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बाबर
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पूरा नाम | मुगल शाह, अल-सुल्तानु इ आज़म वा इ हकाम, पादशाह-ए-ग़ाज़ी |
अन्य नाम | ज़हीरुद्दीन मुहम्मद बाबर |
जन्म | 14 फरवरी, सन 1483 ई. |
जन्म भूमि | अन्दीना (फ़रग़ना राज्य की राजधानी) |
मृत्यु तिथि | 26 दिसम्बर, सन 1530 ई. |
मृत्यु स्थान | आगरा |
पिता/माता | उमर शेख़ मिर्ज़ा, क़ुतलुगनिग़ार ख़ानम (यूनुस की पुत्री) |
संतान | पुत्र- हुमायूँ, कामरान, अस्करी, हिन्दाल, पुत्री- गुलबदन बेग़म |
उपाधि | ग़ाज़ी (ख़ानवा के युद्ध में विजय के बाद) |
शासन | सन 1526 से 1530 ई. |
राज्याभिषेक | 8 जून, सन 1494 ई.[1] |
युद्ध | पानीपत का प्रथम युद्ध[2], खानवा का युद्ध[3], चंदेरी का युद्ध[4], घाघरा का युद्ध[5] |
निर्माण | क़ाबुली बाग़ मस्जिद,[6], जामी मस्जिद [7], आगरा की मस्जिद [8], नूर अफ़ग़ान[9], बाबरी मस्जिद [10] |
राजघराना | चग़ताई वंश |
वंश | तैमूर [11] और चंग़ेज़ ख़ाँ का वंश [12] |
भारत पर आक्रमण | बाजौर एवं भीरा आक्रमण 1518 से 1519 ई., पेशावर आक्रमण 1519 ई., स्यालकोट, भीरा आक्रमण 1520 ई., सुल्तानपुर, लाहौर, दीपालपुर आक्रमण 1524 ई. |
रचनाऐं | बाबरनामा या तुज़ुक़-ए-बाबरी, दीवान [13], रिसाल-ए-उसज [14], मुबइयान [15] |
मुग़ल साम्राज्य के संस्थापक जहीरूद्दीन बाबर का जन्म मध्य एशिया के फ़रग़ाना राज्य में हुआ था। उसका पिता वहाँ का शासक था, जिसकी मृत्यु के बाद बाबर राज्याधिकारी बना। पारिवारिक कठिनाईयों के कारण वह मध्य एशिया के अपने पैत्रिक राज्य पर शासन नहीं कर सका। उसने केवल 22 वर्ष की आयु में सं. 1561 में क़ाबुल पर अधिकार कर अफ़ग़ानिस्तान में राज्य कायम किया था। वह 22 वर्ष तक क़ाबुल का शासक रहा। उस काल में उसने अपने पूर्वजों के राज्य को वापिस पाने की कई बार कोशिश की; पर सफल नहीं हो सका।
पानीपत युद्ध और इब्राहीम लोदी की पराजय
इस समय इब्राहीम लोदी दिल्ली का सुल्तान था और द़ौलतख़ाँ लोदी पंजाब का राज्यपाल था। दौलतख़ाँ इब्राहीम से नाराज़ था; उसने दिल्ली सल्तनत से विद्रोह कर बाबर को अपनी मदद के लिये क़ाबुल से बुलाया। बाबर ख़ुद भी भारत पर हमला करना चाह रहा था। उसने दौलतख़ाँ लोदी के निमन्त्रण पर तैयारी करने लगा। उस समय तुर्क अफ़ग़ान भारत पर आक्रमण लूट से मालामाल होने के लिये आतुर रहते थे। बाबर एक बहुत बड़ी सेना लेकर पंजाब की ओर चल दिया।
जब इब्राहीम लोदी को दौलत ख़ाँ की बग़ावत और बाबर के आक्रमण का पता चला वह भी अपनी विशाल सेना के साथ आगे बढ़ा। दोनों ओर की सेनाएँ पानीपत के मैदान में एक दूसरे से भिड़ गईं। इब्राहीम की सेना बाबर की सेना से अधिक थी, किन्तु उत्साहहीन और अव्यवस्थित थी। बाबर की सेना उत्साह और जोश से भरपूर थी। इब्राहीम की सेना में बंदूक−तोपधारी सैनिकों की संख्या बहुत कम थी। बाबर की सेना में बंदूकचियों और तोपचियों की संख्या काफ़ी थी, जो गोला−बारूद की युद्ध कला बड़े निपुण थे। इन सब कारणों से सुल्तानी सेना हार गई और इब्राहीम लोदी अपने सहायकों के साथ युद्ध में मारा गया। इसी युद्ध में ग्वालियर के तोमर राजा विक्रमाजीत की भी मृत्यु हुई। 