मध्यकालीन हिंदी: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
(''''हिंदी''' भारतीय गणराज की राजकीय और मध्य भारतीय- आर्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
m (Text replacement - " महान " to " महान् ")
 
(One intermediate revision by one other user not shown)
Line 1: Line 1:
{{हिन्दी विषय सूची}}
'''हिंदी''' भारतीय गणराज की राजकीय और मध्य भारतीय- आर्य भाषा है। सन [[2001]] की जनगणना के अनुसार, लगभग 25.79 करोड़ भारतीय [[हिंदी]] का उपयोग मातृभाषा के रूप में करते हैं, जबकि लगभग 42.20 करोड़ लोग इसकी 50 से अधिक बोलियों में से एक इस्तेमाल करते हैं। सन [[1998]] के पूर्व, मातृभाषियों की संख्या की दृष्टि से विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं के जो आँकड़े मिलते थे, उनमें हिन्दी को तीसरा स्थान दिया जाता था।
'''हिंदी''' भारतीय गणराज की राजकीय और मध्य भारतीय- आर्य भाषा है। सन [[2001]] की जनगणना के अनुसार, लगभग 25.79 करोड़ भारतीय [[हिंदी]] का उपयोग मातृभाषा के रूप में करते हैं, जबकि लगभग 42.20 करोड़ लोग इसकी 50 से अधिक बोलियों में से एक इस्तेमाल करते हैं। सन [[1998]] के पूर्व, मातृभाषियों की संख्या की दृष्टि से विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं के जो आँकड़े मिलते थे, उनमें हिन्दी को तीसरा स्थान दिया जाता था।


Line 6: Line 8:
==ब्रजभाषा==
==ब्रजभाषा==
{{main|ब्रजभाषा}}
{{main|ब्रजभाषा}}
हिंदी के मध्यकाल में मध्य देश की महान भाषा परम्परा के उत्तरादायित्व का पूरा निर्वाह ब्रजभाषा ने किया। यह अपने समय की परिनिष्ठित व उच्च कोटि की साहित्यिक भाषा थी, जिसको गौरवान्वित करने का सर्वाधिक श्रेय हिंदी के कृष्णभक्त कवियों को है। पूर्व मध्यकाल (अर्थात् भक्तिकाल) में कृष्णभक्त कवियों ने अपने साहित्य में ब्रजभाषा का चरम विकास किया। पुष्टि मार्ग/शुद्धाद्वैत सम्प्रदाय के [[सूरदास]] (सूरसागर), [[नंददास]], [[निम्बार्क संप्रदाय]] के श्री भट्ट, [[चैतन्य सम्प्रदाय]] के गदाधर भट्ट, [[राधावल्लभ सम्प्रदाय]] के [[हित हरिवंश]] ([[श्रीकृष्ण]] की [[बाँसुरी]] के अवतार) एवं सम्प्रदाय–निरपेक्ष कवियों में [[रसखान]], [[मीराबाई]] आदि प्रमुख कृष्णभक्त कवियों ने ब्रजभाषा के साहित्यिक विकास में अमूल्य योगदान दिया। इनमें सर्वप्रमुख स्थान सूरदास का है, जिन्हें 'अष्टछाप का जहाज़' कहा जाता है। उत्तर मध्यकाल (अर्थात् रीतिकाल) में अनेक आचार्यों एवं कवियों ने ब्रजभाषा में लाक्षणिक एवं रीति ग्रंथ लिखकर ब्रजभाषा के साहित्य को समृद्ध किया। रीतिबद्ध कवियों में [[केशवदास]], [[मतिराम]], [[बिहारी लाल|बिहारी]], देव, [[पद्माकर]], भिखारी दास, सेनापति, आदि तथा रीतिमुक्त कवियों में [[घनानंद]], आलम, बोधा आदि प्रमुख हैं। (ब्रजबुलि—[[बंगाल]] में कृष्णभक्त कवियों के द्वारा प्रचारित भाषा का नाम।)
हिंदी के मध्यकाल में मध्य देश की महान् भाषा परम्परा के उत्तरादायित्व का पूरा निर्वाह ब्रजभाषा ने किया। यह अपने समय की परिनिष्ठित व उच्च कोटि की साहित्यिक भाषा थी, जिसको गौरवान्वित करने का सर्वाधिक श्रेय हिंदी के कृष्णभक्त कवियों को है। पूर्व मध्यकाल (अर्थात् भक्तिकाल) में कृष्णभक्त कवियों ने अपने साहित्य में ब्रजभाषा का चरम विकास किया। पुष्टि मार्ग/शुद्धाद्वैत सम्प्रदाय के [[सूरदास]] (सूरसागर), [[नंददास]], [[निम्बार्क संप्रदाय]] के श्री भट्ट, [[चैतन्य सम्प्रदाय]] के गदाधर भट्ट, [[राधावल्लभ सम्प्रदाय]] के [[हित हरिवंश]] ([[श्रीकृष्ण]] की [[बाँसुरी]] के अवतार) एवं सम्प्रदाय–निरपेक्ष कवियों में [[रसखान]], [[मीराबाई]] आदि प्रमुख कृष्णभक्त कवियों ने ब्रजभाषा के साहित्यिक विकास में अमूल्य योगदान दिया। इनमें सर्वप्रमुख स्थान सूरदास का है, जिन्हें 'अष्टछाप का जहाज़' कहा जाता है। उत्तर मध्यकाल (अर्थात् रीतिकाल) में अनेक आचार्यों एवं कवियों ने ब्रजभाषा में लाक्षणिक एवं रीति ग्रंथ लिखकर ब्रजभाषा के साहित्य को समृद्ध किया। रीतिबद्ध कवियों में [[केशवदास]], [[मतिराम]], [[बिहारी लाल|बिहारी]], देव, [[पद्माकर]], भिखारी दास, सेनापति, आदि तथा रीतिमुक्त कवियों में [[घनानंद]], आलम, बोधा आदि प्रमुख हैं। (ब्रजबुलि—[[बंगाल]] में कृष्णभक्त कवियों के द्वारा प्रचारित भाषा का नाम।)
==अवधी==
==अवधी==
{{main|अवधी भाषा}}
{{main|अवधी भाषा}}

