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'''मुल्तान''' आधुनिक [[पाकिस्तान]] में [[चिनाब नदी]] के तट पर [[पश्चिमी पंजाब]] का एक महत्त्वपूर्ण (मुलतान) प्राचीन नगर है। इसका प्राचीन नाम मूलस्थान था।  
'''मुल्तान अथवा मुलतान''' आधुनिक पश्चिमी [[पाकिस्तान]] में [[चिनाब नदी]] के तट पर स्थित [[पश्चिमी पंजाब]] का एक महत्त्वपूर्ण प्राचीन नगर है। प्राचीन समय में मुल्तान 'मूलस्थान' के नाम से जाना जाता था। इस स्थान का वर्णन [[हिन्दू धर्म]] के [[स्कन्दपुराण]] में भी आता है। यहाँ स्थित सूर्य मन्दिर, जिसके अब अवशेष ही शेष हैं, उसके बारे में यह कहा जाता है कि इसका निर्माण भगवान [[श्रीकृष्ण]] के पुत्र साम्ब ने करवाया था।
==इतिहास==
==इतिहास==
मुल्तान एक प्राचीन सूर्य मन्दिर के लिए दूर-दूर तक विख्यात था। [[भविष्यपुराण]] की एक कथा में वर्णित है कि [[कृष्ण]] के पुत्र साम्ब ने [[दुर्वासा]] के शाप के परिणामस्वरूप कुष्ठ रोग से पीड़ित होने पर [[सूर्य]] की उपासना की थी और मूलस्थान (मुल्तान) में सूर्य मन्दिर बनवाया था। इस सूर्य मन्दिर के खण्डहर मुल्तान में आज भी पड़े हुए हैं।  
प्राचीन समय में मुल्तान एक प्राचीन सूर्य मन्दिर के लिए दूर-दूर तक विख्यात था। [[भविष्यपुराण]] की एक कथा में वर्णित है कि [[कृष्ण]] के पुत्र साम्ब ने [[दुर्वासा]] के शाप के परिणामस्वरूप कुष्ठ रोग से पीड़ित होने पर [[सूर्य]] की उपासना की थी और मूलस्थान<ref>मुल्तान</ref> में सूर्य मन्दिर बनवाया था। उसने मगद्वीप से सूर्योपासना में दक्ष सोलह मग परिवारों को बुलाया था। ये मग लोग शायद [[ईरान]] के निवासी थे और शाकल द्वीप में बसे हुए थे। इस सूर्य मन्दिर के खण्डहर मुल्तान में आज भी पड़े हुए हैं। स्कन्दपुराण के प्रभासक्षेत्र<ref>प्रभासक्षेत्र-माहात्म्य, अध्याय 278</ref> में इस मन्दिर को देविका नदी के तट पर स्थित बताया गया है-
====आक्रमण====
मुल्तान [[मुसलमान|मुसलमानों]] द्वारा सबसे पहले विजित प्रदेशों में था। पूर्व मध्यकाल में मुल्तान [[अरब देश|अरबों]] के अधीन था, किंतु 871 ई. में ख़िलाफ़त से सम्बन्ध विच्छेद कर मुल्तान स्वतन्त्र हो गया था। [[महमूद ग़ज़नवी]] ने मुल्तान पर आक्रमण कर उस पर अधिकार कर लिया। तत्कालीन शासक दाउद ने महमूद को 20,000 दिरहम प्रतिवर्ष देने का वायदा किया। 1008 ई. में मुल्तान को महमूद ने अपने राज्य में मिला लिया।


1175 ई. में [[मुहम्मद ग़ोरी]] का पहला आक्रमण मुल्तान पर हुआ। इस पर उस समय करमाथी लोग शासन करते थे। महमूद ने नगर पर अधिकार कर उसे अपने सूबेदार के सुपुर्द कर दिया। उसके बाद शताब्दियों तक मुल्तान भारतीय मुस्लिम साम्राज्य का अंग बना रहा। कालांतर में [[अहमदशाह अब्दाली]] (1747-1773 ई.) ने मुल्तान पर अधिकार कर लिया।  
<blockquote>'ततो गच्छेन महादेविमूलस्थानमिति श्रुतम, देविकायास्तट रम्ये भास्करं वारितस्करम'।</blockquote>
====स्मारक====
 
