आसफ़ ख़ाँ (सूबेदार): Difference between revisions

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*आसफ़ ख़ाँ, बादशाह [[अकबर]] (1556-1605 ई.) के शासनकाल के आरम्भ में [[कड़ा]] का सूबेदार था।
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*1564 ई. में उसने अकबर के आदेश से [[गोंडवाना]] का राज्य जीता, जो आधुनिक मध्य प्रदेश के उत्तरी भाग में था।
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*उसने गोंडवाना की शासिका रानी [[दुर्गावती]] और उसके नाबालिग पुत्र राजा [[वीरनारायण]] को हटाया।
*1564 ई. मेंआसफ खाँ ने [[अकबर]] के आदेश से [[गोंडवाना]] का राज्य जीता, जो आधुनिक मध्य प्रदेश के उत्तरी भाग में था।
*कुछ समय आसफ़ ख़ाँ ने नये विजित क्षेत्र का प्रशासन चलाया, लेकिन बाद में वहाँ से उसका तबादला कर दिया गया।
*कुछ समय आसफ़ ख़ाँ ने नये विजित क्षेत्र का प्रशासन चलाया, लेकिन बाद में वहाँ से उसका तबादला कर दिया गया।
*1576 ई. में उसे राजा [[मानसिंह]] के साथ उस [[मुग़ल]] सेना का सेनापति बनाकर भेजा गया, जिसने [[राणा प्रताप]] को [[हल्दीघाटी]] के युद्ध में अप्रैल 1576 में पराजित किया था।
*1576 ई. में उसे राजा [[मानसिंह]] के साथ उस [[मुग़ल]] सेना का सेनापति बनाकर भेजा गया, जिसने [[राणा प्रताप]] को [[हल्दीघाटी]] के युद्ध में अप्रैल 1576 में पराजित किया था। बाद में इन्होंने चित्तोड़ पर विजय प्राप्त की और इसके उपलक्ष्य में इन्हें वहां जागीर मिली।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1|लेखक= |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक= नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=461 |url=}}</ref>


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आसफ़ ख़ाँ, बादशाह अकबर (1556-1605 ई.) के शासनकाल के आरम्भ में कड़ा का सूबेदार था। यह बादशाह अकबर की सेना में उच्चपदस्थ अधिकारी था, जिसकी उपाधि '"अब्दुल मजीद"' थी। सन्‌ 1565 ई. में इन्होंने नर्मदा तटवर्ती गढ़कोट (बुंदेलखंड) पर आक्रमण किया। गढ़कोट की तत्कालीन रानी दुर्गावती ने ससैन्य इनका मुकाबला किया। किंतु आसफ खां की कूटनीति के कारण रानी की हार हुई। आसफ खां ने योजना बनाई कि रानी को जीवित बंदी बना लिया जाए पर असम्मान के भय से रानी दुर्गावती ने तलवार से स्वयं अपनी गर्दन काट डाली। आसफ खाँ ने रानी की संपत्ति एवं धनराशि को अकेले हड़पने की चेष्टा की लेकिन भेद खुल गया और आसफ खाँ को विद्रोह करना पड़ा।

  • 1564 ई. मेंआसफ खाँ ने अकबर के आदेश से गोंडवाना का राज्य जीता, जो आधुनिक मध्य प्रदेश के उत्तरी भाग में था।
  • कुछ समय आसफ़ ख़ाँ ने नये विजित क्षेत्र का प्रशासन चलाया, लेकिन बाद में वहाँ से उसका तबादला कर दिया गया।
  • 1576 ई. में उसे राजा मानसिंह के साथ उस मुग़ल सेना का सेनापति बनाकर भेजा गया, जिसने राणा प्रताप को हल्दीघाटी के युद्ध में अप्रैल 1576 में पराजित किया था। बाद में इन्होंने चित्तोड़ पर विजय प्राप्त की और इसके उपलक्ष्य में इन्हें वहां जागीर मिली।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 461 |

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