हस्तिनापुर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 13:51, 26 September 2010 by व्यवस्थापन (talk | contribs) (Text replace - "बाजार" to "बाज़ार")
Jump to navigation Jump to search

उत्तर प्रदेश में मेरठ के निकट स्थित महाराज हस्ती का बसाया हुआ एक प्राचीन नगर जो कौरवों और पांडवों की राजधानी थी। इसका महाभारत में वर्णित अनेक घटनाओं से संबंध है। महाभारत से जुड़ी सारी घटनाएँ हस्तिनापुर में ही हुई थीं। अभी भी यहाँ महाभारत काल से जुड़े कुछ अवशेष मौजूद हैं। इनमें कौरवों-पांडवों के महलों और मंदिरों के अवशेष प्रमुख हैं। इसके अलावा हस्तिनापुर को चक्रवर्ती सम्राट भरत की भी राजधानी माना जाता है। यहाँ स्थित पांडेश्वर महादेव मंदिर की काफ़ी मान्यता है। कहा जाता है यह वही मंदिर है, जहाँ पांडवों की रानी द्रौपदी पूजा के लिए जाया करती थी।

स्थापना

महाभारतकालीन महानगरों की श्रेणी में हस्तिनापुर भी आता था। इसकी स्थापना हस्तिन् नामक व्यक्ति द्वारा की गई थी। इसीलिये इसे हस्तिनापुर कहा जाता था।

इतिहास

हस्तिनापुर में युधिष्ठिर जुए में द्रौपदी के सहित अपना सब कुछ हार गए थे। पांडवों की ओर से शांतिदूत बनकर श्रीकृष्ण यहीं धृतराष्ट्र की सभा में आए थे। अपने पिता शांतनु की सत्यवती से विवाह करने की इच्छा पूरी करने के लिए भीष्म पितामह ने अपना उत्तराधिकार छोड़ने और आजीवन अविवाहित रहने का प्रण यहीं पर किया था। द्रौपदी से विवाह के बाद कुछ समय के लिए पांडवों ने दिल्ली के निकट इंद्रप्रस्थ को अपनी राजधानी बनाया था, किंतु महाभारत युद्ध के बाद उन्होंने हस्तिनापुर को ही राजधानी रखा।

महाभारत के समय पर हस्तिनापुर

महाभारत में इस नगर का भी खुला वर्णन मिलता हैं। इसके अनुसार विभिन्न शस्त्रों द्वारा सुरक्षित होने के कारण इस पुर के भीतर शत्रुओं का प्रवेश दुष्कर था। नगर के परकोटे में बने गोपुर (दरवाजे) ऊँचे थे। नगर का भीतर भाग राजमार्गों द्वारा विभक्त था। सड़कों के दोनों किनारे महल और बाज़ारें सुशोभित थीं। राजमहल नगर के बीच में स्थित था। इसमें अनेक सरोवर औ उद्यान थे। नागरिक धर्मनिरत, होमपरायण, यज्ञादि में श्रद्धा रखने वाले, वर्णाश्रम-व्यवस्था के पोषक और धन-धान्य से सम्पन्न थे। सूत-मागध और बन्दी अपने-अपने कर्म में निरत थे। इनके द्वारा नगर की शोभा इतनी बढ़ गई थी कि वह इन्द्रलोक के समान सुन्दर लगता था।