21 अप्रैल, सन् 1526 ई. में पानीपत के युद्ध में जीतने से बाबर की इच्छा पूरी हुई। उसने दौलतख़ाँ लोदी को पंजाब का शासक बना दिया और ख़ुद दिल्ली−आगरा पर अधिकार कर मुग़ल राज्य की स्थापना का प्रयास करने लगा। उसका ध्यान राजपूत राजा राणासांगा पर गया, जिसे हराये बिना वह सफल नहीं हो सकता था।
राणासांगा और बाबर का युद्ध
उत्तरी भारत में दिल्ली के सुल्तान के बाद सबसे अधिक शक्तिशाली शासक चित्तौड़ का राजपूत नरेश राणा सांगा (संग्राम सिंह) था। उसने दो मुसलमानों, इब्राहीम और बाबर के युद्ध में तटस्थता की नीति अपनायी। वह सोचता था कि बाबर लूट-मारकर वापिस चला जायेगा, तब लोदी शासन को हटा दिल्ली में हिन्दू राज्य का उसे सुयोग प्राप्त होगा। जब उसने देखा कि बाबर मुग़ल राज्य की स्थापना का आयोजन कर रहा है, तब वह उससे युद्ध करने के लिए तैयार हुआ। राणा सांगा वीर और कुशल सेनानी था। वह अनेक युद्ध कर चुका था, उसे सदैव विजय प्राप्त हुई थी। उधर बाबर ने भी समझ लिया था कि राणा सांगा के रहते हुए भारत में मुग़ल राज्य की स्थापना करना संभव नहीं हैं; अत: उसने भी अपनी सेना के साथ राणा से युद्ध करने का निश्चय किया। अफ़ग़ान सैनिक राजपूतों से यु्द्ध करने की अपेक्षा अपने घरों को वापिस जाना चाहते थे, बाबर ने बड़े आग्रह-पूर्वक उन्हें रोका। उसने उन्हें उत्साहित किया। मुसलमान सैनिक मरने−मारने के लिए तैयार हो गये। दोनों ओर की सेनाओं में बड़ा भयंकर युद्ध हुआ।
राजस्थान के ऐतिहासिक काव्य 'वीर विनोद' में सांगा और बाबर के उस युद्ध का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है कि बाबर बीस हज़ार मुग़ल सैनिकों को लेकर सांगा से युद्ध करने आया था। उसने सांगा की सेना के लोदी सेनापति को प्रलोभन दिया जिससे वह सांगा को धोखा देकर सेना सहित बाबर से जा मिला। बाबर को सांगा से युद्ध हारने की शंका थी। उसके क़ाबुली ज्योतिषी ने भविष्यवाणी की, कि यदि वह शराब ना पीने का अहद करे, तो ख़ुदा उसे कामयाबी दे देगा। बाबर ने उसी समय शराब छोड़ने का अहद किया और जीवन भर उसे नहीं छुआ। इसी याद में वहाँ एक मस्जिद बनाई, जिसके खंडहर आज भी हैं। बाबर और सांगा की पहली मुठभेड़ बयाना में और दूसरी उसके पास खनुवाँ नामक स्थान पर हुई थी। राजपूतों ने वीरतापूर्वक युद्ध किया; अंत में सांगा की हार हुई और बाबर की विजय। उसका कारण बाबर के सैनिकों की वीरता नहीं बल्कि उनका आधुनिक तोपख़ाना था। राजपूतों से युद्ध करते हुए तुर्कों के पैर उखड़ गये, जिससे राजपूतों की विजय और तुर्कों की पराजय दिखाई देने लगी, किंतु जब बाबर के तोपख़ाने ने आग बरसायी, तब सांगा की जीती बाजी हार में बदल गई। फिर भी सांगा और उसके वीर मरते दम तक लड़ते रहे। बाबर ने राजपूतों के बारे में लिखा है,− 'वे मरना−मारना तो जानते है; किंतु युद्ध करना नहीं जानते।' सांगा और बाबर का यह निर्णायक युद्ध सीकरी के पास खनुवाँ नामक स्थान में 16 अप्रैल, सन् 1527 में हुआ था। इस तरह उस समय के ब्रजमंडल में जयचंद्र के बाद सांगा की भी हार हुई।
