अहोई अष्टमी: Difference between revisions

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Revision as of 05:25, 27 March 2010

अहोई अष्टमी / Ahoi Ashhtami

अहोई अष्टमी
Ahoi Ashhtami|thumb|250px
कार्तिक कृष्ण अष्टमी को महिलायें अपनी सन्तान की रक्षा और दीर्घ आयु के लिए यह व्रत रखती हैं। इस दिन धोबी मारन लीला का भी मंचन होता है, जिसमें श्री कृष्ण द्वारा कंस के भेजे धोबी का वध करते प्रदर्शन किया जाता है।

अहोई अष्टमी व्रत कथा

प्राचीन काल में किसी नगर में एक साहूकार रहता था। उसके सात लड़के थे। दीपावली से पहले साहूकार की स्त्री घर की लीपा-पोती हेतु मिट्टी लेने खदान में गई और कुदाल से मिट्टी खोदने लगी। दैव योग से उसी जगह एक सेह की मांद थी। सहसा उस स्त्री के हाथ से कुदाल सेह के बच्चे को लग गई जिससे सेह का बच्चा तत्काल मर गया। अपने हाथ से हुई हत्या को लेकर साहूकार की पत्नी को बहुत दुख हुआ परन्तु अब क्या हो सकता था? वह शोकाकुल पश्चाताप करती हुई अपने घर लौट आई। कुछ दिनों बाद उसके बेटे का निधन हो गया। फिर अकस्मात दूसरा, तीसरा और इस प्रकार वर्ष भर में उसके सभी बेटे मर गए। महिला अत्यंत व्यथित रहने लगी। एक दिन उसने अपने आस-पड़ोस की महिलाओं को विलाप करते हुए बताया कि उसने जान-बूझ कर कभी कोई पाप नहीं किया। हाँ, एक बार खदान में मिट्टी खोदते हुए अंजाने में उससे एक सेह के बच्चे की हत्या अवश्य हुई है और तत्पश्चात मेरे सातों बेटों की मृत्यु हो गई। यह सुनकर पास-पड़ोस की वृद्ध औरतों ने साहूकार की पत्नी को दिलासा देते हुए कहा कि यह बात बताकर तुमने जो पश्चाताप किया है उससे तुम्हारा आधा पाप नष्ट हो गया है। तुम उसी अष्टमी को भगवती माता की शरण लेकर सेह और सेह के बच्चों का चित्र बनाकर उनकी अराधना करो और क्षमा-याचना करो। ईश्वर की कृपा से तुम्हारा पाप धुल जाएगा। साहूकार की पत्नी ने वृद्ध महिलाओं की बात मानकर कार्तिक मास की कृष्णपक्ष की अष्टमी को उपवास व पूजा-याचना की। वह हर वर्ष नियमित रूप से ऐसा करने लगी। बाद में उसे सात पुत्र रत्नों की प्राप्ति हुई। तभी से अहोई व्रत की परम्परा प्रचलित हो गई।

विधि-विधान

  • अहोई व्रत के दिन प्रात: उठकर स्नान करें और पूजा पाठ करके अपनी संतान की दीर्घायु एवं सुखमय जीवन हेतु कामना करते हुए, मैं अहोई माता का व्रत कर रही हूं, ऐसा संकल्प करें।
  • अहोई माता मेरी संतान को दीर्घायु, स्वस्थ एवं सुखी रखे।
  • अनहोनी को होनी बनाने वाली माता देवी पार्वती हैं इसलिए माता पार्वती की पूजा करें।
  • अहोई माता की पूजा के लिए गेरू से दीवार पर अहोई माता का चित्र बनाएं और साथ ही सेह और उसके सात पुत्रों का चित्र बनाएं।
  • सन्ध्या काल में इन चित्रों की पूजा करें।
  • अहोई पूजा में एक अन्य विधान यह भी है कि चांदी की अहोई बनाई जाती है जिसे सेह या स्याहु कहते हैं। इस सेह की पूजा रोली, अक्षत, दूध व भात से की जाती है। पूजा चाहे आप जिस विधि से करें लेकिन दोनों में ही पूजा के लिए एक कलश में जल भर कर रख लें।
  • पूजा के बाद अहोई माता की कथा सुने और सुनाएं।
  • पूजा के पश्चात सासू-मां के पैर छूएं और उनका आर्शीवाद प्राप्त करें।
  • तारों की पूजा करें और जल चढ़ायें।
  • इसके पश्चात व्रती अन्न जल ग्रहण करें।


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