गीता 9:20: Difference between revisions

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Latest revision as of 10:43, 5 January 2013

गीता अध्याय-9 श्लोक-20 / Gita Chapter-9 Verse-20

प्रसंग-


तेरहवें से पंद्रहवें श्लोक तक अपने सगुण-निर्गुण और विराट् रूप की उपासनाओं का वर्णन करके भगवान् ने उन्नीसवें श्लोक तक समस्त विश्व को अपना बतलाया, समस्त विश्व मेरा ही स्वरूप होने के कारण इन्द्र[1] और अन्य देवों की उपासना भी प्रकारान्तर से मेरी ही उपासना है, परंतु ऐसा न जानकर फलासक्ति-पूर्वक पृथक्-पृथक् भाव से उपासना करने वालों को मेरी प्राप्ति न होकर विनाशी फल ही मिलता है। इसी बात को दिखलाने के लिये अब दो श्लोकों में भगवान् उस उपासना का फल सहित वर्णन करते हैं –


त्रैविद्या मां सोमपा: पूतपापा
यज्ञै रिष्ट्वा स्वर्गतिं प्रार्थयन्ते ।
ते पुण्यमासाद्य सुरेन्द्रलोक-
मश्नन्ति दिव्यान्दिवि देवभोगान् ।।20।।



तीनों वेदों[2] में विधान किये हुए सकाम कर्मों को करने वाले, सोम रस[3] को पीने वाले, पाप रहित पुरुष मुझको यज्ञों के द्वारा पूजकर स्वर्ग की प्राप्ति चाहते हैं; वे पुरुष अपने पुण्यों के फलरूप स्वर्गलोक को प्राप्त होकर स्वर्ग में दिव्य देवताओं के भोगों को भोगते हैं ।।20।।

Those who perform action with some interested motive as laid down in these three Vedas and drink the sap of the soma plant, and have thus been purged of sin, worshipping me through sacrifices, seek access to heaven; attaining indra’s paradise as the result of their virtuous deeds, they ejoy the celestial pleasures of gods in heaven. (20)


त्रैविद्या: = तीनों वेदों में विधान किये हुए सकाम कर्मों को करने वाले (और) ; सोमपा: = सोमरस को पीने वाले ; प्रार्थयन्ते = चाहते हैं ; ते = वे पुरुष ; पुण्यम् = अपने पुण्यों के फलरूप ; सुरेन्द्रलोकम् = इन्द्रलोक को ; पूतपापा: = पापों से पवित्र हुए पुरुष ; माम् = मेरे को ; यज्ञै: = यज्ञों के द्वारा ; इष्टा = पूजकर ; स्वर्गतिम् = स्वर्ग की प्राप्ति को ; आसाद्य = प्राप्त होकर ; दिवि = स्वर्ग में ; दिव्यान् = दिव्य ; देवभोगान् = देवताओं के भोगों को ; अश्नन्ति = भोगते हैं ;



अध्याय नौ श्लोक संख्या
Verses- Chapter-9

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. देवताओं के राजा इन्द्र कहलाते हैं। इन्हें वर्षा का देवता माना जाता है।
  2. वेद हिन्दू धर्म के प्राचीन पवित्र ग्रंथों का नाम है, इससे वैदिक संस्कृति प्रचलित हुई।
  3. वेदों में वर्णित सोमरस का पौधा जिसे सोम कहते हैं, जो अफ़ग़ानिस्तान की पहाड़ियों पर ही पाया जाता है।

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