वत्स द्वादशी: Difference between revisions
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*ऐसा कहा जाता है कि बछड़े सहित गाय को चन्दन लेप से अलंकृत किया जाता है, उसे मालाओं से खुरों के पास ताम्र पत्र में अर्ध्य से, माष से बनी वृत्ताकार रोटी से सम्मानित किया जाता है। | *ऐसा कहा जाता है कि बछड़े सहित गाय को चन्दन लेप से अलंकृत किया जाता है, उसे मालाओं से खुरों के पास ताम्र पत्र में अर्ध्य से, माष से बनी वृत्ताकार रोटी से सम्मानित किया जाता है। | ||
*उस दिन तेल से बने, बटुली में पकाये भोजन से तथा दूध, दही, घी एवं मक्खन से दूर रहा जाता है।<ref>समयमयूख (91-92)।</ref> | *उस दिन तेल से बने, बटुली में पकाये भोजन से तथा दूध, दही, घी एवं मक्खन से दूर रहा जाता है।<ref>समयमयूख (91-92)।</ref> | ||
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Latest revision as of 08:23, 21 March 2011
- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
- यह व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष की द्वादशी को करना चाहिए।
- ऐसा कहा जाता है कि बछड़े सहित गाय को चन्दन लेप से अलंकृत किया जाता है, उसे मालाओं से खुरों के पास ताम्र पत्र में अर्ध्य से, माष से बनी वृत्ताकार रोटी से सम्मानित किया जाता है।
- उस दिन तेल से बने, बटुली में पकाये भोजन से तथा दूध, दही, घी एवं मक्खन से दूर रहा जाता है।[1]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ समयमयूख (91-92)।
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