महर्षीणां भृगुरहं गिरामस्म्येकमक्षरम् । यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि स्थावराणां हिमालय ।।25।।
मैं महर्षियों में भृगु[1] और शब्दों में एक अक्षर अर्थात् ओंकार हूँ। सब प्रकार के यज्ञों में जपयज्ञ और स्थिर रहने वालों में हिमालय[2] पहाड़ हूँ ।।25।।
Among the great seers, I am Bhragu; among words, I am the sacred syllable OM. Among offerings, I am the offering of japa (muttering of sacred formulas); and among the immovabels, the Himalaya. (25)
महर्षीणाम् = महर्षियों में; भृगु: = भृगु(और); गिराम् = वचनों में; एकम् = एक; अक्षरम् = अक्षर अर्थात् ओंकार; यज्ञानाम् = सब प्रकार के यज्ञों में; जपयज्ञ: = जपयज्ञ(और); स्थावराणाम् = स्थिर रहने वालों में; हिमालय: = हिमालय पहाड़