मुग़ल राज्य की स्थापना और बाबर की मृत्यु
इब्राहीम लोदी और राणा सांगा की हार के बाद बाबर ने भारत में मुग़ल राज्य की स्थापना की और आगरा को अपनी राजधानी बनाया। उससे पहले सुल्तानों की राजधानी दिल्ली थी; किंतु बाबर ने उसे राजधानी नहीं बनाया क्योंकि वहाँ पठान थे, जो तुर्कों की शासन−सत्ता पंसद नहीं करते थे। प्रशासन और रक्षा दोनों नज़रियों से बाबर को दिल्ली के मुक़ाबले आगरा सही लगा। मुग़ल राज्य की राजधानी आगरा होने से शुरू से ही ब्रज से घनिष्ट संबंध रहा। मध्य एशिया में शासकों का सबसे बड़ा पद 'ख़ान' था, जो मंगोल वंशियों को ही दिया जाता था। दूसरे बड़े शासक 'अमीर' कहलाते थे। बाबर का पूर्वज तैमूर भी 'अमीर' ही कहलाता था। भारत में दिल्ली के मुस्लिम शासक 'सुल्तान' कहलाते थे। बाबर ने अपना पद 'बादशाह' घोषित किया था। बाबर के बाद सभी मुग़ल सम्राट 'बादशाह' कहलाये गये। बाबर केवल 4 वर्ष तक भारत पर राज्य कर सका। उसकी मृत्यु 26 दिसम्बर सन् 1530 को आगरा में हुई। उस समय उसकी आयु केवल 48 वर्ष की थी। बाबर की अंतिम इच्छानुसार उसका शव क़ाबुल ले जाकर दफ़नाया गया, जहाँ उसका मक़बरा बना हुआ है। उसके बाद उसका ज्येष्ठ पुत्र हुमायूँ मुग़ल बादशाह बना।
बाबर के निर्माण कार्य
बाबर के बेटों में हुमायुँ सबसे बड़ा था। वह वीर, उदार और भला था; लेकिन बाबर की तरह कुशल सेनानी और निपुण शासक नहीं था। वह सन् 1530 में अपने पिता की मृत्यु होने के बाद बादशाह बना और 10 वर्ष तक राज्य को दृढ़ करने के लिए शत्रुओं और अपने भाइयों से लड़ता रहा। उसे शेरख़ाँ नाम के पठान सरदार ने शाहबाद ज़िले के चौसा नामक जगह पर सन् 1539 में हरा दिया था। पराजित हो कर हुमायूँ ने दोबारा अपनी शक्ति को बढ़ा कन्नौज नाम की जगह पर शेरख़ाँ की सेना से 17 मई, सन् 1540 में युद्ध किया लेकिन उसकी फिर हार हुई और वह इस देश से भाग गया। इस समय शेरख़ाँ सूर(शेरशाह सूरी) और उसके वंशजों ने भारत पर शासन किया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (11 वर्ष 4 महीने की उम्र में)
- ↑ (1526 ई. में इब्राहीम लोदी एवं बाबर के मध्य)
- ↑ (बाबर व राणा सांगा 1527 ई. में)
- ↑ (1528 ई. में बाबर व मेदिनी राय)
- ↑ (1529 ई. में बाबर व महमूद लोदी)
- ↑ (पानीपत 1529 ई. में)
- ↑ (रुहेलखंड)
- ↑ (सोडी क़िले के अन्दर)
- ↑ (आगरा में ज्यामितीय विधि पर आधारित एक उद्यान)
- ↑ (सेनापति मीर बक़ी द्वारा निर्मित)
- ↑ (पितृ पक्ष से तैमूर का पाँचवाँ वंशज)
- ↑ (मातृ पक्ष से चंग़ेज़ ख़ाँ का चौदहवाँ वंशज)
- ↑ ग़ज़ल और रुबाइयाँ संग्रह
- ↑ (ख़त-ए-बाबरी)
- ↑ (मुस्लिम क़ानून की पुस्तक)
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