अरब देश: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
m (Text replacement - "राजपुत" to "राजपूत")
 
(14 intermediate revisions by 8 users not shown)
Line 1: Line 1:
[[एशिया]]-खण्ड के दक्षिण-पश्चिमांचल में फ़ारस की खाड़ी, भारतीय समुद्र रक्तसागर ‘हलब’ और फ़ुरात आदि नदियों से अरब देश घिरा हुआ है। 6,000 मील लम्बे 2,240 मील चौड़े बालुकामय इस पहाड़ी देश की तुलना कुछ-कुछ हमारे यहाँ के [[मारवाड़]] और [[बीकानेर]] से हो सकती है। बहुत दिनों से अरब-निवासी ‘बद्दू’ बकरी- ऊँट चराते एक स्थान से दूसरे स्थान घूमते-फिरते हैं। ‘शाम’ की भाषा में मरुभूमि को ‘अरबत्’ कहते हैं, इसी से ‘अरब’ शब्द निकला है। यहाँ का उच्चतम पर्वत ‘सिरात’, ‘यमन’ प्रदेश से ‘शाम’ तक फैला हुआ है; जिसकी सबसे ऊँची चोटी 5,333 हाथ ऊँची है। बीच-बीच में कही-कही विशेषकर ‘शाम’ प्रदेश में खेती के उपयुक्त उर्वरा भूमि भी है। जहाँ कहीं-कहीं पर सोने-चाँदी की खानें भी पायी जाती हैं।
{{बहुविकल्प|बहुविकल्पी शब्द=अरब|लेख का नाम=अरब (बहुविकल्पी)}}
[[एशिया]]-खण्ड के दक्षिण-पश्चिमांचल में [[फ़ारस की खाड़ी]], भारतीय समुद्र रक्तसागर ‘हलब’ और फ़ुरात आदि नदियों से अरब देश घिरा हुआ है। 6,000 मील लम्बे 2,240 मील चौड़े बालुकामय इस पहाड़ी देश की तुलना कुछ-कुछ हमारे यहाँ के [[मारवाड़]] और [[बीकानेर]] से हो सकती है। बहुत दिनों से अरब-निवासी ‘बद्दू’ बकरी- ऊँट चराते एक स्थान से दूसरे स्थान घूमते-फिरते हैं। ‘शाम’ की भाषा में मरुभूमि को ‘अरबत्’ कहते हैं, इसी से ‘अरब’ शब्द निकला है। यहाँ का उच्चतम पर्वत ‘सिरात’, ‘यमन’ प्रदेश से ‘शाम’ तक फैला हुआ है; जिसकी सबसे ऊँची चोटी 5,333 हाथ ऊँची है। बीच-बीच में कही-कही विशेषकर ‘शाम’ प्रदेश में खेती के उपयुक्त उर्वरा भूमि भी है। जहाँ कहीं-कहीं पर [[स्वर्ण|सोने]]-[[चाँदी]] की खानें भी पायी जाती हैं।
==इतिहास==
==इतिहास==
{{tocright}}
{{tocright}}
*अत्यंत प्राचीन काल में 'जदीस', 'आद', 'समूद' आदि जातियाँ, जिनका अब नाममात्र शेष है, अरब में निवास करती थीं, किन्तु भारत-सम्राट [[हर्षवर्धन]] के सम-सामयिक [[हज़रत मुहम्मद]] के समय 'क़हतान', '[[इस्माईल]], और [['यहूदी' वंश]] के लोग ही अरब में निवास करते थे। अरब की सभ्यता के विषय में जर्मन विद्वान् ‘नवेल्दकी’ लिखता है-
*अत्यंत प्राचीन काल में 'जदीस', 'आद', 'समूद' आदि जातियाँ, जिनका अब नाममात्र शेष है, अरब में निवास करती थीं, किन्तु [[भारत]]-सम्राट [[हर्षवर्धन]] के सम-सामयिक [[हज़रत मुहम्मद]] के समय 'क़हतान', 'इस्माईल', और [[यहूदी|'यहूदी' वंश]] के लोग ही अरब में निवास करते थे। अरब की सभ्यता के विषय में जर्मन विद्वान् ‘नवेल्दकी’ लिखता है-
<blockquote>ईसा से एक हज़ार वर्ष पूर्व अरब के आग्नेय कोण की सभ्यता चरम सीमा पर पहुँची हुई थी। गर्मियों में वर्षा के हो जाने से सबा और हमीर का यह यमन देश बड़ा हरा-भरा रहता था। यहाँ की प्रशस्तियाँ और भव्य प्रासादों के ध्वंसावशेष आज भी हमें बलात् प्रशंसा के लिए प्रेरित करते हैं। समृद्ध-अरब यह यवनों और रोमकों ([[इटली]] वालों) का कहना यहाँ के लिए बिलकुल उपयुक्त था। सबां की गौरवसूचक अनेक कथाएँ ‘[[बाइबिल]]’ ग्रन्थ में पायी जाती हैं जिनमें सबां की महारानी और सुलेमान की मुलाकात विशेषतः स्मरणीय है। सबां वालों ने उत्तर में अरब के ‘दमश्क’ प्रान्त से लेकर ‘    अबीसीनिया ([[अफ़्रीका]] में) पर्यन्त, आरम्भ ही में लेखनकला का प्रचार किया था।</blockquote>  
