शाल्व: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
No edit summary |
||
Line 8: | Line 8: | ||
[[Category:पौराणिक कोश]] | [[Category:पौराणिक कोश]] | ||
[[Category:महाभारत]] | [[Category:महाभारत]] | ||
[[Category:प्रसिद्ध चरित्र और मिथक कोश]] | |||
__INDEX__ | __INDEX__ |
Revision as of 09:53, 27 May 2010
- कृष्ण के द्वारा शिशुपाल के मारे जाने पर उसके भाई शाल्व ने द्वारका पर आक्रमण कर दिया। श्रीकृष्ण उन दिनों पांडवों के पास इन्द्रप्रस्थ गये हुए थे। उद्धव, प्रद्युम्न, चारुदेष्ण तथा सात्यकि आदि ने बहुत समय तक शाल्व से युद्ध किया। शाल्व मायावी प्रयोगों में चतुर था। प्रद्युम्न बहुत अच्छा योद्धा था। दोनों घायल होकर भी युद्ध में लगे रहे। प्रद्युम्न उस पर कोई विषाक्त बाण छोड़ने वाला था, तभी देवताओं के भेजे हुए वायुदेव ने प्रद्युम्न को संदेश दिया कि उसकी मृत्यु श्रीकृष्ण के हाथों होनी निश्चित है, अत: वह अपना बाण न छोड़े। प्रद्युम्न ने अपने बाण समेट लिये। शाल्व विमान में अपने नगर की ओर भाग गया। उसके पास आकाशचारी सोम विमान था जिसमें रहकर वह युद्ध करता था। श्रीकृष्ण जब द्वारका पहुंचे तब उन्हें समस्त घटना के विषय में विदित हुआ। उन्होंने शाल्व तथा सोम का नाश करने का निश्चय किया। उन्हें ज्ञात हुआ कि शाल्व समुद्र तट पर गया हुआ है। श्रीकृष्ण ने उस पर आक्रमण कर दिया। उसने माया से श्रीकृष्ण को वसुदेव के मृत शरीर के दर्शन भी करवाये, कुछ समय के लिए श्रीकृष्ण विचलित से भी जान पड़ें, किंतु अंत में श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र से उसे मार डाला।<balloon title="महाभारत, वनपर्व, अध्याय 15-22" style="color:blue">*</balloon>
- शाल्व शिशुपाल के मित्रों में से था। शिशुपाल के वध के उपरांत उसने घोर तपस्या से शिव को प्रसन्न करके वरदानस्वरूप ऐसा विमान प्राप्त किया था जो चालक की इच्छानुसार किसी भी स्थान पर पहुंचाने में समर्थ था तथा अंधकार की अधिकता के कारण किसी को दिखायी नहीं पड़ता था। वह यदुवंशियों के लिए त्रासक था। उस सोम वाहन का निर्माण मयदानव ने लोहे से किया था। शाल्व ने उस विमान पर अनेक सैनिकों को सवार करके द्वारका पर चढ़ाई कर दी। वहां प्रद्युम्न से उसका घोर युद्ध हुआ। द्वारकावासी बहुत त्रस्त थे। उधर यज्ञ की समाप्ति पर अपशकुनों का अनुभव करते हुए कृष्ण और बलराम द्वारका पहुंचे। बलराम को नगर की रक्षा का भार सौंपकर कृष्ण युद्धक्षेत्र में पहुंचे। उन्होंने शाल्व के सैनिकों को क्षत-विक्षत कर दिया। शाल्व घायल होकर अंतर्धान हो गया। एक अपरिचित व्यक्ति ने उसका दौत्य कर्म संपन्न करते हुए कृष्ण से कहा कि शाल्व ने उनके पिता को कैद कर लिया है। कुछ क्षण तो कृष्ण उदास रहे, फिर अचानक विमान पर शाल्व को वसुदेव के साथ देख वे समझ गये कि यह सब शाल्व नहीं, माया मात्र है। उन्होंने सुदर्शन चक्र से शाल्व को मार डाला। विमान चूर-चूर होकर समुद्र में गिर गया। शाल्व के वध और सोम विमान के नाश के उपरांत क्रमश: तदंवक्त्र तथा विदूरक भी कृष्ण के हाथों मारे गये।<balloon title="श्रीमद् भागवत, 10।76-77, 10।78।1-16" style="color:blue">*</balloon>
- शाल्व म्लेच्छों का राजा था। शल्य के वधोपरांत शाल्व ने पांडवों से युद्ध किया था। उसका हाथी अत्यंत बलशाली था। धृष्टद्युम्न से युद्ध करते हुए पहले तो उसका हाथी थोड़ा पीछे हटा, फिर क्रुद्ध होकर उसने धृष्टद्युम्न के रथ को सारथि सहित कुचल डाला, फिर सूंड़ से उठाकर पटक दिया। उसका क्रोध देखकर ही धृष्टद्युम्न रथ से नीचे कूद गया तथा अपनी गदा उठाकर मारी, जिससे हाथी का मस्तक विदीर्ण हो गया, तभी सात्यकि ने एक तीखे मल्ल से शाल्व का सिर काट दिया।<balloon title="महाभारत, शल्यपर्व, 20" style="color:blue">*</balloon>