शिशुपाल: Difference between revisions

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Revision as of 05:45, 21 March 2010

शिशुपाल / Shishupal

शिशुपाल महाभारत कालीन चेदि राज्य का स्वामी था । महाभारत में चेदि जनपद के निवासियों के लिए आदि पर्व<balloon title="आदि पर्व के तिरसठवें अध्याय, छंद संख्या १०-१२" style="color:blue">*</balloon> में लिखा है-'चेदि के जनपद धर्मशील, संतोषी ओर साधु हैं । यहाँ हास-परिहास में भी कोई झूठ नहीं बोलता, फिर अन्य अवसरों पर तो बोल ही कैसे सकता है । पुत्र सदा गुरुजनों के हित में लगे रहते हैं, पिता अपने जीते-जी उनका बँटवारा नहीं करते । यहाँ के लोग बैलों को भार ढोने में लगाते और दीनों एवं अनाथों का पोषण करते हैं । सब वर्णों के लोग सदा अपने-अपने धर्म में स्थित रहते हैं' । स्पष्ट है कि शिशुपाल की राज्य व्यवस्था अच्छी थी और चेदि जनपद के लोग सदाचार को महत्त्व देते थे ।

परिचय

  • शिशुपाल कृष्ण की बुआ का लड़का था। दमघोष के कुल में जब शिशुपाल का जन्म हुआ तब उसके तीन नेत्र तथा चार भुजाएं थीं। वह गधे की तरह रो रहा था। माता-पिता त्रस्त होकर उसका परित्याग कर देना चाहते थे। तभी आकाशवाणी हुई कि बालक बहुत वीर होगा तथा उसकी मृत्यु का कारण वह व्यक्ति होगा जिसकी गोद में जाने पर बालक अपने भाल-स्थित नेत्र तथा दो भुजाओं का परित्याग कर देगा। उसके जन्म के विषय में जानकर अनेक राजा उसे देखने आये। शिशुपाल के पिता ने बारी-बारी से सभी की गोद में बालक दिया। अंत में शिशुपाल के ममेरे भाई श्रीकृष्ण की गोद में जाते ही उसकी दो भुजाएं पृथ्वी पर गिर गयीं तथा ललाटवर्ती नेत्र ललाट में विलीन हो गया। बालक की माता ने दुखी होकर श्रीकृष्ण से उसके प्राणों की भीख मांगी। श्रीकृष्ण ने उसके सौ अपराध क्षमा करने का वचन दिया। कालांतर में शिशुपाल ने अनेक बार अपराध किये तथा गोविंद ने उसे क्षमा किया।
  • युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के लिए आमन्त्रण मिलने पर सभी राजा इन्द्रप्रस्थ में इकट्ठा हुए। आमन्त्रित अतिथियों में भीष्म की आज्ञा से युधिष्ठिर ने सर्वप्रथम श्रीकृष्ण को अर्घ्य समर्पित किया (श्रीकृष्ण की अग्रपूजा की)। यह देखकर शिशुपाल को बहुत क्रोध आया। उसने कहा कि कृष्ण वृष्णिवंशी हैं, कहीं के राजा नहीं। सर्वप्रथम उन्हें अर्घ्य अर्पित करने पर शेष सबका अपमान होता है। सबके समझाने पर भी शिशुपाल अपनी बात पर अड़ा रहा तथा कुछ राजाओं के साथ वहां से चले जाने की धमकी भी देने लगा। अंत में उसने कृष्ण को युद्ध के लिए ललकारा। कृष्ण ने सबके सम्मुख, यह स्पष्ट करते हुए कि वे शिशुपाल के सौ अपराध पहले ही क्षमा कर चुके हैं और यह उसका एक सौ एकवां अपराध है, उसे सुदर्शन चक्र से मार डाला। शिशुपाल के मृत शरीर का परित्याग कर एक प्रकाश-पुंज आकाश की ओर उठा। उस प्रकाश-पुंज ने श्रीकृष्ण को प्रणाम किया तथा फिर उन्हीं में विलीन हो गया। पांडवों ने शिशुपाल का अंत्येष्टि संस्कार किया तथा उसके पुत्र का राज्याभिषेक किया। [1]