Latest revision as of 11:09, 1 August 2017

हिन्दी विषय सूची


हिंदी भारतीय गणराज की राजकीय और मध्य भारतीय- आर्य भाषा है। सन 2001 की जनगणना के अनुसार, लगभग 25.79 करोड़ भारतीय हिंदी का उपयोग मातृभाषा के रूप में करते हैं, जबकि लगभग 42.20 करोड़ लोग इसकी 50 से अधिक बोलियों में से एक इस्तेमाल करते हैं। सन 1998 के पूर्व, मातृभाषियों की संख्या की दृष्टि से विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं के जो आँकड़े मिलते थे, उनमें हिन्दी को तीसरा स्थान दिया जाता था।


मध्यकाल में हिंदी का स्वरूप स्पष्ट हो गया तथा उसकी प्रमुख बोलियाँ विकसित हो गईं। इस काल में भाषा के तीन रूप निखरकर सामने आए— ब्रजभाषा, अवधी व खड़ी बोली। ब्रजभाषा और अवधी का अत्यधिक साहित्यिक विकास हुआ तथा तत्कालीन ब्रजभाषा साहित्य को कुछ देशी राज्यों का संरक्षण भी प्राप्त हुआ। इनके अतिरिक्त मध्यकाल में खड़ी बोली के मिश्रित रूप का साहित्य में प्रयोग होता रहा। इसी खड़ी बोली का 14वीं सदी में दक्षिण में प्रवेश हुआ, अतः वहाँ पर इसका साहित्य में अधिक प्रयोग हुआ। 18वीं सदी में खड़ी बोली को मुसलमान शासकों का संरक्षण मिला तथा इसके विकास को नई दिशा मिली। [[चित्र:Hindi-Area.jpg|thumb|250px|भारत में हिंदी भाषी क्षेत्र]]

