श्रावण कृत्य: Difference between revisions
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*ऐसी धारणा है कि उन नदियों को छोड़कर जो कि सीधे समुद्र में गिरती हैं, अन्य नदियाँ उस समय रजस्वला (मासिक धर्म) में कही जाती हैं, जबकि सूर्य कर्क एवं सिंह राशि में होता है, उस समय उनमें स्नान नहीं किया जाता, जो धाराएँ 1008 धनु लम्बी नहीं होती, वे नदियाँ नहीं कहलाती हैं, वे केवल छिद्र या गर्त कहलाती है।<ref>देखिए गोभिलस्मृति (1|141-142); निर्णयसिन्धु (109-110); (एक धनु=4 हाथ)।</ref> | *ऐसी धारणा है कि उन नदियों को छोड़कर जो कि सीधे समुद्र में गिरती हैं, अन्य नदियाँ उस समय रजस्वला (मासिक धर्म) में कही जाती हैं, जबकि सूर्य कर्क एवं सिंह राशि में होता है, उस समय उनमें स्नान नहीं किया जाता, जो धाराएँ 1008 धनु लम्बी नहीं होती, वे नदियाँ नहीं कहलाती हैं, वे केवल छिद्र या गर्त कहलाती है।<ref>देखिए गोभिलस्मृति (1|141-142); निर्णयसिन्धु (109-110); (एक धनु=4 हाथ)।</ref> | ||
*श्रावण में कतिपय देव विभिन्न तिथियों पर पवित्रारोपणव्रत पर बुलाये जाते हैं। | *श्रावण में कतिपय देव विभिन्न तिथियों पर पवित्रारोपणव्रत पर बुलाये जाते हैं। | ||
*श्रावण में प्रति [[सोमवार]] को उपवास करना चाहिए या नक्तविधि करनी चाहिए।<ref> | *श्रावण में प्रति [[सोमवार]] को उपवास करना चाहिए या नक्तविधि करनी चाहिए।<ref>स्मृतिकौस्तुभ 139);</ref> | ||
*दोनों पक्षों की नवमियों पर कौमारी नाम से [[दुर्गा]] की पूजा करनी चाहिए।<ref> | *दोनों पक्षों की नवमियों पर कौमारी नाम से [[दुर्गा]] की पूजा करनी चाहिए।<ref>कृत्यरत्नाकर 244, स्मृतिकौस्तभ 200);</ref> | ||
*तमिल प्रदेशों में श्रावण [[कृष्ण पक्ष]] की [[प्रतिपदा]] को सभी वैदिक ब्राह्मण गायत्री का जप 1008 बार करते हैं। | *तमिल प्रदेशों में श्रावण [[कृष्ण पक्ष]] की [[प्रतिपदा]] को सभी वैदिक ब्राह्मण गायत्री का जप 1008 बार करते हैं। | ||
*श्रावण की [[अमावास्या]] को कुशोत्पाटिनी कहा जाता है, क्योंकि उस समय दिन कुश एकत्र किये जाते हैं।<ref> | *श्रावण की [[अमावास्या]] को [[कुशोत्पाटिनी अमावस्या|कुशोत्पाटिनी]] कहा जाता है, क्योंकि उस समय दिन कुश एकत्र किये जाते हैं।<ref>कृत्यरत्नाकर 316, स्मृतिकौस्तभ 252</ref> | ||
*इस अमावास्या पर अपुत्रवती नारियाँ या वे नारियाँ जिनकी सन्तान बचपन में ही मर जाती हैं, उपवास करती हैं, ब्राह्मणों एवं अन्य माताओं की प्रतिमाओं के लिए आठ कलश स्थापित करती हैं। | *इस अमावास्या पर अपुत्रवती नारियाँ या वे नारियाँ जिनकी सन्तान बचपन में ही मर जाती हैं, उपवास करती हैं, ब्राह्मणों एवं अन्य माताओं की प्रतिमाओं के लिए आठ कलश स्थापित करती हैं। | ||
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Latest revision as of 13:43, 25 August 2013
- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
- श्रावण में बहुत से महत्त्वपूर्ण व्रत किये जाते हैं, यथा–नाग पंचमी, अशून्यशयन व्रत, कृष्ण जन्माष्टमी जिनका उल्लेख यहाँ पर यथास्थान किया गया है।[1]
- ऐसी धारणा है कि उन नदियों को छोड़कर जो कि सीधे समुद्र में गिरती हैं, अन्य नदियाँ उस समय रजस्वला (मासिक धर्म) में कही जाती हैं, जबकि सूर्य कर्क एवं सिंह राशि में होता है, उस समय उनमें स्नान नहीं किया जाता, जो धाराएँ 1008 धनु लम्बी नहीं होती, वे नदियाँ नहीं कहलाती हैं, वे केवल छिद्र या गर्त कहलाती है।[2]
- श्रावण में कतिपय देव विभिन्न तिथियों पर पवित्रारोपणव्रत पर बुलाये जाते हैं।
- श्रावण में प्रति सोमवार को उपवास करना चाहिए या नक्तविधि करनी चाहिए।[3]
- दोनों पक्षों की नवमियों पर कौमारी नाम से दुर्गा की पूजा करनी चाहिए।[4]
- तमिल प्रदेशों में श्रावण कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को सभी वैदिक ब्राह्मण गायत्री का जप 1008 बार करते हैं।
- श्रावण की अमावास्या को कुशोत्पाटिनी कहा जाता है, क्योंकि उस समय दिन कुश एकत्र किये जाते हैं।[5]
- इस अमावास्या पर अपुत्रवती नारियाँ या वे नारियाँ जिनकी सन्तान बचपन में ही मर जाती हैं, उपवास करती हैं, ब्राह्मणों एवं अन्य माताओं की प्रतिमाओं के लिए आठ कलश स्थापित करती हैं।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ कृत्यकल्पतरु (नैयमकालिक, 395-397); कृत्यरत्नाकर (218-254); वर्षक्रियाकौमुदी (292); कृत्यतत्त्व (437-438); निर्णयसिन्धु (109-122); स्मृतिकौस्तुभ (148-200); पुरुषार्थचिन्तामणि (215-222)।
- ↑ देखिए गोभिलस्मृति (1|141-142); निर्णयसिन्धु (109-110); (एक धनु=4 हाथ)।
- ↑ स्मृतिकौस्तुभ 139);
- ↑ कृत्यरत्नाकर 244, स्मृतिकौस्तभ 200);
- ↑ कृत्यरत्नाकर 316, स्मृतिकौस्तभ 252
अन्य संबंधित लिंक
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