<blockquote>ईसा से एक हज़ार [[वर्ष]] पूर्व अरब के आग्नेय कोण की सभ्यता चरम सीमा पर पहुँची हुई थी। गर्मियों में वर्षा के हो जाने से सबा और हमीर का यह यमन देश बड़ा हरा-भरा रहता था। यहाँ की प्रशस्तियाँ और भव्य प्रासादों के ध्वंसावशेष आज भी हमें बलात् प्रशंसा के लिए प्रेरित करते हैं। समृद्ध-अरब यह [[यवन|यवनों]] और [[रोमन साम्राज्य|रोमकों]] ([[इटली]] वालों) का कहना यहाँ के लिए बिलकुल उपयुक्त था। सबां की गौरवसूचक अनेक कथाएँ ‘[[बाइबिल]]’ ग्रन्थ में पायी जाती हैं जिनमें सबां की महारानी और सुलेमान की मुलाकात विशेषतः स्मरणीय है। सबां वालों ने उत्तर में अरब के ‘दमश्क’ प्रान्त से लेकर‘, [[अबीसीनिया]] ([[अफ़्रीका]] में) पर्यन्त, आरम्भ ही में लेखनकला का प्रचार किया था।</blockquote>  
*फारेस्टर महाशय ने अपने भूगोल में शाम के पड़ोसी प्राचीन ‘नाबत’ राज्य के विषय में लिखा है-                                                                     
*फारेस्टर महाशय ने अपने [[भूगोल]] में शाम के पड़ोसी प्राचीन ‘नाबत’ राज्य के विषय में लिखा है-                                                                     
<blockquote>युटिड् महाशय ही का यह प्रयत्न है कि प्राचीन ध्वंसावशिष्ट सामग्रियों द्वारा चिर लुप्त समूद जाति का परिचय हमको मिल सका। आरम्भ में इसके द्वारा शिक्षित ‘नाबत’ जाति भी इसके सदृश ही थी, जिसकी कीर्ति अरब की मरुभूमि का उल्लंघन कर ‘हिजाज़’ और ‘नज्द’ तक फैली हुई थी। वाणिज्य, व्यवसाय द्वारा धनार्जन में कुशल यह लोग इस्माईल-वंश के अनुरूप युद्धभय से भी निर्भय थे। इनके फिलस्तीन तथा ‘शाम’ पर आक्रमण, और अरब समुद्र में अनेक बार [[मिस्र]] के जहाजों पर डाका डालने यूनान के राजाओं को भी इनकी शत्रुता के लिए प्रेरित किया था, किन्तु ‘रोम’ की सम्मिलित शक्ति के अतिरिक्त कोई भी इनको परास्त करने में समर्थ न हुआ। ‘अस्त्राबू’ के समय अशक्त होकर इन्होंने रोम की सन्दिग्ध अधीनता स्वीकार की थी।</blockquote>
<blockquote>युटिड् महाशय ही का यह प्रयत्न है कि प्राचीन ध्वंसावशिष्ट सामग्रियों द्वारा चिर लुप्त समूद जाति का परिचय हमको मिल सका। आरम्भ में इसके द्वारा शिक्षित ‘नाबत’ जाति भी इसके सदृश ही थी, जिसकी कीर्ति अरब की मरुभूमि का उल्लंघन कर ‘हिजाज़’ और ‘नज्द’ तक फैली हुई थी। वाणिज्य, व्यवसाय द्वारा धनार्जन में कुशल यह लोग इस्माईल-वंश के अनुरूप युद्ध भय से भी निर्भय थे। इनके फिलस्तीन तथा ‘शाम’ पर आक्रमण, और [[अरब सागर|अरब समुद्र]] में अनेक बार [[मिस्र]] के जहाजों पर डाका डालने [[यूनान]] के राजाओं को भी इनकी शत्रुता के लिए प्रेरित किया था, किन्तु ‘रोम’ की सम्मिलित शक्ति के अतिरिक्त कोई भी इनको परास्त करने में समर्थ न हुआ। ‘अस्त्राबू’ के समय अशक्त होकर इन्होंने [[रोम]] की सन्दिग्ध अधीनता स्वीकार की थी।</blockquote>
*‘थ्याचर’ महाशय ‘आंग्ल विश्वकोष’ में लिखते हैं-
*‘थ्याचर’ महाशय ‘आंग्ल विश्वकोष’ में लिखते हैं-
<blockquote>ईसा से कई सौ वर्ष दक्षिण की ओर कोई उच्चतम सभ्यता थी। आज वहाँ नगर-प्राकार का ध्वंस बाक़ी है, जिसका वर्णन बहुत से यात्रियों ने लिया है। यमन और हज़मौत में ऐसे ध्वसांवशेषों का बाहुल्य है। वहाँ कहीं-कहीं पर प्रशस्तियाँ भी प्राप्त होती हैं।</blockquote>
<blockquote>ईसा से कई सौ वर्ष दक्षिण की ओर कोई उच्चतम सभ्यता थी। आज वहाँ नगर-प्रासाद का ध्वंस बाक़ी है, जिसका वर्णन बहुत से यात्रियों ने लिया है। यमन और हज़मौत में ऐसे ध्वसांवशेषों का बाहुल्य है। वहाँ कहीं-कहीं पर प्रशस्तियाँ भी प्राप्त होती हैं।</blockquote>
*कदर्जानी ने ‘नगर-ध्वंसावशेष’ पुस्तक में ‘सनआ’ के समीपवर्ती दुर्ग को सप्त आश्वयों में गिना है।
*कदर्जानी ने ‘नगर-ध्वंसावशेष’ पुस्तक में ‘सनआ’ के समीपवर्ती दुर्ग को सप्त आश्वयों में गिना है।
<blockquote>प्राचीन सबा की राजधानी यारब नगरी के ध्वंस को अर्नो, हाल्वे और ग्लाज़ी महाशयों ने देखा है। वहाँ की अवशिष्ट बड़ी खाई के चिन्ह जीर्णोद्धार किये गये अदन के कुंडो का स्मरण दिलाते हैं। 'ग्लाज्री' प्रकाशित दो दीर्घ प्रशस्तियों से उनका पुनरुद्धार ईसा के पंचम और पष्ठम शतक में किया गया प्रतीत होता है।</blockquote>
<blockquote>प्राचीन सबा की राजधानी यारब नगरी के ध्वंस को अर्नो, हाल्वे और ग्लाज़ी महाशयों ने देखा है। वहाँ की अवशिष्ट बड़ी खाई के चिह्न जीर्णोद्धार किये गये अदन के कुंडो का स्मरण दिलाते हैं। 'ग्लाज्री' प्रकाशित दो दीर्घ प्रशस्तियों से उनका पुनरुद्धार ईसा के पंचम और पष्ठम शतक में किया गया प्रतीत होता है।</blockquote>
<blockquote>'''यमन प्रान्त के ‘हरान’ नामक स्थान में 30 हाथ लम्बी खाई मिली है।'''</blockquote>
<blockquote>'''यमन प्रान्त के ‘हरान’ नामक स्थान में 30 हाथ लम्बी खाई मिली है।'''</blockquote>
==मुहम्मद कालीन अरब==
==मुहम्मद कालीन अरब==
प्राचीन काल में अरब-निवासी सुसभ्य और शिल्प-कला में प्रवीण थे। परन्तु ‘नीचैर्गच्छत्युपरि च तथा चक्रनेमिक्रमेण’ के अनुसार कालान्तर में उनके वंशज घोर अविद्यान्धकार में निमग्न हो गये और सारी शिल्पकलाओं को भूल कर ऊँट- बकरी चराना मात्र उनकी जीविका का उपाय रह गया। वह इसके लिए एक स्रोत से दूसरे स्रोत, एक स्थान से दूसरे स्थान में [[हरा रंग|हरे]] चरागाहों को खोजते हुए खेमों में निवास करके कालक्षेप करने लगे। कनखजूरा, गोह, गिरगिट आदि सारे जीव उनके भक्ष्य थे। नर-बलि, व्यभिचार, द्यूत और मद्यपान आदि का उनमें बड़ा प्रचार था। इस्लाम के पूर्व पिता की अनगिनत स्त्रियाँ दायभाग के तौर पर पुत्रों में बाँट दी जाती थीं, जिन्हें वह अपनी स्त्री बना लेते थे। राजपुत्र ‘अमुल्कैस’ कवि के अपने और अपनी फुआ की कन्या-सम्बन्धी दुर्वृत्तिपूर्ण काव्य को भी बड़ी प्रसन्नता से लोगों से ‘काबा’ के पवित्र-मन्दिर में स्थान दिया था। प्राचीन राज्यों के विध्वंस हो जाने पर परस्पर लड़ने-भिड़ने वाले क्षुद्र परिवार-सामन्तों का स्थान-स्थान पर अधिकार था। एक भी आदमी का हत होना उस समय उभय परिवार के लिए चिरकाल-पर्यन्त कलह का पर्याप्त बीज हो जाता था। उस द्वेषाग्नि को माता के दूध के साथ लड़कों के हृदयों में प्रविष्ट करा दिया जाता था। युद्ध के कैदियों के