मुल्तान के उल्लेखनीय स्मारकों में [[मुहम्मद बिन क़ासिम]] की बनवाई गई मस्जिद है। यहाँ के मक़बरों में 1152 ई. में निर्मित शाह युसुफ-गुल गरजिनी का मक़बरा, 1262 ई. में निर्मित बहाउल हक का मक़बरा महत्त्वपूर्ण है।  
देविका वर्तमान देह नदी है। [[युवानच्वांग]] के समय में [[सिन्धु प्रदेश|सिन्धु]] और मुल्तान पड़ौसी देश थे। [[अलबेरूनी]] ने सौवीर देश का विस्तार मुल्तान तक बताया है। एक प्राचीन किवदंती में मुल्तान को [[विष्णु]] के [[प्रह्लाद|भक्त प्रह्लाद]] का जन्म स्थान तथा [[हिरण्यकशिपु]] की राजधानी माना जाता है। प्रह्लाद के नाम से एक प्रसिद्ध मन्दिर भी यहाँ स्थित है।
====मुस्लिम आक्रमण====
मुल्तान [[मुस्लिम|मुस्लिमों]] द्वारा सबसे पहले विजित प्रदेशों में था। पूर्व मध्यकाल में मुल्तान अरबों के अधीन था, किंतु 871 ई. में ख़िलाफ़त से सम्बन्ध विच्छेद कर मुल्तान स्वतन्त्र हो गया था। [[महमूद ग़ज़नवी]] ने मुल्तान पर आक्रमण कर उस पर अधिकार कर लिया। तत्कालीन शासक दाउद ने महमूद ग़ज़नवी को 20,000 दिरहम प्रतिवर्ष देने का वायदा किया। 1008 ई. में मुल्तान को महमूद ग़ज़नवी ने अपने राज्य में मिला लिया। 1175 ई. में [[मुहम्मद ग़ोरी]] का पहला आक्रमण मुल्तान पर हुआ। इस पर उस समय करमाथी लोग शासन करते थे। महमूद ने नगर पर अधिकार कर उसे अपने सूबेदार के सुपुर्द कर दिया। उसके बाद शताब्दियों तक मुल्तान भारतीय मुस्लिम साम्राज्य का अंग बना रहा। कालांतर में [[अहमदशाह अब्दाली]] (1747-1773 ई.) ने मुल्तान पर अधिकार कर लिया।  
==स्मारक==
मुल्तान के उल्लेखनीय स्मारकों में [[मुहम्मद बिन क़ासिम]] की बनवाई गई मस्जिद प्रमुख है। यहाँ के मक़बरों में 1152 ई. में निर्मित शाह युसुफ़-गुल गरजिनी का मक़बरा, 1262 ई. में निर्मित बहाउल हक़ का मक़बरा महत्त्वपूर्ण है।
   
   
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Revision as of 10:35, 29 February 2012

thumb|250px|सखी सुल्तान का मक़बरा, मुल्तान मुल्तान अथवा मुलतान आधुनिक पश्चिमी पाकिस्तान में चिनाब नदी के तट पर स्थित पश्चिमी पंजाब का एक महत्त्वपूर्ण प्राचीन नगर है। प्राचीन समय में मुल्तान 'मूलस्थान' के नाम से जाना जाता था। इस स्थान का वर्णन हिन्दू धर्म के स्कन्दपुराण में भी आता है। यहाँ स्थित सूर्य मन्दिर, जिसके अब अवशेष ही शेष हैं, उसके बारे में यह कहा जाता है कि इसका निर्माण भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब ने करवाया था।

इतिहास

प्राचीन समय में मुल्तान एक प्राचीन सूर्य मन्दिर के लिए दूर-दूर तक विख्यात था। भविष्यपुराण की एक कथा में वर्णित है कि कृष्ण के पुत्र साम्ब ने दुर्वासा के शाप के परिणामस्वरूप कुष्ठ रोग से पीड़ित होने पर सूर्य की उपासना की थी और मूलस्थान[1] में सूर्य मन्दिर बनवाया था। उसने मगद्वीप से सूर्योपासना में दक्ष सोलह मग परिवारों को बुलाया था। ये मग लोग शायद ईरान के निवासी थे और शाकल द्वीप में बसे हुए थे। इस सूर्य मन्दिर के खण्डहर मुल्तान में आज भी पड़े हुए हैं। स्कन्दपुराण के प्रभासक्षेत्र[2] में इस मन्दिर को देविका नदी के तट पर स्थित बताया गया है-

'ततो गच्छेन महादेविमूलस्थानमिति श्रुतम, देविकायास्तट रम्ये भास्करं वारितस्करम'।

देविका वर्तमान देह नदी है। युवानच्वांग के समय में सिन्धु और मुल्तान पड़ौसी देश थे। अलबेरूनी ने सौवीर देश का विस्तार मुल्तान तक बताया है। एक प्राचीन किवदंती में मुल्तान को विष्णु के भक्त प्रह्लाद का जन्म स्थान तथा हिरण्यकशिपु की राजधानी माना जाता है। प्रह्लाद के नाम से एक प्रसिद्ध मन्दिर भी यहाँ स्थित है।

मुस्लिम आक्रमण

मुल्तान मुस्लिमों द्वारा सबसे पहले विजित प्रदेशों में था। पूर्व मध्यकाल में मुल्तान अरबों के अधीन था, किंतु 871 ई. में ख़िलाफ़त से सम्बन्ध विच्छेद कर मुल्तान स्वतन्त्र हो गया था। महमूद ग़ज़नवी ने मुल्तान पर आक्रमण कर उस पर अधिकार कर लिया। तत्कालीन शासक दाउद ने महमूद ग़ज़नवी को 20,000 दिरहम प्रतिवर्ष देने का वायदा किया। 1008 ई. में मुल्तान को महमूद ग़ज़नवी ने अपने राज्य में मिला लिया। 1175 ई. में मुहम्मद ग़ोरी का पहला आक्रमण मुल्तान पर हुआ। इस पर उस समय करमाथी लोग शासन करते थे। महमूद ने नगर पर अधिकार कर उसे अपने सूबेदार के सुपुर्द कर दिया। उसके बाद शताब्दियों तक मुल्तान भारतीय मुस्लिम साम्राज्य का अंग बना रहा। कालांतर में अहमदशाह अब्दाली (1747-1773 ई.) ने मुल्तान पर अधिकार कर लिया।

स्मारक

मुल्तान के उल्लेखनीय स्मारकों में मुहम्मद बिन क़ासिम की बनवाई गई मस्जिद प्रमुख है। यहाँ के मक़बरों में 1152 ई. में निर्मित शाह युसुफ़-गुल गरजिनी का मक़बरा, 1262 ई. में निर्मित बहाउल हक़ का मक़बरा महत्त्वपूर्ण है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मुल्तान
  2. प्रभासक्षेत्र-माहात्म्य, अध्याय 278

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