युगादि व्रत: Difference between revisions

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*[[भारत]] में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लखित [[हिन्दू धर्म]] का एक व्रत संस्कार है।  
*यह व्रत चारों युग- कृत, [[त्रेता युग|त्रेता]], [[द्वापर युग|द्वापर]] तथा [[कलि युग]] में क्रम से [[वैसाख]] में [[शुक्ल पक्ष]] की [[तृतीया]], शुक्ल पक्ष की [[नवमी]], [[भाद्रपद]] में [[कृष्ण पक्ष]] की [[त्रयोदशी]] एवं [[माघ]] में [[अमावास्या]] पर आरम्भ हुए थे।  
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*इन तिथियों पर उपवास, दान, तप, जप एवं होम करना चाहिए।
*इन तिथियों पर उपवास, दान, तप, जप एवं होम करना चाहिए।
*इसके करने से साधारण फलों की अपेक्षा एक करोड़ गुना फल की प्राप्ति होती है।  
*इसके करने से साधारण फलों की अपेक्षा एक करोड़ गुना फल की प्राप्ति होती है।  
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*[[कार्तिक]] में शुक्ल पक्ष की नवमी पर [[शिव]] एवं [[उमा]] की पूजा करनी चाहिए। और तिल धेनु का दान करना चाहिए।
*[[कार्तिक]] में शुक्ल पक्ष की नवमी पर [[शिव]] एवं [[उमा]] की पूजा करनी चाहिए। और तिल धेनु का दान करना चाहिए।
*भाद्रपद में कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी पर पितरों को सम्मान देना चाहिए।
*भाद्रपद में कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी पर पितरों को सम्मान देना चाहिए।
*माघ में अमावास्या पर [[ब्रह्म]] एवं [[गायत्री]] की पूजा करनी चाहिए, तथा नवनीत धेनु का दान करना चाहिए।  
*माघ में अमावास्या पर [[ब्रह्मा]] एवं [[गायत्री]] की पूजा करनी चाहिए, तथा नवनीत धेनु का दान करना चाहिए।  
*इसको करने से सभी मन, वचन एवं कर्म से किये गये पाप प्रभावहीन हो जाते हैं। <ref>हेमाद्रि (व्रतखण्ड 2, 514-517, भविष्योत्तरपुराण से उद्धरण)।</ref>
*इसको करने से सभी मन, वचन एवं कर्म से किये गये पाप प्रभावहीन हो जाते हैं। <ref>हेमाद्रि (व्रतखण्ड 2, 514-517, भविष्योत्तरपुराण से उद्धरण)।</ref>



Revision as of 12:37, 7 September 2010

  • भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
  • यह व्रत चारों युग- सत, त्रेता, द्वापर तथा कलि युग में क्रम से वैसाख में शुक्ल पक्ष की तृतीया, शुक्ल पक्ष की नवमी, भाद्रपद में कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी एवं माघ में अमावास्या पर आरम्भ हुए थे।
  • इन तिथियों पर उपवास, दान, तप, जप एवं होम करना चाहिए।
  • इसके करने से साधारण फलों की अपेक्षा एक करोड़ गुना फल की प्राप्ति होती है।
  • वैसाख में शुक्ल पक्ष की तृतीया पर नारायण एवं लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए। और लवण धेनु का दान करना चाहिए।
  • कार्तिक में शुक्ल पक्ष की नवमी पर शिव एवं उमा की पूजा करनी चाहिए। और तिल धेनु का दान करना चाहिए।
  • भाद्रपद में कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी पर पितरों को सम्मान देना चाहिए।
  • माघ में अमावास्या पर ब्रह्मा एवं गायत्री की पूजा करनी चाहिए, तथा नवनीत धेनु का दान करना चाहिए।
  • इसको करने से सभी मन, वचन एवं कर्म से किये गये पाप प्रभावहीन हो जाते हैं। [1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हेमाद्रि (व्रतखण्ड 2, 514-517, भविष्योत्तरपुराण से उद्धरण)।

संबंधित लिंक

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