साथ उनके स्त्री और बच्चों का भी शिरच्छेद उस समय की प्रथा में अतिसाधारण था। निद्रितों पर आक्रमण कर लूटने और मारने में कुशल लोग ‘फ़ातक़’ और ‘फ़ताक़’ शब्दों से अभिपूजित होते थे। प्रज्ज्वलित अग्नि में जीवित मनुष्य को डाल देना उनके समीप कोई असाधु कर्म नहीं समझा जाता था। हिन्दू-पुत्र अम्रू ने अपने भाई के मारे जाने पर एक के बदले सौ के मारने की प्रतिज्ञा की। उसने एक दिन अपने प्रतिपक्षी ‘तमीम’ वंशियों पर धावा किया, किन्तु लोग बस्ती छोड़ कर भाग गये थे। केवल ‘हमरा’ नाम की एक बुढ़िया वहाँ रह गई थी, जिसे उसने जलती आग में डलवा दिया। उसी समय अभाग्य का मारा 'अमारा' नामक एक क्षुधातुर सवार दूर से धुआँ उठते देख भोजन की आशा से उधर आ निकला। इन लुटेरों के पूछने पर उसने उत्तर दिया कि मैं कई दिन का भूखा हूँ; कुछ मिलने की आशा से आया हूँ। इस पर ‘अमरू’ ने अपने साथियों को आज्ञा दी कि इसको आग में डाल दो।
प्राचीन काल में अरब-निवासी सुसभ्य और शिल्प-कला में प्रवीण थे। परन्तु ‘नीचैर्गच्छत्युपरि च तथा चक्रनेमिक्रमेण’ के अनुसार कालान्तर में उनके वंशज घोर अविद्यान्धकार में निमग्न हो गये और सारी शिल्पकलाओं को भूल कर ऊँट- बकरी चराना मात्र उनकी जीविका का उपाय रह गया। वह इसके लिए एक स्रोत से दूसरे स्रोत, एक स्थान से दूसरे स्थान में [[हरा रंग|हरे]] चरागाहों को खोजते हुए खेमों में निवास करके कालक्षेप करने लगे। कनखजूरा, गोह, गिरगिट आदि सारे जीव उनके भक्ष्य थे। नर-बलि, व्यभिचार, द्यूत और मद्यपान आदि का उनमें बड़ा प्रचार था। [[इस्लाम]] के पूर्व पिता की अनगिनत स्त्रियाँ दायभाग के तौर पर पुत्रों में बाँट दी जाती थीं, जिन्हें वह अपनी स्त्री बना लेते थे। राजपूत्र ‘अमुल्कैस’ कवि के अपने और अपनी फुआ की कन्या-सम्बन्धी दुर्वृत्तिपूर्ण काव्य को भी बड़ी प्रसन्नता से लोगों से ‘काबा’ के पवित्र-मन्दिर में स्थान दिया था। प्राचीन राज्यों के विध्वंस हो जाने पर परस्पर लड़ने-भिड़ने वाले क्षुद्र परिवार-सामन्तों का स्थान-स्थान पर अधिकार था। एक भी आदमी का हत होना उस समय उभय परिवार के लिए चिरकाल-पर्यन्त कलह का पर्याप्त बीज हो जाता था। उस द्वेषाग्नि को [[माता]] के [[दूध]] के साथ लड़कों के हृदयों में प्रविष्ट करा दिया जाता था। युद्ध के कैदियों के साथ उनके स्त्री और बच्चों का भी शिरच्छेद उस समय की प्रथा में अतिसाधारण था। निद्रितों पर आक्रमण कर लूटने और मारने में कुशल लोग ‘फ़ातक़’ और ‘फ़ताक़’ शब्दों से अभिपूजित होते थे। प्रज्ज्वलित [[अग्नि]] में जीवित मनुष्य को डाल देना उनके समीप कोई असाधु कर्म नहीं समझा जाता था। हिन्दू-पुत्र अम्रू ने अपने भाई के मारे जाने पर एक के बदले सौ के मारने की प्रतिज्ञा की। उसने एक दिन अपने प्रतिपक्षी ‘तमीम’ वंशियों पर धावा किया, किन्तु लोग बस्ती छोड़ कर भाग गये थे। केवल ‘हमरा’ नाम की एक बुढ़िया वहाँ रह गई थी, जिसे उसने जलती आग में डलवा दिया। उसी समय अभाग्य का मारा 'अमारा' नामक एक क्षुधातुर सवार दूर से धुआँ उठते देख भोजन की आशा से उधर आ निकला। इन लुटेरों के पूछने पर उसने उत्तर दिया कि मैं कई दिन का भूखा हूँ; कुछ मिलने की आशा से आया हूँ। इस पर ‘अमरू’ ने अपने साथियों को आज्ञा दी कि इसको आग में डाल दो।