विष्णु पुराण से

शिशुपाल पूर्वजन्मों में हिरण्यकशिपु तथा रावण के रूप में जन्म ले चुका था। हिरण्यकशिपु के रूप में वह नृसिंह भगवान को नहीं पहचान पाया, अत: उसे मोक्ष की प्राप्ति नहीं हुई। रजोगुण प्रधान रहने के कारण वह अगले जन्म में भोग-संपत्ति प्राप्त रावण बना। जानकी के रूप पर आसक्त रहने के कारण 'नाम-महिमा' को न समझकर राम द्वारा मारा गया तथापि उसकी मनुष्य-बुद्धि बनी रही, अत: शिशुपाल के रूप में जन्म लिया। शिशुपाल भले ही द्रोहवश, गाली देते हुए राम के विभिन्न स्वरूपों का स्मरण करता था, नामोच्चारण भी करता था, अत: तदुपरांत वह भगवान में ही लीन हो गया। [2]

श्रीमद् भागवत से

पांडवों के राजसूय यज्ञ में अग्रपूजा के लिए सहदेव ने श्रीकृष्ण का नाम प्रस्तुत किया तो शिशुपाल क्रोध से आग बबूला हो गया। उसने कहा-'कृष्ण का न उच्च कुल है, न जाति। ययाति से शापिता, समुद्र में घर बनाकर रहने वाला वह अग्रपूजा के योग्य नहीं है।' कृष्ण के पक्षपाती राजाओं ने शिशुपाल को युद्ध के लिए ललकारा। कृष्ण ने उन सबको शांत कर स्वयं शिशुपाल का सिर अपने चक्र से काट डाला। द्वेष की अतिशयता के कारण शिशुपाल का मन तन्मयतापूर्वक कृष्ण को स्मरण करता था, अत: मृत्यु के उपरांत वह कृष्ण का पार्षद हो गया। [3]

शिशुपाल का वध

युधिष्ठिर ने जब राजसूय यज्ञ की तैयारी की तब सभी प्रमुख राजाओं को यज्ञ में आने का निमन्त्रण दिया गया जिसमें चेदिराज शिशुपाल भी था । देवपूजा के समय कृष्ण का सम्मान देखकर वह जल गया और उनको गालियाँ देने लगा । उसके इन कटु वचनों की निन्दा करते हुये श्री कृष्ण के अनेक भक्त सभा छोड़ कर चले गये क्योंकि वे श्री कृष्ण की निन्दा नहीं सुन सकते थे । अर्जुन और भीमसेन अनेक राजाओं के साथ उसे मारने के लिये उद्यत हो गये किन्तु श्री कृष्ण ने उन सभी को रोक दिया । जब शिशुपाल श्री कृष्ण को एक सौ गाली दे चुका तब श्री कृष्ण ने गरज कर कहा, 'बस शिशुपाल! अब मेरे विषय में तेरे मुख से एक भी अपशब्द निकला तो तेरे प्राण नहीं बचेंगे । मैंने तेरे एक सौ अपशब्दों को क्षमा करने की प्रतिज्ञा की थी इसीलिये अब तक तेरे प्राण बचे रहे ।'श्री कृष्ण के इन वचनों को सुन कर सभा में उपस्थित शिशुपाल के सारे समर्थक भय से थर्रा गये किन्तु शिशुपाल का विनाश समीप था, अतः उसने काल के वश होकर अपनी तलवार निकालते हुये श्री कृष्ण को फिर से गाली दी । शिशुपाल के मुख से अपशब्द के निकलते ही श्री कृष्ण ने अपना सुदर्शन चक्र चला दिया और पलक झपकते ही शिशुपाल का सिर कट कर गिर गया ।


टीका-टिप्पणी

  1. महाभारत, सभापर्व, 36।25-32, 37, 39
  2. विष्णु पुराण, 4।15।1-17
  3. श्रीमद् भागवत, 10।74