्मसमुद्भव: ।।14।।
कर्म ब्रह्रोद्भवं विद्धि ब्रह्राक्षरसमुद्भवम् ।
तस्मात्सवगतं ब्रह्रा नित्यं यज्ञे प्रतिष्ठितम् ।।15।।



सम्पूर्ण प्राणी अन्न से उत्पन्न होते हैं, अन्न की उत्पत्ति वृष्टि से होती है, वृष्टि यज्ञ से होती है और यज्ञ विहित कर्मों से उत्पन्न होने वाला है। कर्म समुदाय को तू वेद[1] से उत्पन्न और वेद को अविनाशी परमात्मा से उत्पन्न हुआ जान । इससे सिद्ध होता है कि सर्वव्यापी परम अक्षर परमात्मा सदा ही यज्ञ में प्रतिष्ठित है ।।14-15।।

All beings are evolved from food; production of food is dependent on rain; rain ensues from sacrifice, and sacrifice is rooted in prescribed action. Know that prescribed action has its origin in the Vedas, and the Vedas proceed from the indestructible (Good); hence the all-pervading Infinite is always present in sacrifice.(14,15)


भूतानि = संपूर्ण प्राणी ; अन्नात् = अन्नसे ; भवन्ति = उत्पन्न होते हैं (और) ; अन्नसम्भव: = अन्नकी उत्पत्ति ; पर्जन्यात् = वृष्टिसे होती है (और) ; पर्जन्य: = वृष्टि ; यज्ञात् = यज्ञसे ; भवति = होती है (और वह) ; यज्ञ: = यज्ञ ; कर्मसमुद्रव: = कर्मोंसे उत्पन्न होने वाला है ; कर्म = कर्मको (तूं) ; ब्रह्मोद्रवम् = वेदसे उत्पन्न हुआ ; विद्धि = जान (और) ; ब्रह्म = वेद ; अक्षरसमुद्रवम् = अविनाशी (परमात्मा) से उत्पन्न हुआ है ; तस्मात् = इससे ; सर्वगतम् = सर्वव्यापी ; ब्रह्म = परम अक्षर (परमात्मा) ; नित्यम् = सदा ही ; यज्ञे = यज्ञमें ; प्रतिष्ठितम् = प्रतिष्ठित है ;



अध्याय तीन श्लोक संख्या
Verses- Chapter-3

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14, 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. वेद हिन्दू धर्म के प्राचीन पवित्र ग्रंथों का नाम है, इससे वैदिक संस्कृति प्रचलित हुई।

संबंधित लेख