कोमल शिशुओं को लक्ष्य बनाकर तीर मारना, असह्य पीड़ा देने के लिए एक-एक अंग को थोड़ा-थोड़ा करके काटना, शत्रु के मुर्दों की नाक-काट डालना, यहाँ तक कि उनके कलेजे खा जाना<ref> ‘उहद’ के युद्ध में ‘हिन्द’ नामक स्त्री ने ‘हमूजा’ (म॰ मुहम्मद के सहायक) के कलेजे को काटकर खाया था।</ref> इत्यादि उस समय के अनेक क्रूर कर्म उनकी नृशंसता के परिचायक थे।
कोमल शिशुओं को लक्ष्य बनाकर तीर मारना, असह्य पीड़ा देने के लिए एक-एक अंग को थोड़ा-थोड़ा करके काटना, शत्रु के मुर्दों की नाक-काट डालना, यहाँ तक कि उनके कलेजे खा जाना<ref> ‘उहद’ के युद्ध में ‘हिन्द’ नामक स्त्री ने ‘हमूजा’ (म॰ मुहम्मद के सहायक) के कलेजे को काटकर खाया था।</ref> इत्यादि उस समय के अनेक क्रूर कर्म उनकी नृशंसता के परिचायक थे।


{{प्रचार}}
{{लेख प्रगति
{{लेख प्रगति
|आधार=
|आधार=
Line 23: Line 26:
|शोध=
|शोध=
}}
}}
{{संदर्भ ग्रंथ}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{विदेशी स्थान}}
{{विदेशी स्थान}}
[[Category:नया पन्ना]]
[[Category:विदेशी स्थान]]
[[Category:विदेशी स्थान]]
__INDEX__
__INDEX__