पुराणों के अनुसार

पुराणों में कहा गया है कि जब गंगा की बाढ़ के कारण यह पुर विनष्ट हो गया, उस समय पाण्डव हस्तिनापुर को छोड़ कर कौशाम्बी चले आये थे। यह घटना झूठी नहीं मानी जा सकती। हस्तिनापुर और कौशाम्बी में जो खुदाइयाँ हाल में हुई हैं, उनसे इसकी पुष्टि हो चुकी है। अब विद्वान् इस बात को मानने लगे हैं कि गंगा की बाढ़ ने हस्तिनापुर को सचमुच ही किसी समय बहा दिया था। कौशाम्बी के कुछ प्राचीन बर्तन बनावट में हस्तिनापुर के बर्तनों के तुल्य हैं। इससे प्रमाणित होता है कि गंगा की बाढ़ के कारण पाण्डव हस्तिनापुर को छोड़ कर कौशाम्बी में बस गये थे। हस्तिनापुर की आधुनिक खुदाइयों ने वहाँ की प्राचीन कला और संस्कृति पर प्रकाश डाला है। वहाँ के नागरिक अपने बर्तनों पर भूरे रंग की पालिश चढ़ाते थे। यह प्रथा मथुरा, इन्द्रप्रस्थ तथा महाभारतकालीन अन्य नगरों में भी प्रचलित थी। इससे सिद्ध होता है कि उनका सामाजिक जीवन एकाकी नहीं था। वे एक दूसरे से कोई बहुत दूर भी नहीं थे। जलमार्ग से एक दूसरे से वे लगे हुये थे, अतएव इन महापुरियों के निवासियों के बीच सांस्कृतिक सम्बन्ध कोई अनहोनी बात नहीं मानी जा सकती।

प्रमुख जैन तीर्थ

जैन समुदाय के बीच हस्तिनापुर को एक प्रमुख तीर्थ माना जाता है। हस्तिनापुर जैन धर्मावलंबियों का भी प्रसिद्ध तीर्थ है। यहाँ जैन धर्म के कई तीर्थंकरों का जन्म हुआ था। यही वजह है कि यहाँ काफ़ी संख्या में जैन मंदिर मौजूद हैं। यहीं पर राजा श्रेयांस ने आदितीर्थकर ऋषभदेव को ईख के रस का दान दिया था। इसलिए इसको 'दानतीर्थ' कहते हैं। इसका संबंध शांतिनाथ, कुंतुनाथ और अरहन्नाथ नामक तीर्थकरों से भी है। यहाँ अनेक जैन धर्मशालाएं और मंदिर हैं। खुदाई में यहाँ अनेक प्राचीन खंडहर मिले हैं। इनमें क़रीब 200 साल पुराना बड़ा मंदिर, जंबूद्वीप, कैलाश पर्वत, अष्टापद जी, कमल मंदिर और ध्यान मंदिर मुख्य हैं। प्राचीन बड़ा मंदिर में हस्तिनापुर की नहर की खुदाई के दौरान प्राप्त हुई जिन प्रतिमाओं को देखा जा सकता है। इन मंदिरों को काफ़ी सुंदर और कलात्मक तरीक़े से बनाया गया है।

सिखों का पवित्र स्थान 

हस्तिनापुर पहला ऐसा तीर्थस्थान है, जो हिन्दू और जैनों के साथ सिखों का भी पवित्र तीर्थ है। हस्तिनापुर के पास ही स्थित सैफपुर सिख धर्म के पंच प्यारों में से एक भाई धर्मदास की जन्मस्थली है। देश भर के श्रद्धालु यहाँ स्थित पवित्र सरोवर में डुबकी लगाने के लिए आते रहते हैं।

मेले

हस्तिनापुर में साल में कई छोटे-बड़े मेले लगते हैं। इनमें अक्षय तृतीया, होली और 2 अक्टूबर का मेला प्रमुख है। अक्षय तृतीया को देश भर से श्रद्धालु यहाँ भगवान को गन्ने के रस का आहार कराने के लिए आते हैं। अगर आपको होली के रंग पसंद नहीं आते, तो हस्तिनापुर आपके लिए इनसे बचने की एक बेहतरीन जगह साबित हो सकता है। दुल्हैंडी वाले दिन यहाँ लगने वाले मेले में देश भर से होली नहीं खेलने वाले लोग आते हैं। साथ ही 2 अक्टूबर को लगने वाले मेले में भी काफ़ी भीड़ उमड़ती है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध


वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः