उपर्युक्त लक्षणों वाले पुरुष जिसे प्राप्त करते हैं, वह अविनाशी पद कैसा है ? ऐसी जिज्ञासा होने पर उस परमेश्वर के स्वरूप भूत परम पद की महिमा कहते हैं –
न तद्भासयते सूर्यो न शशाङ्को न पावक: । यद्गत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम ।।6।।
जिस परमपद को प्राप्त होकर मनुष्य लौटकर संसार में नहीं आते, उस स्वयं प्रकाश परमपद को न सूर्य[1] प्रकाशित कर सकता है, न चन्द्रमा[2] और न अग्नि[3] ही; वही मेरा परमधाम है ।।6।।
Neither the sun nor the moon nor even fire can illumine that supreme self-effulgent state, attaining to which they never return to this world. That is My supreme Abode. (6)
तत् = उस (स्वयम् प्रकाश मय परमपद को) ; भासयते = प्रकाशित कर सकता है ; न = न ; शशाक्ड: = चन्द्रमा (और) ; न = न ; पावक: = अग्नि ही ; (भासयते) = प्रकाशित कर सकता है (तथा) ; न = न ; सूर्य: = सूर्य ; यत् = जिस परमपद को ; गत्वा = प्राप्त होकर (मनुष्य) ; न निवर्तन्ते = पीछे संसार में नहीं आते हैं ; तत् = वंही ; मम = मेरा ; परमम् = परम ; धाम = धाम है ;