Latest revision as of 12:42, 1 September 2017

चित्र:Disamb2.jpg अरब एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- अरब (बहुविकल्पी)

एशिया-खण्ड के दक्षिण-पश्चिमांचल में फ़ारस की खाड़ी, भारतीय समुद्र रक्तसागर ‘हलब’ और फ़ुरात आदि नदियों से अरब देश घिरा हुआ है। 6,000 मील लम्बे 2,240 मील चौड़े बालुकामय इस पहाड़ी देश की तुलना कुछ-कुछ हमारे यहाँ के मारवाड़ और बीकानेर से हो सकती है। बहुत दिनों से अरब-निवासी ‘बद्दू’ बकरी- ऊँट चराते एक स्थान से दूसरे स्थान घूमते-फिरते हैं। ‘शाम’ की भाषा में मरुभूमि को ‘अरबत्’ कहते हैं, इसी से ‘अरब’ शब्द निकला है। यहाँ का उच्चतम पर्वत ‘सिरात’, ‘यमन’ प्रदेश से ‘शाम’ तक फैला हुआ है; जिसकी सबसे ऊँची चोटी 5,333 हाथ ऊँची है। बीच-बीच में कही-कही विशेषकर ‘शाम’ प्रदेश में खेती के उपयुक्त उर्वरा भूमि भी है। जहाँ कहीं-कहीं पर सोने-चाँदी की खानें भी पायी जाती हैं।

इतिहास

  • अत्यंत प्राचीन काल में 'जदीस', 'आद', 'समूद' आदि जातियाँ, जिनका अब नाममात्र शेष है, अरब में निवास करती थीं, किन्तु भारत-सम्राट हर्षवर्धन के सम-सामयिक हज़रत मुहम्मद के समय 'क़हतान', 'इस्माईल', और 'यहूदी' वंश के लोग ही अरब में निवास करते थे। अरब की सभ्यता के विषय में जर्मन विद्वान् ‘नवेल्दकी’ लिखता है-

