सियालकोट: Difference between revisions
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'''सियालकोट अथवा स्यालकोट''' [[पाकिस्तान]] में स्थित एक ऐतिहासिक स्थान है। टॉलमी ने इसे यूथेडेमिया कहा है। [[महाभारत]] | '''सियालकोट अथवा स्यालकोट''' [[पाकिस्तान]] में स्थित एक ऐतिहासिक स्थान है। टॉलमी ने इसे यूथेडेमिया कहा है। [[महाभारत|महाभारत काल]] में स्यालकोट मद्रों की राजधानी थी। | ||
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*[[युवानच्वांग]] ने सातवीं शताब्दी में इस नगर को देखा था। उसने इसे | *[[युवानच्वांग]] ने सातवीं शताब्दी में इस नगर को देखा था। उसने इसे शे-की-लो लिखा है। उसके समय यद्यपि इसका प्राकार ध्वस्त हो चुका था। किंतु उसकी नींव दृढ़ थी। | ||
*सियालकोट में एक विहार था। यहाँ महायान सम्प्रदाय के सौ भिक्षु रहते थे। | *सियालकोट में एक विहार था। यहाँ [[महायान|महायान सम्प्रदाय]] के सौ भिक्षु रहते थे। | ||
*इस विहार के पश्चिमोत्तर में [[अशोक]] द्वारा निर्मित कोई 200 फुट ऊँचा एक स्तूप था। | *इस विहार के पश्चिमोत्तर में [[अशोक]] द्वारा निर्मित कोई 200 फुट ऊँचा एक [[स्तूप]] था। | ||
*शाकल 326 ई.पू. मे [[सिकन्दर]] | *शाकल 326 ई.पू. मे [[सिकन्दर|सिकन्दर महान]] के आधिपत्य में चला गया था। उसने इसे निकटस्थ [[झेलम नदी|झेलम]] तथा [[चिनाब नदी|चिनाब]] के मध्यवर्ती क्षेत्र के क्षत्रप के अधीन कर दिया था। | ||
*मेसीडोनियायियों ने शाकल को नष्ट कर दिया था। बाख्त्री (बैक्टीरियाई) यवन राजा डेमिट्रियस ने इसका पुनर्निर्माण करवाया था और अपने पिता यूथेडेमस के समान में इसे यूथेडेमिया कहा। | *मेसीडोनियायियों ने शाकल को नष्ट कर दिया था। बाख्त्री (बैक्टीरियाई) यवन राजा डेमिट्रियस ने इसका पुनर्निर्माण करवाया था और अपने पिता यूथेडेमस के समान में इसे यूथेडेमिया कहा। | ||
*[[मिलिन्दपन्ह|मिलिन्दपन्हो]] में [[भारत]] के इण्डोग्रीक नरेश | *[[मिलिन्दपन्ह|मिलिन्दपन्हो]] में [[भारत]] के इण्डोग्रीक नरेश [[मिनांडर]] (115-90 ई.पू.) की राजधानी शाकल बतायी गयी है। उसके समय शाकल शिक्षा का एक प्रसिद्ध केन्द्र था एवं वैभव एवं ऐश्वर्य में यह [[पाटलिपुत्र]] की समता करती थी। | ||
*इसमें उपवनों तालाबों, नदियों, पहाड़ों और जंगलों की बहुतायत थी। इस नगर में बनारसी मलमल, [[रत्न]] और बहुमूल्य वस्तुओं की बड़ी-बड़ी दुकानें थी। | *इसमें उपवनों तालाबों, नदियों, पहाड़ों और जंगलों की बहुतायत थी। इस नगर में बनारसी मलमल, [[रत्न]] और बहुमूल्य वस्तुओं की बड़ी-बड़ी दुकानें थी। | ||
*मिलिन्दपन्हो में लिखा है कि यह व्यापारिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण नगर था। मिनाण्डर के सिक्के भड़ौच से भी मिले हैं। इससे यह अनुमान लगाया जाता है कि उसके राज्यकाल में शाकल से भड़ौच (भृगृकच्छ) तक व्यापार होता है कि छठी शताब्दी ईस्वी में हूण विजेता [[तोरमाण]] का पुत्र मिहिरकुल द्वारा शाकल को अपने राज्य की राजधानी बनाने का उल्लेख है। | *मिलिन्दपन्हो में लिखा है कि यह व्यापारिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण नगर था। मिनाण्डर के सिक्के भड़ौच से भी मिले हैं। इससे यह अनुमान लगाया जाता है कि उसके राज्यकाल में शाकल से भड़ौच (भृगृकच्छ) तक व्यापार होता है कि छठी शताब्दी ईस्वी में हूण विजेता [[तोरमाण]] का पुत्र मिहिरकुल द्वारा शाकल को अपने राज्य की राजधानी बनाने का उल्लेख है। |
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सियालकोट अथवा स्यालकोट पाकिस्तान में स्थित एक ऐतिहासिक स्थान है। टॉलमी ने इसे यूथेडेमिया कहा है। महाभारत काल में स्यालकोट मद्रों की राजधानी थी।
- विद्वानों के अनुसार शकों के निवास के कारण यह स्थान शाकल कहलाया।
- युवानच्वांग ने सातवीं शताब्दी में इस नगर को देखा था। उसने इसे शे-की-लो लिखा है। उसके समय यद्यपि इसका प्राकार ध्वस्त हो चुका था। किंतु उसकी नींव दृढ़ थी।
- सियालकोट में एक विहार था। यहाँ महायान सम्प्रदाय के सौ भिक्षु रहते थे।
- इस विहार के पश्चिमोत्तर में अशोक द्वारा निर्मित कोई 200 फुट ऊँचा एक स्तूप था।
- शाकल 326 ई.पू. मे सिकन्दर महान के आधिपत्य में चला गया था। उसने इसे निकटस्थ झेलम तथा चिनाब के मध्यवर्ती क्षेत्र के क्षत्रप के अधीन कर दिया था।
- मेसीडोनियायियों ने शाकल को नष्ट कर दिया था। बाख्त्री (बैक्टीरियाई) यवन राजा डेमिट्रियस ने इसका पुनर्निर्माण करवाया था और अपने पिता यूथेडेमस के समान में इसे यूथेडेमिया कहा।
- मिलिन्दपन्हो में भारत के इण्डोग्रीक नरेश मिनांडर (115-90 ई.पू.) की राजधानी शाकल बतायी गयी है। उसके समय शाकल शिक्षा का एक प्रसिद्ध केन्द्र था एवं वैभव एवं ऐश्वर्य में यह पाटलिपुत्र की समता करती थी।
- इसमें उपवनों तालाबों, नदियों, पहाड़ों और जंगलों की बहुतायत थी। इस नगर में बनारसी मलमल, रत्न और बहुमूल्य वस्तुओं की बड़ी-बड़ी दुकानें थी।
- मिलिन्दपन्हो में लिखा है कि यह व्यापारिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण नगर था। मिनाण्डर के सिक्के भड़ौच से भी मिले हैं। इससे यह अनुमान लगाया जाता है कि उसके राज्यकाल में शाकल से भड़ौच (भृगृकच्छ) तक व्यापार होता है कि छठी शताब्दी ईस्वी में हूण विजेता तोरमाण का पुत्र मिहिरकुल द्वारा शाकल को अपने राज्य की राजधानी बनाने का उल्लेख है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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