सिंघण: Difference between revisions
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Latest revision as of 14:14, 2 January 2015
सिंघण (1210-1247 ई.) यादव वंश के जैत्रपाल प्रथम का पुत्र था। वह यादव वंश का सबसे शक्तिशाली और प्रतापी राजा सिद्ध हुआ था। 37 वर्ष के अपने शासन काल में उसने चारों दिशाओं में बहुत से युद्ध किए और देवगिरि के यादव राज्य को उन्नति की चरम सीमा पर पहुँचा दिया। होयसल राजा वीर बल्लाल ने सिंघण के पितामह भिल्लम को युद्ध में मारा था और यादव राज्य को बुरी तरह से आक्रान्त किया था। अपने कुल के इस अपमान का प्रतिशोध करने के लिए सिंघण ने द्वारसमुद्र के होयसाल राज्य पर आक्रमण किया और वहाँ के राजा वीर बल्लाल द्वितीय को परास्त कर उसके अनेक प्रदेशों पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया।
साम्राज्य विस्तार
सिंघण ने अपने साम्राज्य की सीमाओं को विस्तार देने के लिए कई महत्त्वपूर्ण सैनिक अभियान किये और युद्ध लड़े। होयसल वंश के राजा कि विजय के बाद सिंघण ने उत्तर दिशा में विजय यात्रा के लिए प्रस्थान किया। गुजरात पर उसने कई बार आक्रमण किए और मालवा को अपने अधिकार में लाकर काशी और मथुरा तक विजय यात्रा की। इतना ही नहीं, उसने कलचुरी राज्य को परास्त कर अफ़ग़ान शासकों के साथ भी युद्ध किए, जो उस समय उत्तर भारत के बड़े भाग को अपने स्वामीत्व में ला चुके थे।
कोल्हापुर के शिलाहार, बनवासी के कदम्ब और पांड्य देश के राजाओं को भी सिंघण ने आक्रान्त किया और अपनी इन दिग्विजयों के उपलक्ष्य में कावेरी नदी के तट पर एक 'विजय स्तम्भ' की स्थापना की। इसमें सन्देह नहीं कि यादव राज सिंघण एक विशाल साम्राज्य का निर्माण करने में सफल हुआ था और न केवल सम्पूर्ण दक्षिणापथ अपितु कावेरी तक का दक्षिण भारत और विंध्याचल के उत्तर के भी कतिपय प्रदेश उसकी अधीनता में आ गए थे।
विद्याप्रेमी तथा संरक्षक
सिंघण न केवल एक अनुपम विजेता था, अपितु वह विद्वानों का आश्रयदाता और विद्याप्रेमी भी था। 'संगीतरत्नाकर' का रचयिता सारंगधर उसी के आश्रय में रहता था। प्रसिद्ध ज्योतिष विद्वान चांगदेव भी उसकी राजसभा का एक उज्ज्वल रत्न था। भास्कराचार्य द्वारा रचित 'सिद्धांतशिरोमणि' तथा ज्योतिष सम्बन्धी अन्य ग्रंथों के अध्ययन के लिए सिंघण ने एक शिक्षा केन्द्र की स्थापना भी की थी।
सिंघण के उत्तराधिकारी
- कृष्ण (1247-1260 ई.)
- महादेव (1260-1271 ई.)
- रामचन्द्र (1271-1309 ई.)
सिंघण के बाद उसके पोते 'कृष्ण' ने और फिर कृष्ण के भाई 'महादेव' ने देवगिरि के राजसिंहासन को सुशोभित किया। इन राजाओं के समय में भी गुजरात और शिलाहार राज्य के साथ यादवों के युद्ध जारी रहे। महादेव के बाद 'रामचन्द्र' यादवों का राजा बना। उसके समय में 1294 ई. में दिल्ली के प्रसिद्ध अफ़ग़ान विजेता अलाउद्दीन ख़िलजी ने दक्षिणी भारत में विजय यात्रा की।
इस समय देवगिरि का यादव राज्य दक्षिणापथ की प्रधान शक्ति था। अतः स्वाभाविक रूप से अलाउद्दीन ख़िलज़ी का मुख्य संघर्ष यादव राजा रामचन्द्र के साथ ही हुआ। अलाउद्दीन जानता था कि सम्मुख युद्ध में रामचन्द्र को परास्त कर सकना सुगम नहीं है। अतः उसने छल का प्रयोग किया और यादव राज के प्रति मैत्रीभाव प्रदर्शित कर उसका आतिथ्य ग्रहण किया। इस प्रकार जब रामचन्द्र असावधान हो गया तो अलाउद्दीन ने उस पर अचानक हमला कर दिया। इस स्थिति में यादवों के लिए अपनी स्वतंत्रता को क़ायम रखना असम्भव हो गया और रामचन्द्र ने विवश होकर अलाउद्दीन ख़िलज़ी के साथ सन्धि कर ली।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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