ईसा से एक हज़ार वर्ष पूर्व अरब के आग्नेय कोण की सभ्यता चरम सीमा पर पहुँची हुई थी। गर्मियों में वर्षा के हो जाने से सबा और हमीर का यह यमन देश बड़ा हरा-भरा रहता था। यहाँ की प्रशस्तियाँ और भव्य प्रासादों के ध्वंसावशेष आज भी हमें बलात् प्रशंसा के लिए प्रेरित करते हैं। समृद्ध-अरब यह यवनों और रोमकों (इटली वालों) का कहना यहाँ के लिए बिलकुल उपयुक्त था। सबां की गौरवसूचक अनेक कथाएँ ‘बाइबिल’ ग्रन्थ में पायी जाती हैं जिनमें सबां की महारानी और सुलेमान की मुलाकात विशेषतः स्मरणीय है। सबां वालों ने उत्तर में अरब के ‘दमश्क’ प्रान्त से लेकर‘, अबीसीनिया (अफ़्रीका में) पर्यन्त, आरम्भ ही में लेखनकला का प्रचार किया था।

  • फारेस्टर महाशय ने अपने भूगोल में शाम के पड़ोसी प्राचीन ‘नाबत’ राज्य के विषय में लिखा है-

युटिड् महाशय ही का यह प्रयत्न है कि प्राचीन ध्वंसावशिष्ट सामग्रियों द्वारा चिर लुप्त समूद जाति का परिचय हमको मिल सका। आरम्भ में इसके द्वारा शिक्षित ‘नाबत’ जाति भी इसके सदृश ही थी, जिसकी कीर्ति अरब की मरुभूमि का उल्लंघन कर ‘हिजाज़’ और ‘नज्द’ तक फैली हुई थी। वाणिज्य, व्यवसाय द्वारा धनार्जन में कुशल यह लोग इस्माईल-वंश के अनुरूप युद्ध भय से भी निर्भय थे। इनके फिलस्तीन तथा ‘शाम’ पर आक्रमण, और अरब समुद्र में अनेक बार मिस्र के जहाजों पर डाका डालने यूनान के राजाओं को भी इनकी शत्रुता के लिए प्रेरित किया था, किन्तु ‘रोम’ की सम्मिलित शक्ति के अतिरिक्त कोई भी इनको परास्त करने में समर्थ न हुआ। ‘अस्त्राबू’ के समय अशक्त होकर इन्होंने रोम की सन्दिग्ध अधीनता स्वीकार की थी।

  • ‘थ्याचर’ महाशय ‘आंग्ल विश्वकोष’ में लिखते हैं-

ईसा से कई सौ वर्ष दक्षिण की ओर कोई उच्चतम सभ्यता थी। आज वहाँ नगर-प्रासाद का ध्वंस बाक़ी है, जिसका वर्णन बहुत से यात्रियों ने लिया है। यमन और हज़मौत में ऐसे ध्वसांवशेषों का बाहुल्य है। वहाँ कहीं-कहीं पर प्रशस्तियाँ भी प्राप्त होती हैं।

  • कदर्जानी ने ‘नगर-ध्वंसावशेष’ पुस्तक में ‘सनआ’ के समीपवर्ती दुर्ग को सप्त आश्वयों में गिना है।

प्राचीन सबा की राजधानी यारब नगरी के ध्वंस को अर्नो, हाल्वे और ग्लाज़ी महाशयों ने देखा है। वहाँ की अवशिष्ट बड़ी खाई के चिह्न जीर्णोद्धार किये गये अदन के कुंडो का स्मरण दिलाते हैं। 'ग्लाज्री' प्रकाशित दो दीर्घ प्रशस्तियों से उनका पुनरुद्धार ईसा के पंचम और पष्ठम शतक में किया गया प्रतीत होता है।

