विश्वरूप व्रत: Difference between revisions

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Revision as of 09:51, 9 September 2010

  • भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
  • यह व्रत शुक्ल पक्ष की अष्टमी या चतुर्दशी पर, जब यह रविवार एवं रेवती नक्षत्र में पड़ती है करना चाहिए।
  • इसमेण शिव देवता की पूजा करनी चाहिए।
  • शिव लिंग का महास्नान, कपूर, श्वेत कमल एवं अन्य आभूषण लिंग पर रखे जाते हैं, धूप के रूप में कपूर जलाया जाता है, घी एवं पायस का नैवेद्य चढ़ाया जाता है।
  • आचार्य को घोड़ा या गज का दान करना चाहिए।
  • कर्ता को पुत्र, राज्य, आनन्द, आदि की प्राप्ति होती है। इसी से इस व्रत को विश्वरूप (अर्थात् सभी रूपों वाला) कहा जाता है। रात्रि में कुशयुक्त जल ग्रहण एवं जागरण करना चाहिए। हेमाद्रि [1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. (व्रतखण्ड 1, 865-866, कालोत्तरपुराण से उद्धरण)।

संबंधित लिंक

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