शाहज़ादा अकबर: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (श्रेणी:प्रसिद्ध व्यक्तित्व (को हटा दिया गया हैं।))
m (श्रेणी:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश (को हटा दिया गया हैं।))
Line 17: Line 17:
{{मुग़ल साम्राज्य}}
{{मुग़ल साम्राज्य}}
{{मुग़ल काल}}
{{मुग़ल काल}}
[[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश]]
[[Category:इतिहास कोश]]
[[Category:इतिहास कोश]]
[[Category:मुग़ल_साम्राज्य]]
[[Category:मुग़ल_साम्राज्य]]


__INDEX__
__INDEX__

Revision as of 11:38, 14 March 2011

  • शाहजादा अकबर औरंगज़ेब और उसकी दिलरस बानो बेग़म का पुत्र था।
  • वह बादशाह औरंगज़ेब का तीसरा और प्यारा बेटा था।

सेना का नेतृत्व

1679 ई. में शाहजादा अकबर ने राजपूतों के विरुद्ध लड़ाई में मुग़ल सेना का नेतृत्व किया था। जब उसकी सेना चित्तौड़ में थी, तो राजपूतों ने उस पर अचानक हमला बोलकर उसे हरा दिया। उसके बाद औरंगज़ेब ने उसका तबादला मारवाड़ कर दिया। शाहजादा अकबर ने इसे अपनी बेइज्जती समझा और सोचा कि मैं स्वयं भी राजपूतों की सहायता से अपने बाप की जगह बादशाह बन सकता हूँ। जैसा की औरंगज़ेब ने किया था। राजपूत सरदारों ने भी उसका हौसला बढ़ाया और उसे समझाया कि राजपूतों की मदद से वह हिन्दुस्तान का सच्चा बादशाह बन सकता है। शाहजादा अकबर ने अपने पिता को एक कड़ा पत्र लिखा, जिसमें उसने असहिष्णुता की नीति को छोड़ने तथा शासन की दुर्व्यवस्था की ओर उसका ध्यान आकर्षित किया।

औरंगज़ेब द्वारा फूट डालना

अन्त में 70 हज़ार सैनिकों के साथ, जिनमें बहुत से राजपूत भी थे, शाहजादा अकबर अजमेर के निकट 15 जनवरी, 1681 ई. को पहुँच गया। उस समय औरंगज़ेब की सेना चित्तौड़ और दूसरों स्थानों में बिखरी हुई थी। अकबर ने उस पर हमला बोल दिया होता तो बादशाह मुश्किल में पड़ जाता, शाहजादे ने ऐयाशी और नाचरंग में समय गवाँ दिया। इस बीच औरंगज़ेब को अकबर और उसके राजपूत साथियों में फूट पैदा करने का मौका मिल गया। राजपूतों ने उसका साथ छोड़ दिया। शाहजादा अकबर राजपूताना से दक्षिण की ओर भागा, जहाँ पर उसने शिवाजी के पुत्र शम्भाजी के यहाँ शरण ली। इससे शाहजादा और मराठों के संयुक्त मोर्चे को ख़तरा पैदा हो गया। औरंगज़ेब खुद दक्षिण गया। लेकिन इस बीच शाहजादा अकबर ने अपने पिता को हराने की आशा छोड़ दी और वह हिन्दुस्तान को छोड़कर फ़ारस चला गया। 1695 ई. में अकबर ने फ़ारस की सहायता से हिन्दुस्तान पर हमला करने की कोशिश की पर मुल्तान के पास उसके सबसे बड़े भाई शाहजादा मुअज्जम के नेतृत्व में मुग़ल सेना ने उसे पराजित कर दिया। इस पराजय के बाद निराश शाहजादा अकबर फिर वापस फ़ारस गया, जहाँ पर 1704 ई. में उसकी मृत्यु हो गई।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

संबंधित लेख