यमन प्रान्त के ‘हरान’ नामक स्थान में 30 हाथ लम्बी खाई मिली है।

मुहम्मद कालीन अरब

प्राचीन काल में अरब-निवासी सुसभ्य और शिल्प-कला में प्रवीण थे। परन्तु ‘नीचैर्गच्छत्युपरि च तथा चक्रनेमिक्रमेण’ के अनुसार कालान्तर में उनके वंशज घोर अविद्यान्धकार में निमग्न हो गये और सारी शिल्पकलाओं को भूल कर ऊँट- बकरी चराना मात्र उनकी जीविका का उपाय रह गया। वह इसके लिए एक स्रोत से दूसरे स्रोत, एक स्थान से दूसरे स्थान में हरे चरागाहों को खोजते हुए खेमों में निवास करके कालक्षेप करने लगे। कनखजूरा, गोह, गिरगिट आदि सारे जीव उनके भक्ष्य थे। नर-बलि, व्यभिचार, द्यूत और मद्यपान आदि का उनमें बड़ा प्रचार था। इस्लाम के पूर्व पिता की अनगिनत स्त्रियाँ दायभाग के तौर पर पुत्रों में बाँट दी जाती थीं, जिन्हें वह अपनी स्त्री बना लेते थे। राजपूत्र ‘अमुल्कैस’ कवि के अपने और अपनी फुआ की कन्या-सम्बन्धी दुर्वृत्तिपूर्ण काव्य को भी बड़ी प्रसन्नता से लोगों से ‘काबा’ के पवित्र-मन्दिर में स्थान दिया था। प्राचीन राज्यों के विध्वंस हो जाने पर परस्पर लड़ने-भिड़ने वाले क्षुद्र परिवार-सामन्तों का स्थान-स्थान पर अधिकार था। एक भी आदमी का हत होना उस समय उभय परिवार के लिए चिरकाल-पर्यन्त कलह का पर्याप्त बीज हो जाता था। उस द्वेषाग्नि को माता के दूध के साथ लड़कों के हृदयों में प्रविष्ट करा दिया जाता था। युद्ध के कैदियों के साथ उनके स्त्री और बच्चों का भी शिरच्छेद उस समय की प्रथा में अतिसाधारण था। निद्रितों पर आक्रमण कर लूटने और मारने में कुशल लोग ‘फ़ातक़’ और ‘फ़ताक़’ शब्दों से अभिपूजित होते थे। प्रज्ज्वलित अग्नि में जीवित मनुष्य को डाल देना उनके समीप कोई असाधु कर्म नहीं समझा जाता था। हिन्दू-पुत्र अम्रू ने अपने भाई के मारे जाने पर एक के बदले सौ के मारने की प्रतिज्ञा की। उसने एक दिन अपने प्रतिपक्षी ‘तमीम’ वंशियों पर धावा किया, किन्तु लोग बस्ती छोड़ कर भाग गये थे। केवल ‘हमरा’ नाम की एक बुढ़िया वहाँ रह गई थी, जिसे उसने जलती आग में डलवा दिया। उसी समय अभाग्य का मारा 'अमारा' नामक एक क्षुधातुर सवार दूर से धुआँ उठते देख भोजन की आशा से उधर आ निकला। इन लुटेरों के पूछने पर उसने उत्तर दिया कि मैं कई दिन का भूखा हूँ; कुछ मिलने की आशा से आया हूँ। इस पर ‘अमरू’ ने अपने साथियों को आज्ञा दी कि इसको आग में डाल दो।

कोमल शिशुओं को लक्ष्य बनाकर तीर मारना, असह्य पीड़ा देने के लिए एक-एक अंग को थोड़ा-थोड़ा करके काटना, शत्रु के मुर्दों की नाक-काट डालना, यहाँ तक कि उनके कलेजे खा जाना[1] इत्यादि उस समय के अनेक क्रूर कर्म उनकी नृशंसता के परिचायक थे।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ‘उहद’ के युद्ध में ‘हिन्द’ नामक स्त्री ने ‘हमूजा’ (म॰ मुहम्मद के सहायक) के कलेजे को काटकर खाया था।

संबंधित लेख