ब्रजभाषा

  1. REDIRECTसाँचा:मुख्य

हिंदी के मध्यकाल में मध्य देश की महान् भाषा परम्परा के उत्तरादायित्व का पूरा निर्वाह ब्रजभाषा ने किया। यह अपने समय की परिनिष्ठित व उच्च कोटि की साहित्यिक भाषा थी, जिसको गौरवान्वित करने का सर्वाधिक श्रेय हिंदी के कृष्णभक्त कवियों को है। पूर्व मध्यकाल (अर्थात् भक्तिकाल) में कृष्णभक्त कवियों ने अपने साहित्य में ब्रजभाषा का चरम विकास किया। पुष्टि मार्ग/शुद्धाद्वैत सम्प्रदाय के सूरदास (सूरसागर), नंददास, निम्बार्क संप्रदाय के श्री भट्ट, चैतन्य सम्प्रदाय के गदाधर भट्ट, राधावल्लभ सम्प्रदाय के हित हरिवंश (श्रीकृष्ण की बाँसुरी के अवतार) एवं सम्प्रदाय–निरपेक्ष कवियों में रसखान, मीराबाई आदि प्रमुख कृष्णभक्त कवियों ने ब्रजभाषा के साहित्यिक विकास में अमूल्य योगदान दिया। इनमें सर्वप्रमुख स्थान सूरदास का है, जिन्हें 'अष्टछाप का जहाज़' कहा जाता है। उत्तर मध्यकाल (अर्थात् रीतिकाल) में अनेक आचार्यों एवं कवियों ने ब्रजभाषा में लाक्षणिक एवं रीति ग्रंथ लिखकर ब्रजभाषा के साहित्य को समृद्ध किया। रीतिबद्ध कवियों में केशवदास, मतिराम, बिहारी, देव, पद्माकर, भिखारी दास, सेनापति, आदि तथा रीतिमुक्त कवियों में घनानंद, आलम, बोधा आदि प्रमुख हैं। (ब्रजबुलि—बंगाल में कृष्णभक्त कवियों के द्वारा प्रचारित भाषा का नाम।)

अवधी

  1. REDIRECTसाँचा:मुख्य

अवधी को साहित्यिक भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने का श्रेय सूफ़ी/प्रेममार्गी कवियों को है। कुतबन ('मृगावती'), जायसी ('पद्मावत'), मंझन ('मधुमालती'), आलम ('माधवानल कामकंदला'), उसमान ('चित्रावली'), नूर मुहम्मद ('इन्द्रावती'), कासिमशाह ('हंस जवाहिर'), शेख निसार ('यूसुफ़ जुलेखा'), अलीशाह ('प्रेम चिंगारी') आदि सूफ़ी कवियों ने अवधी को साहित्यिक गरिमा प्रदान की। इनमें सर्वप्रमुख जायसी थे। अवधी को रामभक्त कवियों ने अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया, विशेषकर तुलसीदास ने 'रामचरितमानस' की रचना बैसवाड़ी अवधी में कर अवधी भाषा को जिस साहित्यिक ऊँचाई पर पहुँचाया, वह अतुलनीय है। मध्यकाल में साहित्यिक अवधी का चरमोत्कर्ष दो कवियों में मिलता है, जायसी और तुलसीदास। जायसी के यहाँ जहाँ अवधी का ठेठ ग्रामीण रूप मिलता है, वहाँ तुलसी के यहाँ अवधी का तत्सममुखी रूप है। (गोहारी/गोयारी— बंगाल में सूफ़ियों द्वारा प्रचारित अवधी भाषा का नाम।)

खड़ी बोली

  1. REDIRECTसाँचा:मुख्य

मध्यकाल में खड़ी बोली का मुख्य केन्द्र उत्तर से बदलकर दक्कन में हो गया। इस प्रकार, मध्यकाल में खड़ी बोली के दो रूप हो गए— उत्तरी हिंदी व दक्कनी हिंदी। खड़ी बोली मध्यकाल रूप कबीर, नानक, दादू, मलूकदास, रज्जब आदि संतों; गंग की 'चन्द छन्द वर्णन की महिमा', रहीम के 'मदनाष्टक', आलम के 'सुदामा चरित', जटमल की 'गोरा बादल की कथा', वली, सौदा, इन्शा, नज़ीर आदि दक्कनी एवं उर्दू के कवियों, 'कुतुबशतम' (17वीं सदी), 'भोगलू पुराण' (18वीं सदी), संत प्राणनाथ के 'कुलजमस्वरूप' आदि में मिलता है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख