गीता 11:34: Difference between revisions

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[[द्रोणाचार्य]]<ref>द्रोणाचार्य [[कौरव]] और पांडवों के गुरु थे। कौरवों और पांडवों ने द्रोणाचार्य के आश्रम में ही अस्त्रों और शस्त्रों की शिक्षा पायी थी। [[अर्जुन]] द्रोणाचार्य के प्रिय शिष्य थे।</ref> और [[भीष्म]]<ref>भीष्म [[महाभारत]] के प्रमुख पात्रों में से एक हैं। ये महाराजा [[शांतनु]] के पुत्र थे। अपने [[पिता]] को दिये गये वचन के कारण इन्होंने आजीवन ब्रह्मचर्य का व्रत लिया था। इन्हें इच्छामृत्यु का वरदान प्राप्त था।</ref> पितामह तथा जयद्रथ<ref>[[महाभारत]] में [[जयद्रथ]] सिंधु प्रदेश के राजा थे। उनका [[विवाह]] [[कौरव|कौरवों]] की एकमात्र बहन दुशाला से हुआ था।</ref> और [[कर्ण]]<ref>कर्ण [[कुन्ती]] व [[सूर्य देव]] के पुत्र थे। वे एक अत्यन्त पराक्रमी तथा दानशील पुरुष थे।</ref> तथा और भी बहुत-से मेरे द्वारा मारे हुए शूरवीर योद्धाओं को तू मार। भय मत कर। नि:सन्देह तू युद्ध में वैरियों को जीतेगा। इसलिये युद्ध कर ।।34।।
[[द्रोणाचार्य]]<ref>द्रोणाचार्य [[कौरव]] और पांडवों के गुरु थे। कौरवों और पांडवों ने द्रोणाचार्य के आश्रम में ही अस्त्रों और शस्त्रों की शिक्षा पायी थी। [[अर्जुन]] द्रोणाचार्य के प्रिय शिष्य थे।</ref> और [[भीष्म]]<ref>भीष्म [[महाभारत]] के प्रमुख पात्रों में से एक हैं। ये महाराजा [[शांतनु]] के पुत्र थे। अपने [[पिता]] को दिये गये वचन के कारण इन्होंने आजीवन ब्रह्मचर्य का व्रत लिया था। इन्हें इच्छामृत्यु का वरदान प्राप्त था।</ref> पितामह तथा [[जयद्रथ]]<ref>[[महाभारत]] में जयद्रथ सिंधु प्रदेश के राजा थे। उनका [[विवाह]] [[कौरव|कौरवों]] की एकमात्र बहन दुशाला से हुआ था।</ref> और [[कर्ण]]<ref>कर्ण [[कुन्ती]] व [[सूर्य देव]] के पुत्र थे। वे एक अत्यन्त पराक्रमी तथा दानशील पुरुष थे।</ref> तथा और भी बहुत-से मेरे द्वारा मारे हुए शूरवीर योद्धाओं को तू मार। भय मत कर। नि:सन्देह तू युद्ध में वैरियों को जीतेगा। इसलिये युद्ध कर ।।34।।


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द्रोणम् = द्रोणाचार्य ; च = तथा; अन्यान् = और भी बहुत से; मया = मेरे द्वारा हतान् = मारे हुए; योधवीरान् = शूरवीर योधाओंको; त्वम् = तूं; जहि = मार(और); मा व्यथिष्ठा: = भय मत कर; रणे = (नि:सन्देह तूं) युद्धमें; सपत्रान्  = वैरियों को; जेतासि = जीतेगा; (अतJ = इसलिये; युध्यस्व = युद्ध कर  
द्रोणम् = द्रोणाचार्य ; च = तथा; अन्यान् = और भी बहुत से; मया = मेरे द्वारा हतान् = मारे हुए; योधवीरान् = शूरवीर योधाओं को; त्वम् = तूं; जहि = मार(और); मा व्यथिष्ठा: = भय मत कर; रणे = (नि:सन्देह तूं) युद्धमें; सपत्रान्  = वैरियों को; जेतासि = जीतेगा; (अतJ = इसलिये; युध्यस्व = युद्ध कर  
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गीता अध्याय-11 श्लोक-34 / Gita Chapter-11 Verse-34


द्रोणं च भीष्मं च जयद्रथं च
कर्णं तथान्यानपि योधवीरान् ।
मया हतांस्त्वं जहि मा व्यथिष्ठा
युध्यस्व जेतासि रणे सपत्नान् ।।34।।



द्रोणाचार्य[1] और भीष्म[2] पितामह तथा जयद्रथ[3] और कर्ण[4] तथा और भी बहुत-से मेरे द्वारा मारे हुए शूरवीर योद्धाओं को तू मार। भय मत कर। नि:सन्देह तू युद्ध में वैरियों को जीतेगा। इसलिये युद्ध कर ।।34।।

Do you kill Drona and Bhisma and Jayadratha and Karna and even other brave warriors; who stand already killed by Me; fear not. You will surely conquer the enemies in this war; therefore, fight. (34)


द्रोणम् = द्रोणाचार्य ; च = तथा; अन्यान् = और भी बहुत से; मया = मेरे द्वारा हतान् = मारे हुए; योधवीरान् = शूरवीर योधाओं को; त्वम् = तूं; जहि = मार(और); मा व्यथिष्ठा: = भय मत कर; रणे = (नि:सन्देह तूं) युद्धमें; सपत्रान् = वैरियों को; जेतासि = जीतेगा; (अतJ = इसलिये; युध्यस्व = युद्ध कर



अध्याय ग्यारह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-11

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10, 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26, 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41, 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51 | 52 | 53 | 54 | 55

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. द्रोणाचार्य कौरव और पांडवों के गुरु थे। कौरवों और पांडवों ने द्रोणाचार्य के आश्रम में ही अस्त्रों और शस्त्रों की शिक्षा पायी थी। अर्जुन द्रोणाचार्य के प्रिय शिष्य थे।
  2. भीष्म महाभारत के प्रमुख पात्रों में से एक हैं। ये महाराजा शांतनु के पुत्र थे। अपने पिता को दिये गये वचन के कारण इन्होंने आजीवन ब्रह्मचर्य का व्रत लिया था। इन्हें इच्छामृत्यु का वरदान प्राप्त था।
  3. महाभारत में जयद्रथ सिंधु प्रदेश के राजा थे। उनका विवाह कौरवों की एकमात्र बहन दुशाला से हुआ था।
  4. कर्ण कुन्तीसूर्य देव के पुत्र थे। वे एक अत्यन्त पराक्रमी तथा दानशील पुरुष थे।

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