गीता 3:8: Difference between revisions
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यहाँ यह जिज्ञासा होती है कि शास्त्र विहित यज्ञ, दान और तप आदि शुभ कर्म भी तो बन्धन के हेतु माने गये हैं; फिर कर्म न करने की अपेक्षा कर्म करना श्रेष्ठ कैसे है ? इस पर कहते हैं- | यहाँ यह जिज्ञासा होती है कि शास्त्र विहित [[यज्ञ]], दान और तप आदि शुभ कर्म भी तो बन्धन के हेतु माने गये हैं; फिर कर्म न करने की अपेक्षा कर्म करना श्रेष्ठ कैसे है ? इस पर कहते हैं- | ||
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Latest revision as of 09:49, 4 January 2013
गीता अध्याय-3 श्लोक-8 / Gita Chapter-3 Verse-8
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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